Kisan andolan: क्या किसान आंदोलन अपनी प्रासंगिकता खो रहा है
कुछ तथाकथित अंतरराष्ट्रीय सेलेब्रिटीज़ के द्वारा किसान आंदोलन (Kisan andolan) के समर्थन में उनके द्वारा किए गए ट्वीट के बदले में उन्हें 2.5 मिलियन डॉलर दिए जाने की खबरें सामने आती हैं।
आज सोशल मीडिया हर आमोखास के लिए केवलअपनी बात मजबूती के साथ रखने का एक शक्तिशाली माध्यम मात्र नहीं रह गया है बल्कि यह एक शक्तिशाली हथियार का रूप भी ले चुका है। देश में चलने वाला किसान आंदोलन (Kisan andolan) इस बात का सशक्त प्रमाण है। दरअसल सिंघु बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर पिछले दो माह से भी अधिक समय से चल रहा किसान आंदोलन भले ही 26 जनवरी के बाद से दिल्ली की सीमाओं में प्रवेश नहीं कर पा रहा हो लेकिन ट्विटर पर अपने प्रवेश के साथ ही उसने अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को पार कर लिया। वैसे होना तो यह चाहिए था कि बीतते समय और इस आंदोलन को लगातार बढ़ते हुए अंतरराष्ट्रीय मंचो की उपलब्धता के साथ आंदोलनरत किसानों के प्रति देश भर में सहानुभूति की लहर उठती और देश का आम जन सरकार के खिलाफ खड़ा हो जाता। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
बल्कि इसी साल की जनवरी में एक अमेरिकी डाटा फर्म की सर्वे रिपोर्ट सामने आई जिसमें प्रधानमंत्री मोदी को भारत ही नहीं विश्व का सबसे लोकप्रिय और स्वीकार्य राजनेता माना गया। इस सर्वे में अमरीका फ्रांस ब्राज़ील जापान समेत दुनिया के 13 लोकतांत्रिक देशों को शामिल किया गया था जिसमें 75 फीसदी लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व पर भरोसा जताया है। लेकिन यहाँ प्रश्न प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता का नहीं है बल्कि किसान आंदोलन (Kisan andolan) की विश्वसनीयता और देश के आम जनमानस के ह्रदय में उसके प्रति सहानुभूति का है। क्योंकि देखा जाए तो 26 जनवरी की हिंसा के बाद से किसान आंदोलन ने अपनी प्रासंगिकता ही खो दी थी और किसान नेताओं समेत इस पूरे आंदोलन पर ही प्रश्नचिन्ह लगने शुरू हो गए थे। क्योंकि जब 26 जनवरी को देश ने दिल्ली पुलिस के जवानों पर आंदोलनकारियों का हिंसक आक्रमण देखा तो इस आंदोलन ने देश की सहानुभूति भी खो दी।
दरअसल देश इस बात को बहुत अच्छे से समझता है कि देश का किसान जो इस देश की मिट्टी को अपने पसीने से सींचता है वो देश के उस जवान पर कभी प्रहार नहीं कर सकता जो इस देश की आन को अपने खून से सींचता है। शायद यही कारण है कि जो सहानुभूति इस आंदोलन के लिए “आन्दोलनजीवी” इस देश में नहीं खोज पाए उस सहानुभूति को उनके द्वारा अब विदेश से प्रायोजित करवाने के प्रयास किए जा रहे हैं जिसमें ट्विटर जैसी माइक्रोब्लॉगिंग साइट और अन्य विदेशी मंचों का सहारा लिया जाता है।आइए कुछ घटनाक्रमों पर नज़र डालते हैं,
1. कुछ तथाकथित अंतरराष्ट्रीय सेलेब्रिटीज़ के द्वारा किसान आंदोलन (Kisan andolan) के समर्थन में उनके द्वारा किए गए ट्वीट के बदले में उन्हें 2.5 मिलियन डॉलर दिए जाने की खबरें सामने आती हैं।
2. इन तथाकथित सेलेब्रिटीज़ में एक 18 साल की लड़की है और दो ऐसी महिलाएं हैं जो स्वयं अपने बारे में भी एक महिला की भौतिक देह से ऊपर उठ कर नहीं सोच पातीं।जब ऐसी महिलाएं किसान आंदोलन पर ट्वीट करके चिंता व्यक्त करती हैं तो कहने को कम और समझने के लिए ज्यादा हो जाता है।
3. इतना ही नहीं कथित पर्यावरणविदग्रेटा थनबर्ग द्वारा पहले किसान आंदोलन (Kisan andolan) से संबंधित टूलकिट को शेयर किया जाता है और फिर हटा लिया जाता है जो अपने आप में कई गंभीर सवालों को खड़ा कर देता है।
4. किसान आंदोलन में ट्विटर के इस प्रकार भ्रामक एवं लोगों की भावनाओं को भड़काने वाली जानकारी फैलाने वालों के खिलाफ सरकार के कहने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं करना। अब भारत सरकार ने ट्विटर पर आईटी एक्ट की धारा 69 ए के तहत कार्यवाही करने की चेतावनी दी है।
5.दरअसल सरकार ने ट्विटर को 1178 ट्विटर एकाउंट को यह कहते हुए बंद करने और उनके ट्वीट हटाने का निर्देश दिया था कि यह अकॉउंट खालिस्तान समर्थकों के हैं जिनका इस्तेमाल भड़काऊ और विवादित खबरें फैलाने के लिए किया जा रहा है। लेकिन ट्विटर द्वारा अपने नियम कायदों का हवाला देते हुए सरकार के निर्देशों की अनदेखी करना अब उसके लिए भारत में मुश्किलें पैदा कर सकता है ।
6.इससे पहले भी सरकार ट्विटर से 257 अकॉउंट बंद करने के लिए कहती है जिन्हें ट्विटर ने पहले ब्लॉक कर देता है लेकिन बाद में अनब्लॉक भी कर देता है।
7. हाल ही में अमेरिका की लोकप्रिय सुपर बाउल लीग के दौरान भी किसान आंदोलन से जुड़ा विज्ञापन चलाया जाता है जिसमें इसे “इतिहास का सबसे बड़ा प्रदर्शन” बताया जाता है।
8.इस बीच लेबर पार्टी के सांसद तनमजीत सिंह धेसी के नेतृत्व में 40 ब्रिटिश सांसदों द्वारा ब्रिटेन की सरकार पर भारत में चल रहे किसान आंदोलन को ब्रिटेन की संसद में उठाकर भारत पर दबाव बनाने का प्रयास किया जाता है लेकिन ब्रिटेन की सरकारइसे भारत का अंदरूनी मामला बताकर खारिज कर देती है।
9.किसान आंदोलन को लेकर कनाडा सरकार का रुख जगजाहिर है।
जाहिर है इन तथ्यों से देश में फॉरेन डिस्ट्रुक्टिव आइडियोलॉजी का प्रवेश तथा आन्दोलनजीवियों के हस्तक्षेप से इनकार नहीं किया जा सकता।
लेकिन किसान आंदोलन (Kisan andolan) के पीछे चल रही इस राजनीति के बीच जब देश के कृषि मंत्री देश की संसद में यह खुलासा करते हैं कि पंजाब में जो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट बना है उसमें करार तोड़ने पर किसान पर न्यूनतम पांच हजार रुपए जुर्माना जिसे पांच लाख तक बढ़ाया जा सकता है, इसका प्रावधान है जबकि केंद्र द्वारा लागू कृषि कानूनों में किसान को सजा का प्रावधान नहीं है तो कांग्रेस का दोहरा चरित्र देश के सामने रखते हैं। क्योंकि पंजाब में फार्मिंग कॉन्ट्रैक्ट का यह कानून 2013 में बादल सरकार ने पारित किया था।
हैरत की बात है कि पंजाब की वर्तमान कांग्रेस सरकार ने केंद्र के कृषि क़ानूनों के विरोध में तो प्रस्ताव पारित कर दिया लेकिन पहले से जो फार्मिंग कॉन्ट्रैक्ट कानून पंजाब में लागू था जिसमें किसानों के लिए भी सज़ा का प्रावधान था उसे रद्द करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। इस प्रकार मूलभूत तथ्यों को दरकिनार करते हुए जब किसानों के हितों के नाम विपक्ष द्वारा की जाने वाली राजनीति देश विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देती हैं तो तात्कालिक लाभ तो दूर की बात है इस प्रकार के कदम यह बताते हैं कि विपक्ष में दूरदर्शी सोच का भी अभाव है। काश कि वो यह समझ पाते कि इस प्रकार के आचरण से कहीं उनकी भावी स्वीकार्यता भी न समाप्त हो जाए। (डिस्क्लेमर:प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।)
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