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World Women’s day: “तुम मेरी बेटी नहीं बेटा हो, अपने आप को कमजोर मत समझो

World Women’s day: “तुम मेरी बेटी नहीं बेटा हो, अपने आप को कमजोर मत समझो, पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर चलो, औरतों की तरह रोना छोड़ो ,बेटी होकर बेटे का फर्ज अदा किया।”

यह कुछ ऐसे उपमाएं है जो आज के दौर में भी महिलाओं को दी जाती है और महिलाएं भी इन्हें सुनकर कभी-कभी गर्व महसूस करती है।

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मगर क्या वाकई महिलाओं को यह सब सुनकर खुश होना चाहिए?क्या वाकई अभी उन्हें इन शब्दों के सहारे की जरूरत है? शायद नहीं, क्योंकि महिला और पुरुष एक बराबर है। यहां सिर्फ सोच और नजरिया बदलने की जरूरत है हम विज्ञान के युग में है यहां जो तकनीक और आधुनिकता के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहा है वही आगे हैं। महिला हो या पुरुष दोनों को समान अवसर मिलना चाहिए इसके लिए जरूरी नहीं है कि-

“महिलाएं पुरुष जैसे काम करें या उनके जैसे लाइफ स्टाइल बना लें”
हर महिला को खुद को सुपर हीरो समझना चाहिए और पुरुषों से किसी भी तरह का कांपटीशन नहीं करना ‌चाहिए। पुरुषों की बराबरी करने के लिए सुपरमैन मत बनिए वंडर वूमेन बनिए।एक जमाना था जब लड़कियों को स्कूल तक नहीं भेजा जाता था मगर महिलाओं ने अपनी क्षमता को समझा और आज और बॉर्डर पर दुश्मनों का सामना कर रही है।यहां उनकी तुलना पुरुषों से करना अनिवार्य नहीं है बल्कि उनकी क्षमता की सराहना अनिवार्य हर व्यक्ति की अपनी क्षमता होती है और उसके आधार पर वह काम कर पाता है इसमें महिला और पुरुष का भेदभाव बीच में लाना सही नहीं है.

कई बार ऐसा होता है कि जो काम महिलाएं बखूबी कर लेती है वही काम पुरुष उनसे भी अच्छा कर लेते हैं। उदाहरण के तौर पर आप एक पुरुष शैफ को ही ले लीजिए हम सोचते हैं कि रसोई संभालना महिलाओं का ही काम है मगर इस काम में आज पुरुष भी माहिर है हम उन्हें तो कभी नहीं कहते कि तुम मेरी बेटी की कमी को पूरा करते हो। मगर महिलाओं को जो पुरुष की तुलना करने वाली उपमा दी जाती है वहीं से है तुलना का विचार जन्म लेता है।
सुनो हे नारी
क्या हो तुम सिर्फ एक दिन की
सम्मान की अधिकारी…

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