Vote without voter id

मतदाताओं को एक संबोधन (An address to voters) पूजा आर झीरीवाल

Puja jhiriwal Alwar Rajstahn, An address to voters
पूजा आर झीरीवाल, चार्टेड एकाउंटेंट
अलवर, राजस्थान

An address to voters: हाल ही में भारतीय राजनीति में उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुनाव हो रहे हैं। अभी इसका प्रथम चरण हुआ। उत्तर प्रदेश देश का वह राज्य है जो सर्वाधिक विधानसभा की सीटें रखता है । लोकसभा और राज्यसभा में इसी आधार पर यह बड़ी भूमिका निभाने वाला राज्य है। और सामान्यतया यह प्रचलित है कि यह राज्य भारत के लोकसभा के चुनाव की भी जमीन तय कर देता है । और आज की परिस्थिति में तो यह बात बहुत अधिक स्पष्ट है। वर्तमान में देश ऐसी परिस्थिति से गुजर रहा है, जहाँ धर्म के नाम पर आंदोलन हो रहे हैं या देश की बडी मीडिया हाउसेस के जरीये धर्म को देश की प्रथम समस्या के रूप में बहुतायत से दिखाया जा रहा है । ये व्यवस्थाएँ जिन्हें १९४७ से शांत व व्यवस्थित करने की कोशिश की गई थी वो कुछ वर्षो से पुनः सामने आ रही है।


एक विश्लेषण कहता है कि कुछ देश मे आतंकवाद का कारण यह रहा कि वहाँ धर्म को प्राथमिकता दी जाती हैं । अतः इसी नीति से उनकी युवा शक्ति बेरोजगार रहती है । इसी बेरोजगारी का फायदा उठाकर यूथ का ब्रेन वाश किया गया जाता है । इसका उपयोग आतंकवाद/दंगा व्यवस्था हेतु किया जाता है । इसकी एवज मे ऐसे व्यक्तियो को कुछ धन जीविका उपार्जन के लिए भी दिया जाता है ।

भारत में कमोबेश ऐसी ही स्ट्रेटजी पर काम किया जा रहा है । अब देश की राजनीति के लिए इस राह को प्रयोग मे लाया जा रहा है । यहाँ भी राज्य की नीति का मुखर हिस्सा धर्म हो गया है। भारत में आईटी का जितना गलत इस्तेमाल राजनीति मे किया जा रहा है इतना युवा सोशल नेटवर्क के किसी दुष्परिणाम से प्रभावित नही हो रहे है। युवाओं को आईटी सेल में रोजगार देकर उनके द्वारा देश के अन्य जनसंख्या का बुरी तरह ब्रेन वाश किया रहा है ।

भारत की जनसंख्या को इस समय पुनः समूह मे विभाजित किया जा सकता है। इन्हे विशेष रूप से तीन भागों में बांटा जा सकता है ।
पहली… यह जनसंख्या का एक वह समूह है जो सरकारी नौकरी में या बड़ी पेशेवर कार्यों में या बड़े औद्योगिक घराने से संबंधित है या बड़ी प्राइवेट कंपनी में कार्यरत व्यक्ति हैं । यह शांत व पर्याप्त सन्तुष्ट समूह है। यह पूरी तरह वैचारिक विहीन व्यक्ति होते है या इसका बौद्धिक स्तर अन्त मे जाग्रत होता है। इसका कोई भी कारण हो सकता है। सकारात्मक दृष्टिकोण से विचार करे तो ये लोग देश की उत्पादकता में व्यस्त है और अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे है। दूसरा दृष्टिकोण यह कि यह पर्याप्त धन जो पालन हेतु आवश्यक है लगातार प्राप्त कर रहे हैं और व्यस्तता के बाद यह विलासिता को प्राथमिकता देते हैं । इसके अतिरिक्त इन्हे अन्य व्यवस्थाओं के व्यक्तियों से सरोकार नहीं है । यह संकुचित श्रेणी से संबंधित व्यक्ति है, जो व्यक्तिवादी है । यह वास्तविकता में कुए के मेढक के सदृश्य हैं।

ये वही मानसिकता हैं जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सबसे बाद में शामिल हुए थे । अतः इस मानसिकता से परोपकार या वैचारिकता के उच्च स्तर के कार्यो की कल्पना नही की जा सकती। यह स्वयं को पालन हेतु ही उत्पन्न हुए हैं और खुद को पोषित करना इनका जन्म का मुख्य उद्देश्य होता है ।

दूसरी श्रेणी इस समय उन व्यक्तियों की है जो फसाद फैला रहे हैं यह भी दो प्रकार के व्यक्ति हैं एक वह जिन का ब्रेनवाश हो चुका है ये गरीब और बेरोजगार व्यक्ति है । इनके पास सोच का विकल्प ही नही है । किन्तु ये भी अपना मत रखते है। और ये बहुसंख्यक है। ये सडको से संबंध रखते है दूसरे वो जो अपने निर्णय के आधार सोच समझ कर इस श्रेणी में शामिल हुए हैं । और महलो से संबंध रखते हैं। आज भारत कुछ भ्रष्ट लोगों के लिए अनन्त संभावना का देश बन गया है । और ये इसका पूरा लाभ उठा लेना चाहते हैं । देश की इस गलत दिशा से उसे कमाने का सही शब्द लूट का जरिया बना दिया गया है ।अर्थात आज सार्वजनिक धन को जितना हो सकता है लूटा जा सकता है।

देश कुछ इस प्रणाली से संचालित हो रहा है जो देश को व्यापारियों के हाथो में लगातार बेच रहे हैं । इस समय बड़े व्यापारियों के और बड़े होने की संभावना अधिक है । चापलूस व भ्रष्टो द्वारा राजनीति में जाने की संभावनाएं अधिक है और राजनीतिक प्रेरित न्यायिक निर्णय देकर बडे पद स्वीकृत करने की प्रबल संभावना है । यहाँ सार्वजनिक हित गौण हो चुके हैं । केवल यहां व्यक्तिगत विकास की प्रबल संभावनाएं हैं । चाहे प्रोफेशनल हो या अधिकारी सभी अपने पहचान और पद की संभावनाओं को प्राप्त करने के लिए बहुत प्रयास कर रहे हैं । उन्हें ऐसा लगता है कि भविष्य में ऐसा विलक्षण अवसर नही मिलेगा अतः जितना हो सकता है अपनी भावी पीढ़ी के लिए धन संचित कर लिया जाए। यह प्रथम श्रेणी से विपरीत भविष्यमुखी है । जहां प्रथम श्रेणी वर्तमान विलासिता से ही संतुष्ट है ।

भारत में स्वतंत्रता के समय ऐसे ही समूह की एक श्रेणी होती थी जो अंग्रेजों के कर्मचारी और अधिकारी या कहीं-कहीं भारत के कुछ लोगों को न्यायपालिका का हिस्सा भी बनाया गया था । यह समूह वास्तविक रूप से नुकसान देय है। इस समूह ने आजादी मे योगदान नही दिया किन्तु उपभोग पूरा किया है।

जनसंख्या की तीसरी श्रेणी की बात करते हैं । यह श्रेणी पूर्ण जागृत व उच्च वैचारिकता का स्तर रखती है । यह वह श्रेणी है जिसमें ना केवल भारत के इतिहास, धर्म, संघर्ष को जाना है बल्कि अन्य देशों के इतिहास, धर्म और संघर्ष को भी पढा़ है । और वहाँ से ज्ञान अर्जित करके एक ही निष्कर्ष पर आए हैं कि हम मनुष्य हैं और मानवता इस व्यवस्था का प्रथम धर्म है । हम अगर प्रणाली में रहते हैं तो वहां माननीय नियम (संविधान) ही पालन योग्य है । अगर हम प्रणाली को छोड़ देते हैं अर्थात सन्यासी हो जाते हैं तो अपनी व्यक्तिगत धर्म पालन सार्वजनिक कर सकते हैं ।

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अर्थात यह श्रेणी मानवीयता, बंधुत्व, सीमा निर्धारण, युद्ध की हानि आदि सभी शब्दों व उनके परिणाम से पूर्ण परिचित हैं । ये लोग अत्याचार के खिलाफ प्रथमतः आवाज उठाते है । परोपकार के लिए स्वयं को मृत्यु की संभावना से पीछे नहीं हटाते है । यह श्रेणी कभी भी किसी व्यक्ति के विचार पर कार्य नहीं करती अपितु आदर्श, मानवीय मूल्यों व बंधुत्व के सिद्धांत पर कार्य करती है । भारत में ऐसा विलक्षण समूह भी विद्यमान है, चाहे बहुमूल्य पत्थर की भांति उनकी जनसंख्या कम ही क्यों ना हो, किंतु उनका होना ही पर्याप्त है । ये ही समय-समय पर अत्याचार के विरुद्ध समानता, न्याय, बंधुत्व मानवीयता की स्थापना के लिए आगे आकर नेतृत्व करते हैं । यह श्रेष्ठ साहित्यकारों हो सकते हैं विचारक हो सकते हैं यह किसी भी क्षेत्र से संबंधित हो सकते हैं । यद्यपि यह ब्रेनवाश का युग है किंतु उनके मनोबल की परिपक्वता सही सिद्धांतों को पुनः स्थापित कर पाएगी ।

भारत की स्वतंत्रता के समय भी ऐसे ही लोग थे । जिनके नाम व भूमिका मार्गदर्शन के लिए सभी को याद कराए गए होंगे। वह सभी नाम चाहे इस देश को बनाने की भूमिका में रहे या अन्य देशों को बनाने की भूमिका में । किन्तु गलत मानसिकता व स्वार्थी मानसिकता के द्वारा इस समूह के वैचारिक सिद्धांतो को जितना गिराने का प्रयास किया जाता है उतना ही यह चमक उठता है ।

आज देश के लोगों का ब्रेनवाश करके एक लाइन याद करा दी गई है कि देश में नेतृत्व के लिए कोई योग्य व्यक्ति नहीं रहा है । यद्दपि ऐसा सत्य नहीं है । देश के नागरिकों को अपना मूल्यवान मत सही व्यक्ति को पूर्णतः विकास व नैतिक मूल्यों को विचार कर करना चाहिए।
वह सरकार हो जो
१. बाल्यावस्था के लिए सुनिश्चित करें कि प्रत्येक जन्म लेने वाला शिशु कुपोषण का शिकार नहीं होगा ।
२. यह सुनिश्चित करें कि देश के सभी व्यक्तियों को सस्ती एवं मुफ्त शिक्षा व्यवस्था उपलब्ध कराई जाएगी जो उच्च स्तरीय होगी ।
३. सुनिश्चित करें कि प्रत्येक व्यक्ति को एक आवास सस्ती दरों पर उपलब्ध कराने की व्यवस्था देश करेगा ।
४. सुनिश्चित करें कि देश में प्रत्येक व्यक्ति को रोजगार उसे क्षमता के अनुसार उपलब्ध होगा । अधिकतम सरकारी उपक्रम होंगे उत्पादन की प्रबल संभावनाएं होंगी । निर्यात की संभावनाएं होंगी । देश का निर्यात के दृष्टिकोण से उपयुक्त गुणवत्ता का ध्यान रखा जाएगा ।
५. देश में आधारभूत क्षेत्रों की विशेषताओं की यथा कृषि सड़क बिजली व जल की उपलब्धता होगी।
६. और बहुत कुछ आधार होंगे ।
७. मान्यता का क्रम टूटे नहीं इसलिए अनंत मानवीय संभावना के लिए व्यवस्था होगी कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए जो ६५ वर्ष से अधिक है आधारभूत सुविधाएं मुफ्त होंगी और एक पेंशन की व्यवस्था भी होगी ।

वास्तविकता मे सभी उपरोक्त कार्य द्धारा राज्य देश के नागरिक के प्रति अपना कर्तव्य पूरा कर रहा है। भारत के लोगो को अपने अधिकार की तरफ सजग होना चाहिए ना कि मुफ्त बिजली पानी हेतु। ऐसा नहीं है कि भारत में श्रेष्ठ लोग नहीं बचे हैं, किंतु धर्म का चश्मा उतारना आवश्यक है ।

जो इन उपरोक्त समूह में आते हैं वह तो अपना निर्णय करेंगे ही किंतु शेष लोग जो विद्यार्थी हैं या जो रोजगार चाहते हैं या जो छोटे व्यापारी हैं या जो छोटे पेशेवर व्यक्ति हैं या जो कम सैलरीड पर्सन हैं उनकी एक विशाल जनसंख्या है । वो सोच कर मतदान करें भावी संभावना वर्तमान परिस्थिति का विश्लेषण करें।

यद्यपि सभी व्यक्ति को एक मत का अधिकार है चाहे वह कुछ भी योग्यता रखता है। इसका आधार है मानव होना। अतः यह कि वह मानव है भूले नहीं । और इसी मानवीयता की मानसिकता को बढाने वाली विचार का हिस्सा हो। इस आधार पर मत दे । और एक विशेष तथ्य यह कि युवा नोटा का प्रयोग ना करें इससे बेहतर है कि एक प्रतिभागी के रूप में चुनाव के लिए प्रस्तुत हो जाए और अपना मत स्वयं को ही दे। (यह लेखक के अपने निजी विचार है।)

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