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मज़बूरी का नाम I.N.D.I.A

“राजनीतिक शतरंज” (I.N.D.I.A)

I.N.D.I.A: जिसका मोदी को हटाने के अलावा कोई विज़न ही नहीं है उस विपक्षी महागठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (I.N.D.I.A) की तीसरी बैठक भी समाप्त हो गई। पहली दो बैठक के अंत में जो हुआ था, वो ही तीसरी बैठक की समाप्ति पर हुआ। एक मोदी के नाम की जपमाला और दूसरा अगली मीटिंग की योजना। हाँ दो काम जरूर हुए कोऑर्डिनेशन कमिटी की रचना  और लोकसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ने का संकल्प। 

I.N.D.I.A गठबंधन में अभी 28 पक्षों का मेला है जो हो सकता है, आने वाले दिनों में संख्या बढ़कर 30 या 31 तक हो सकती है, ये 28 पक्षों में से 14 सभ्यो की कोऑर्डिनेशन कमिटी के अलावा और भी कमिटी का गठन हुआ। इस गठबंधन में शामिल सभी पार्टी एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम तय करेगा।

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देश के इतिहास में इतना निराश और हताश विपक्ष पहले कभी नहीं देखा गया। ये विपक्षी गठबंधन में शामिल हर पार्टी या तो अपनी राजकीय जमीन बचाना चाहती है या तो एक दूसरे की राजकीय जमीन हड़पना चाहती है। भले ही कितना भी ढोल-नगारा पीट कर हम एकजुट है का नारा लगाया जाए पर वास्तविकता ये है की सभी पक्ष अंदर से ये अच्छी तरह से जानते है कि असली लड़ाई भाजपा से नहीं, अपने ही गठबंधन के पक्षों से है।

28 या 30 पक्षों में से सबसे मजबूर कोई पार्टी है तो वो है कोंग्रेस – कोंग्रेस जब भी जनाधार खो देती है वो ऐसे गठबंधन कि काखघोडी पर सवार हो जाती है, परन्तु इस बार जितना मजबूर पक्ष कोंग्रेस रहा है उतना पहले कभी नहीं रहा। कोंग्रेस की मज़बूरी तीन कारण से है –

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1) 2014 में 44 और 2019 में 52 सीटों पर सिमित रह चुकी कोंग्रेस जानती है कि, एक ऐसा गठबंधन ही कोंग्रेस को ज्यादा सीट दिला सकता है । गठबंधन के कारण उनको राज्यों में मजबूत दूसरे पक्षों के कोर (मूल) मतदाताओं के वोट भी मिलेंगे, जिससे उनकी सीटें बढ़ सकती है। वैसे आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कोंग्रेस या अन्य क्षेत्रीय सफल पार्टी कभी नहीं चाहेगी कि कोंग्रेस उनके राज्य में मजबूत हो।  क्योंकि इनके मतों का जनाधार ही कोंग्रेस के वोटो में की गई सेंध है। भाजपा के कोर वोटर्स दिल्ली हो या अन्य राज्यों में कम हुए ही नहीं। आप ने दिल्ली और पंजाब में कोंग्रेस को ही लगभग खत्म कर दिया है।

2) प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्‍यक्ष रूप से कोंग्रेस ने स्वीकार कर लिया है कि राहुल गाँधी की क्षमता नरेन्द्र मोदी को हराने की तो दूर, टक्कर लेने की भी नहीं है। 53 वर्षीय राहुल गाँधी, 50 वर्षीय अखिलेश यादव को भी हराने की क्षमता नहीं रखते, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का जनाधार कोंग्रेस के जनाधार से बहुत अधिक है। राहुल गाँधी अपनी अमेठी लोकसभा सीट भी बचा नहीं पाए है ।

3) तीसरा प्रमुख कारण कोंग्रेस की मज़बूरी का है, अपने ही नेताओं को दूसरे दलों में भागने से रोके रखना। इस मुद्दे पर कोई बात नहीं करता पर ये कोंग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। भाजपा में जाने लायक हर कोंग्रेसी नेता, दल छोड़ चुके हैं, बचे भी होंगे तो दो-चार। पर आम आदमी पार्टी या समाजवादी पार्टी या अन्य छोटी मोटी पार्टी में नेताओं को जाने से रोकने के लिए गठबंधन ही मज़बूरी है। 

उधर I.N.D.I.A गठबंधन की मीटिंग चल रही थी, इधर मोदी सरकार ने 18 से 22 सितंबर, संसद का 5 दिवसीय विशेष सत्र बुलाने का एलान कर दिया जिससे मीडिया की पूरी चर्चा गठबंधन से हटकर विशेष सत्र के एजेंडा पर केंद्रित हो गई। हालांकि, संसद के इस विशेष सत्र का एजेंडा क्या होगा, इस बारे में आधिकारिक तौर पर कुछ भी नहीं बताया गया है, पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में ‘एक देश एक चुनाव’ की संभावना तलाशने के लिए एक समिति गठित कर एक तरफ से विपक्षी गठबंधन का टेंशन और एटेंशन दोनों बढ़ा दिया है। क्योंकि जो विपक्षी पार्टियां लोकसभा में एकजुट होने का दिखावा कर रही है, वो ही राज्य में प्रतिद्वंदी है।

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