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Maa: वो है हमारी प्रणायिनी माँ

Maa: !!माँ!!

Utsav kumar
उत्सव कुमार आर्या, बेगूसराय, बिहार

Maa: अँगुली धरन हमें चलना सिखाई वो,
बगैर मोह के परिचर्या करती वो,
निस्वार्थ मानस से स्नेह करती वो,
अपने हस्तों सेे खाना सिखाई वो,
वो हैै हमारी प्रणायिनी माँ।

पग-पग पर कंटक बिछाएँ थे मेरे निजों ने,
उन्हीं कंटक पर चल जिसने मुझे पाला है,
जीवन में अच्छे-बुरे का संकेत देती है वो,
जिसकी गोद में जन्नत का सुख संप्राप्ति है
वो है हमारी प्यारी माँ।

जग के साथ अनमोल रिश्तों में,
सबसे गहता रिश्ता होता माँ का,
अकसर पात्र हो जाने पर मनुज,
माँ के रिश्ते को ही भग्न देते है,
वो है हमारी अमूल्य धरोहर माँ।

जिन्हें न मिलता माँ की ममता,
तड़ुपता माँ की ममता पाने को,
जब भी मिली हमें विफलता हैं,
सफलता का पथ दिखाई है वो,
वो है हमारी मर्मज्ञ माँ।

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