Munshi Premchand: गबन और मुंशी प्रेमचंद जी की प्रासंगिकता
Munshi Premchand: प्रेम के विषय पर उनके विचार बिल्कुल स्पष्ट थे- “•••विलास पर प्रेम का निर्माण करने की चेष्टा करना उसका अज्ञान था।
Munshi Premchand: गबन उपन्यास प्रेमचंद जी की एक कालजयी रचना है। तीसरी बार पढ़ने पर भी इस उपन्यास की विस्मयकारी क्षमता यथावत थी। इस बार भी एक लेखक के रूप में श्री प्रेमचंद जी ने और अधिक गहराई से अंतरमन पर असर छोड़ा। कैसे कोई लेखक इतना अधिक यथार्थ चित्रण कर सकता है, उससे भी बड़ी बात कैसे कोई इतनी विश्वसनीयता से और इतने अधिक विश्वास पूर्वक एक आदर्श परिस्थिति की कल्पना कर सकता है। मुंशीजी द्वारा कल्पित आदर्श स्थिति यथार्थ और प्राप्य महसूस होती है। यही इस कलम का और इन हस्ताक्षर का सामर्थ्य है। ना भूतो न भविष्यति । निश्चय ही मुंशी जी कथा सम्राट है।
‘गबन’ एक मध्यमवर्गीय आकांक्षाओं की पूर्ति की उत्कंठा में अपनी नैतिकता में गबन की कथा है । लगभग एक शताब्दी के पश्चात भी मध्यम वर्ग की आकांक्षाएं, इस वर्ग की लिप्सा और येन केन प्रकारेण लोभवृत्ति को संतुष्ट करने की उत्कंठा भारतीय समाज में ज्यों की त्यों है। गबन के प्रयासों से घर भरने की लालसा के किस्सों से सभी अखबार पत्र पत्रिकाएं भरी रहती है। इन परिस्थितियों में गबन का आदर्शवाद दूर क्षितिज से आती नव प्रभात किरण सा महत्वपूर्ण आज भी है।
जालपा -जग्गो हो या रतन – जोहरा, गबन उपन्यास महिला सशक्तिकरण का आकाश है। मर्यादा और आधुनिकता के कांचन योग से परिपूर्ण गबन की महिलाओं की वज्र के समान कठोरता नारी जाति को नर जाति पर स्वभाविक रूप से श्रेष्ठ साबित करती है। यही नहीं, इन महिलाओं में समाज में आमूलचूल परिवर्तन की क्षमता है। जालपा के चरित्र का गठन मुंशी जी के इस दर्शन को व्यक्त करता है, जिसमें उन्हें विश्वास है कि नारी एक भटके हुए पुरुष को ही नहीं संपूर्ण भटके समाज में नैतिकता का संचार कर प्रगतिशील बना सकती है। जग्गो की कर्मठता रमानाथ में पौरुष और कर्मशीलता जगाती है। जालपा रमानाथ के लिजलिजेेपन को अपने त्याग, सेवा और प्रेम से दूर कर सत्यनिष्ठ बनाती है। यहां तक कि वेश्या जोहरा को भोग की बजाय जीवन के श्रेष्ठ मूल्यों की उपासक बनाती है।
भारतीय समाज में होने वाले बेमेल विवाह में नारी पर भावनात्मक अत्याचार को भी रतन नामक चरित्र की सहायता से रेखांकित किया। अपनी नियति समझ एक बूढ़े व्यक्ति की विवाहिता की भांति जीवन यापन करती रतन अपनी नैसर्गिक भावनाओं को उत्सव एवं जलसों की ओर मोड़ खुश रहने का प्रयास करती है। लेकिन मुंशी जी बड़े कठोर शब्दों में रतन के मुख से यह कहलवाते हैं कि “••• बहनों, किसी सम्मिलित परिवार में विवाह मत करना और अगर करना तो जब तक अपना घर अलग ना बना लो चैन की नींद मत सोना। अगर तुम्हारे पुरुष ने कुछ छोड़ा है तो अकेली रह कर तुम उसे भोग सकती हो, परिवार में रहकर तुम्हें उस से हाथ धोना पड़ेगा•••” कितना दर्द है ठगे जाने का!
उपन्यास गबन का सबसे पसंदीदा चरित्र निसंदेह जालपा ही हो सकती है। अपने सभी मानव सुलभ कमियों को अदम्य साहस के साथ स्वीकार करती है और जिम्मेदारी लेती जालपा आज की युवतियों के समक्ष एक यथार्थ आदर्श प्रस्तुत करती है। भले चंद्रहार एवं गहनों के आकर्षण में धन के कलुषित स्रोत की ओर आंखें मूंदे रहे, लेकिन जब एक बार अपनी कमजोरी का एहसास हो गया तो बड़ी कठोरता से संयम एवं मर्यादा का मार्ग चुना। और विवेकपूर्ण तरीके से उस मार्ग पर चल आदर्श प्रस्तुत किया।
अपने त्याग, बलिदान और प्रेम के अनुपम मूल्यों से रमानाथ और जोहरा में गांधी बाबा के हृदय परिवर्तन का आलोक जगाती है। सत्य के आदर्श पर अपने जीवन को न्योछावर कर भी कम समझती है ।क्रांतिकारियों को बचाने और सत्य की मशाल को और ऊंचा करने के लिए अपने पति और तंत्र से टकराने में रत्ती भर संकोच नहीं करती है। पश्चाताप करने हेतु दिनेश के परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेकर रमानाथ और जोहरा को सेवा, त्याग और प्रेम का महत्व सिखाती है।
प्रेम के विषय पर उनके विचार बिल्कुल स्पष्ट थे- “•••विलास पर प्रेम का निर्माण करने की चेष्टा करना उसका अज्ञान था। प्रेम त्याग और सेवा पर ही विकसित हो सकता है। विलास तो प्रेम उपवन के दरवाजे तक पहुंच कर लौट जाना है। त्याग और सेवा से ही उस प्रेम रूपी उपवन की शीतलता और मादकता का आनंद लिया जा सकता है।” व्यवस्था का सटीक और सुंदर विश्लेषण इससे अधिक नहीं हो सकता कि “••• बाल बच्चों वाला आदमी कायर हो जाता है•••।”
गबन उपन्यास(Munshi Premchand) में गबन वैसे तो मुंसिपल बोर्ड के मुंशी के रूप में रमानाथ द्वारा कुछ सैकड़ों रुपयों का था, लेकिन गबन हर अनैतिक लाभ को गबन कहता है। मूल रूप में गबन का हेतु महिलाओं का आभरण के प्रति विवेकहीन आकर्षण था, तो अपने बेटे रमानाथ के विवाह में दिखावे के लिए अपनी ₹50 मासिक आमदनी के बावजूद भी ₹3000 के गहने बना भेंट करना भी गबन ही है। इन ₹3000 के वजन के असहनीय होने पर रमानाथ द्वारा अपनी पत्नी के गहने चुराना भी गबन है, तो उसके पिता दयानाथ द्वारा उसका विरोध नहीं कर पाना भी तो गबन है। अपनी जिम्मेदारियों से मुंह छुपा कर रमानाथ का भाग जाना गबन है, तो अपने स्वार्थ के लिए क्रांतिकारियों के खिलाफ शहादत (गवाही) देना भी गबन ही है। प्रत्येक नीति विरुद्ध कार्य गबन है।
गबन उपन्यास में समस्या महिलाओं का गहनों के प्रति स्वाभाविक आकर्षण नहीं होकर मध्यमवर्गीय परिवारों का मतिभ्रम है, जिसमें यह वर्ग सदैव अधिक के सपने देखता है और अधिक की प्राप्ति हेतु नैतिक आचरण से समझौता करने से भी गुरेज नहीं करता है। मुंशी जी ने इस समस्या पर गंभीर चोट की। साथ ही साथ अनेक सामाजिक समस्याओं पर भी प्रकाश डाला। पति पत्नी के रिश्ते के विभिन्न आयाम जालपा- रमानाथ, वकील साहब – रतन और देवीदीन -जग्गो के रूप में वर्णित कीये। रिश्वत, औपनिवेशिक पुलिस तंत्र को भी आड़े हाथों लिया।
मुंशी जी का गबन काल की गणना से निरपेक्ष वर्तमान में भी समान रूप से प्रासंगिक है। मुंशी जी द्वारा सुझाए गए आदर्श मुंशी जी (Munshi Premchand) की लेखनी के दम पर पूर्णतया यथार्थ लगते हैं। मुंशी जी के चिरयोवन सहित्य में गबन आज भी एक षोडशी है। आज भी गबन में नवौढा की उत्सुकता है, तो प्रोढा की समझ भी है। गबन मेरा कथानक है। पात्र मेरे अपने नातेदार और रिश्तेदार है। परिवेश मेरा अपना है, मेरा ही समाज और देश है। गबन मेरे समाज का वर्तमान भी है। गबन कालातीत है (डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.)