Woman: मत करो यूँ तिरस्कार इनका, तुम्हारे घर की नींव इनसे ही है
स्त्री(Woman)
Woman: सदा जीती दूसरों के खातिर
फिर क्यों स्त्री का सम्मान नहीं,
क्या वह है एक स्त्री इसलिए
उसका कोई मान नहीं!
जीती सदा ही गला घोटकर
स्त्री अपने अरमानों को,
फिर भी रखती है जीवित
अधरों पर मुस्कानों को!
जब भी जीना चाहे अपने लिए
क्यों दुश्मन बनता है जमाना,
है उनमें भी कुछ आकांक्षाएं
क्यों बार-बार पड़ता समझाना!
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अंतरिक्ष में जब उड़ान
भर सकती है स्त्रियाँ,
फिर कंधे से कंधा मिलाकर
क्यों नहीं चल सकती है स्त्रियाँ!
ढूंढती है बस अवसर स्त्रियाँ
चाहती है हुनर दिखलाना,
आता है बखूबी इनको
राहों से पत्थर सरकाना!
कदापि मत समझना इनको अबला
ये तो तेजस्वी वामा है,
जननी होकर इसने
पूरे ब्रह्मांड को थामा है!
मत करो यूँ तिरस्कार इनका
तुम्हारे घर की नींव इनसे ही है,
कर्तव्यों भरा दायित्व और
तुम्हारी सफलता भी इनसे ही है!
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