पसीना रोके अरहर
- वानस्पतिक नाम- Cajanas cajan (कजानस कजान)
- कुल फेबेसी (Fabaceae)
- हिन्दी- अरहर, तुवर, धाल
- अंग्रेजी- पीजन पी, कोन्गो पी, दाहल (Pigeon Pea, Congo Pea, Dahl) संस्कृत- अधाकि
दाल के रूप में उपयोग में लिए जाने वाली सभी दलहनों में अरहर का प्रमुख स्थान है। अरहर का वानस्पतिक नाम कजानस कजान है। अरहर के दानों को उबालकर पर्याप्त पानी में छोंककर स्वादिष्ट सब्जी बनाई जाती है। अरहर की हरी-हरी फलियों में से दाने निकालकर उसकी सब्जी भी बनायी जाती है। अरहर के पत्तों तथा दूब (दूर्वा घास) का रस सभान मात्रा में तैयार कर नाक में डालने से माइग्रेन में लाभ होता है। भाँग का नशा उतारने के लिए आदिवासी अरहर की दाल को पानी में पीसकर पिलाते हैं जिससे नशा उतर जाता है। ज्यादा पसीना आने की शिकायत होने पर एक मुट्ठी अरहर की दाल, एक चम्मच नमक और आधा चम्मच पिसी हुई सोंठ लेकर सरसों के तेल में छोंकना चाहिए और इसे शरीर पर मालिश करनी चाहिए इससे अधिक पसीना आने की समस्या से निदान मिलता है।
दाँत दर्द होने पर अरहर के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से पीड़ा खत्म होती है। पातालकोट के आदिवासी अरहर की दाल छिलकों सहित पानी में भिगोकर उस पानी से कुल्ले करने पर मुँह के छाले ठीक होने का दावा करते हैं। अरहर के कोमल पत्ते पीसकर लगाने से घाव और जख्म भर जाते हैं। डॉग-गुजरात के आदिवासी अरहर के पौधे की कोमल डंडियाँ, पत्ते आदि दूध देने वाले पशुओं को विशेष रूप से खिलाते हैं जिससे वे अधिक दूध देते हैं लेकिन इसके विपरीत पातालकोट के आदिवासी हर्बल जानकार अरहर के पत्तों और दालों को एक साथ पीसकर हल्का-सा गर्म करके प्रसव पश्चात् महिला के स्तनों पर लगाते हैं, जिससे यदि अधिक मात्रा में दूध आ रहा हो तो वह रुक जाता है।
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