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अमेरिका में सत्ता परिवर्तन

Mohit Kumar Upadhyay
मोहित कुमार उपाध्याय
राजनीतिक विश्लेषक एवं अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानका

सत्ता परिवर्तन से कि‌सी‌ देश की विदेश नीति में कोई बड़ा बदलाव हो, ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है। परिणामस्वरूप अमेरिका की सत्ता में होने वाले भावी परिवर्तन से भारत एवं अमेरिका के रणनीतिक एवं सामरिक संबंधों में गर्मजोशी बनी रहेगी। हाल ही में दोनों देश के बीच संपन्न हुई टू पल्स टू वार्ता में द्विपक्षीय संबंधों में बढ़ोतरी की नींव रखी जा चुकी है। टू पल्स टू वार्ता के माध्यम से संपन्न हुए बीका(बेसिक एक्सचेंज फार कोआपरेशन एग्रीमेंट आन जिओस्पैशियल कोआपरेशन)  समझौते के कारण भारत अमेरिका के सबसे करीबी सैन्य साझीदारों की श्रेणी में शामिल हो गया है। इस समझौते के अनुसार अब भारत को न केवल अमेरिकी क्रूज मिसाइलों, बैलिस्टिक मिसाइलों एवं ड्रोन संबंधी तकनीक आसानी से हस्तांतरित की जा सकेगी बल्कि दोनों देश एक दूसरे के साथ संवेदनशील सैन्य डाटा भी साझा कर सकेंगे।

यह वार्ता अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन के कार्यकाल में भारत एवं अमेरिका को एक दूसरे के बेहद करीब लाने में सफल साबित हो सकती है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि भारत विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक हैं और अमेरिका के लिए एक फायदेमंद बाजार साबित हो सकता है। वहीं भारत का विश्व राजनीति में तेजी से प्रभाव बढ़ता जा रहा है और हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन को प्रतिसंतुलित करने के लिए अमेरिका को भारत के रुप में एक सहयोगी की आवश्यकता है क्योंकि इस क्षेत्र विशेष में भारत केंद्रीय भूमिका में है। वर्तमान में चीन प्रत्येक क्षेत्र में अमेरिका के सम्मुख बाधक बनकर उपस्थित हो रहा है और वह अमेरिका के प्रभाव को कम करने के लिए प्रयत्नशील है इसलिए यदि अमेरिका को सुपर पॉवर बने रहना है तो उसे चीन विरोधी रुख यथासंभव जारी रखना होगा और एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए भारत के साथ मिलकर रणनीतिक रूप से नीतियां तैयार करनी होगी।

अमेरिका के निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विपरीत भावी राष्ट्रपति जो बाइडन राजनीति एवं प्रशासन का एक लंबा अनुभव रखते हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत अमेरिका के सबसे युवा सीनेटर के रूप में की थी और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में उनके सहयोगी के रूप में उपराष्ट्रपति के पद पर रह चुके है। ऐसा माना जाता है कि बाइडन व्यक्तिगत रूप से मानवाधिकारों को लेकर अधिक मुखर रहते हैं और इस संदर्भ में पूर्व में कश्मीर के मुद्दे पर उनका बयान अपवाद नहीं है। वहीं अमेरिका की नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति और भारतीय मूल की कमला हैरिस भी कश्मीर मुद्दे पर मानवाधिकार को लेकर भारत की आलोचना कर चुकी है। ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विपरीत जो बाइडन अमेरिकन प्रथम की नीति को लेकर अधिक मुखर साबित नहीं होंगे क्योंकि यह डेमोक्रेटिक पार्टी के विपरित रिपब्लिकन पार्टी का अमेरिकी जनता को आकर्षित करने के लिए चुनावी नारा रहा है। ऐसी संभावना है कि भविष्य में जो बाइडन एच-1 बी वीजा की शर्तों को उदार बना सकते हैं। इससे विश्व के विभिन्न भागों से अमेरिका में जाकर काम करने वाले पेशेवर कामगारों को लाभ पहुंचेगा और यह कदम भारतीय आईटी पेशेवरों के लिए सर्वाधिक लाभकारी सिद्ध होगा। 

Donald Trump

राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप द्वारा विभिन्न महत्वपूर्ण वैश्विक संस्थाओं एवं समझौते से बाहर आकर अमेरिका की नेतृत्वकारी क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। वर्तमान समय में जब विश्व 21वीं शताब्दी के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहा है, ऐसी संकट की घड़ी में राष्ट्रपति ट्रंप का विश्व स्वास्थ्य संगठन की सदस्यता से बाहर आना और अनुदान राशि रोकना अपने आप में एक अनुचित ढंग से उठाया गया कदम ही अधिक साबित हुआ है। अमेरिका के इस आरोप से इंकार नहीं किया जा सकता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन चीनी प्रभाव में है और यह संगठन ठीक समय पर विश्व को कोरोना महामारी की भयावहता के बारे में न केवल सूचित करने में असफल रहा बल्कि इस संदर्भ में चीनी प्रभाव के कारण भ्रामक जानकारी प्रदान की जिसका सर्वाधिक दुष्प्रभाव अमेरिका को झेलना पड़ा। डोनाल्ड ट्रंप ने भारत एवं चीन पर यह आरोप लगाते हुए पेरिस जलवायु समझौते से बाहर आने का फैसला किया कि यह समझौता अमेरिका के साथ धोखा है और पेरिस समझौते के जरिए भारत एवं चीन जैसे विकासशील देशों को लाभ पहुंचाने की साज़िश की जा रही है जबकि वस्तुस्थिति इसके ठीक विपरीत है। विश्व के सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक देशों में चीन के बाद अमेरिका का स्थान है। वहीं भारत अपना कार्बन उत्सर्जन 2005 के प्रति यूनिट जीडीपी उत्सर्जन के अनुपात में 30-35 फीसद कम करने के लिए प्रयासरत है जबकि भारत की जीडीपी चीन और अमेरिका की तुलना में कम है।

पर्यावरण प्रेमियों के लिए यह सुखद खबर है कि नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन ने यह घोषणा की है कि वह राष्ट्रपति पद संभालने के प्रथम दिन ही पेरिस जलवायु समझौते में पुनः शामिल होने की प्रक्रिया शुरू करेंगे। बाइडन की पेरिस समझौते में शामिल होने की घोषणा और विश्व स्वास्थ्य संगठन से बाहर आने के निर्णय पर पुनर्विचार करने का वायदा यह दर्शाता है कि वह ट्रंप के अड़ियल एवं मनमौजी स्वभाव के विपरीत एक दूरदर्शी राजनीतिज्ञ के समान प्रभावी ढंग से वैश्विक संस्थाओं में अमेरिका की भूमिका को सुनिश्चित करेंगे। यह काफी बेहतर साबित होता यदि ट्रंप विश्व स्वास्थ्य संगठन की सदस्यता को छोड़ने की घोषणा न करके उस संस्था के अंदर रहकर ही उसमें सुधार की मांग के लिए सदस्य देशों को तैयार कर लेते परंतु ऐसा संभव न हो सका और अमेरिका की अस्पष्ट नीति के कारण चीन इस संगठन पर अपना अनुचित प्रभाव जमाने में सफल रहा।

राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप का ईरान के साथ संपन्न परमाणु समझौते से बाहर आना भारत के हितों को काफी चोट पहुंचाने वाला कदम साबित हुआ। एक ओर भारत को ईरान से प्राप्त होने वाला सस्ता पेट्रोल एवं प्राकृतिक गैस का रास्ता बंद हो गया। दूसरी ओर भारत द्वारा ईरान में विकसित किए जा रहे चाबहार बंदरगाह के सामरिक उद्देश्यों की प्राप्ति में व्यवधान उत्पन्न हुआ। इस बंदरगाह के जरिए अफगानिस्तान के माध्यम से मध्य एशिया में सीधी पहुंच बनाने का प्रयास कर रहा है। पश्चिम एशिया के हितों को ध्यान में रखते हुए अमेरिका के भावी राष्ट्रपति जो बाइडन के लिए ऐसा करना बहुत मुश्किल भरा कदम होगा कि वह इस समझौते पर पुनर्विचार कर सकें। लंबे समय से अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में तैनात हैं और अमेरिकी सैनिकों की वापसी के लिए डोनाल्ड ट्रंप ने तालिबान के साथ एक वार्ता भी शुरू की थी परंतु यह वार्ता बिना किसी समझौते पर पहुंचने से पहले ही ट्रंप द्वारा भंग कर दी गई।

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इस वार्ता की सबसे बड़ी कमजोरी यह रही कि इसमें अफगानिस्तान सरकार को मुख्य भूमिका में नहीं रखा गया और यह केवल आतंकी संगठन तालिबान और अमेरिका के बीच ही संपन्न हुई थी। जबकि भारत के हित अफगानिस्तान से मजबूती से जुड़े हैं और भारत अफगानिस्तान में अनेक परियोजनाओं के साथ ही आतंकवाद प्रभावित इस देश के आधारभूत ढांचे के विकास में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान निभा रहा है। भारत अफगानिस्तान में शांति का पक्षधर रहा है और भारत की चिंता है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान के लिए फ्रंट लाइन स्टेट है और अपनी इस भूमिका का दुरूपयोग करते हुए वह भारत में बड़ी आतंकी घटनाओं को अंजाम दे सकता है। अब यह देखना होगा कि जो बाइडन अपने कार्यकाल में अफगानिस्तान की समस्या का निपटारा करने में सफलता प्राप्त करते हैं या अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की तैनाती को यथावत बनाए रखते हैं।

आज विश्व एक बदले हुए दौर में प्रवेश कर चुका है। वर्तमान स्थिति यह है कि विश्व एक ध्रुवीय से बहु ध्रुवीय विश्व की ओर बढ़ रहा है। विश्व के सम्मुख जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, प्राकृतिक आपदा, गरीबी, बेरोजगारी, भूखमरी इत्यादि वैश्विक समस्याएं मौजूद हैं जिनका समाधान विश्व समुदाय को साथ मिलकर करना होगा और इसके लिए सहयोगी रवैया अपनाए जाने की आवश्यकता है। विश्व में अमेरिका को सुपर पॉवर का दर्जा प्राप्त है। अतः विश्व के अन्य देश यह आशा व्यक्त करते हैं कि सुपर पॉवर होने के नाते अमेरिका प्रमुख वैश्विक समस्याओं से निपटने में उन्हें नेतृत्व प्रदान करें। अमेरिका के निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने कार्यकाल में संरक्षणवाद को बढ़ावा प्रदान कर रहे थे और एक प्रभावी कूटनीति के बजाय अस्पष्ट एवं उलझी हुई कूटनीति और अपने मनमौजी स्वभाव के कारण विश्व में अमेरिकी प्रभाव को कम करने पर तुले थे

परंतु आशा है कि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन अपने 5 दशकों के राजनीतिक एवं प्रशासनिक अनुभव के साथ मजबूत कूटनीति का प्रयोग करते हुए विश्व राजनीति में भारत की बढ़ती भूमिका को स्वीकार कर चीन के प्रभाव को संतुलित करने में सफल साबित होंगे और भारत एवं अमेरिका के संबंधों को एक नई ऊंचाई प्रदान करेंगे।

लेखक: राजनीतिक विश्लेषक एवं अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं. (डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.)