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Rehabilitation of two elephants: ISKCON मायापुर की दो हथिनियां पुनर्वास के लिए वनतारा भेजी गईं

Rehabilitation of two elephants: PETA इंडिया के अभियान का असर

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नादिया, 27 जनवरी: Rehabilitation of two elephants: पिछले साल अप्रैल में ISKCON मायापुर में बिष्णुप्रिया नामक बंदी हथिनी द्वारा कुचलकर एक महावत के मरने की दुखद घटना के बाद, ISKCON मायापुर की दो हथिनियां, बिष्णुप्रिया और लक्ष्मीप्रिया, PETA इंडिया के अभियान के पश्चात्, अब वनतारा  हाथी अभयारण्य, जामनगर में स्थानांतरित कर दी गईं हैं।

अभयारण्य में ये हथिनियाँ अन्य हाथियों की संगत में बिना किसी बंधन के रहेंगे, जहां इन्हें कैद रहने के कारण हुए मानसिक आघात से उबरने का अवसर मिलेगा। बिष्णुप्रिया ने 2022 में भी एक महावत को अपाहिज कर दिया था, जिससे इन हथिनियों का स्थानांतरण और भी ज़रूरी हो गया था।

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इन हथिनियों को स्थानांतरित करने की स्वीकृति माननीय उच्चतम न्यायालय की उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा जारी की गई थी। यह स्वीकृति ISKCON मायापुर द्वारा किए गई अनुरोध पर आधारित थी। इससे पहले पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया ने ISKCON मायापुर से अपने जीवित हाथियों को एक प्रतिष्ठित अभयारण्य में भेजने की अपील की थी।

महावत की हत्या के तुरंत बाद, PETA इंडिया ने ISKCON मायापुर के सह-निर्देशक, H.H. जयपटक स्वामी को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि वे अनुष्ठानों और जुलूसों में मैकेनिकल अर्थात यांत्रिक हाथियों का उपयोग करें और बिष्णुप्रिया और लक्ष्मीप्रिया नामक हथिनियों को पुनर्वासित करने के लिए कदम उठाएँ। बिष्णुप्रिया को 2010 में ISKCON मायापुर लाया गया था, जबकि लक्ष्मीप्रिया 2007 में आई थी। इन दोनों हथिनियों का उपयोग ISKCON मायापुर में त्योहारों और अनुष्ठानों में किया जाता था।

बिष्णुप्रिया और लक्ष्मीप्रिया, इन दोनों हथिनियों के पुनर्वास का स्वागत करते हुए, PETA इंडिया की डायरेक्टर ऑफ एडवोकसी प्रोजेक्ट्स खुशबू गुप्ता ने कहा, “हम ISKCON की सराहना करते हैं, जिन्होंने बिष्णुप्रिया और लक्ष्मीप्रिया नामक हथिनियों को वनतारा भेजकर उनके पुनर्वास के लिए करुणामई कदम उठाया। हम आशा करते हैं कि इस कदम से अन्य मंदिर और संस्थाएं भी बंदी हाथियों को पुनर्वास के लिए भेजने की प्रेरणा लेंगी। आजकल, यांत्रिक हाथी सभी जरूरी कार्य कर सकते हैं, जिससे जीवित हाथियों को पुनर्वास या अपने प्राकृतिक घर यानी जंगलों में ही रहने का मौका मिल सकता है।

PETA इंडिया ने 2023 की शुरुआत में मंदिरों में जीवित हाथियों के हित में यह सहानुभूतिपूर्ण आंदोलन शुरू किया। आज, दक्षिण भारत के मंदिरों में बारह से ज़्यादा यांत्रिक हाथियों का उपयोग किया जा रहा है, जिनमें से सात को दान करने में PETA इंडिया का योगदान शामिल था। इन दानों द्वारा मंदिरों के कभी भी जीवित हाथियों को रखने या किराए पर लेने के निर्णय को सम्मानित एवं मान्यता दी गई। अब इन यांत्रिक हाथियों का उपयोग मंदिरों में अनुष्ठानों को सुरक्षित और क्रूरता-मुक्त तरीके से करने के लिए किया जाता है।

यांत्रिक हाथियों की लंबाई कुल 3 मीटर और वजन कुल 800 किलोग्राम होता है। यह रबर, फाइबर, मेटल, जाल, फोम और स्टील से बने होते हैं और पाँच मोटरों की मदद से काम करते हैं। यह सभी हाथी बिल्कुल किसी असली हाथी की तरह दिखते हैं और इनका उपयोग भी उसी रूप में किया जाता है। यह अपना सिर, कान और आँख हिला सकते हैं, अपनी पूंछ घुमा सकते है, अपनी सूंड उठा सकते है और यहां तक ​​कि भक्तों पर पानी भी छिड़क सकते है।

इन हाथियों की सवारी भी की जा सकती है और इन्हें केवल प्लग लगाकर एवं बिजली से संचालित किया जा सकता है। इन्हें सड़कों के माध्यम से स्थानांतरित किया जा सकता है और इनके नीचे एक व्हीलबेस लगा होता है जिसके जरिये इन्हें अनुष्ठानों और जुलूसों के लिए एक जगह से दूसरी जगह लेकर जाया जाता है।

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हाथी जंगल में रहने वाले बेहद समझदार, सक्रिय और मिलनसार पशु होते हैं। प्रदर्शन हेतु उपयोग करने के लिए इन कैदी पशुओं का मानसिक मनोबल मार-पीटकर और विभिन्न प्रकार की यातनाएँ देकर पूरी तरह से समाप्त कर दिया जाता है। मंदिरों और अन्य स्थानों पर बंदी बनाकर रखे गए हाथियों को जंजीरों से जकड़कर घंटों तक कंक्रीट की ज़मीन पर खड़े रहने के लिए बाध्य किया जाता है जिस कारण उन्हें पैरों के दर्दनाक घावों और समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनमें से अधिकांश पशुओं को पर्याप्त भोजन, पानी, पशु चिकित्सकीय देखभाल और प्राकृतिक परिवेश से वंचित रखा जाता है।

इस प्रकार की दयनीय परिस्थितियों के चलते कई हाथी अत्यधिक निराशा का सामना करते हैं और हमला करके अपने महावत या आसपास के लोगों को मौत के घाट उतार देते हैं। ‘हेरिटेज एनिमल टास्क फोर्स’ द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, केरल में बंधी हाथियों ने पिछले 15 साल की अवधि में 526 लोगों की जान ली है।

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