Jee raha hu: जी रहा हूं अब खुद को भुलाकर…!
Jee raha hu: !!जी रहा हूं!!
हर रोज डसती है मुझको तन्हाई
बैरन-सी लगने लगी यारा जुदाई
दर्द-ए-दास्तां नहीं जाती सुनाई
क्यों तुम्हें कुछ नही देता दिखाई
अपने ही जख्मों पे नमक लगाकर
जी रहा हूं अब खुद को भुलाकर…!
ना जाने का तुमने इरादा किया था
एक रोज मुझसे ये वादा किया था
अब क्यों खफा से लगने लगे हो
प्यार मुझे मुझसे ज्यादा किया था
तेरी यादें अपने सीने पर सुलाकर
जी रहा हूं अब खुद को भुलाकर…!
नींद आती नहीं है आजकल रात में
ना रही अब कशिश किसी बात में
तेरे चेहरे की सुर्खियां नज़र आती हैं
दर्द मिला हो जैसे उसको सौगात में
थक गया हूं तुमको पास बुलाकर
जी रहा हूं अब खुद को भुलाकर…!
आग दिल में लगी गली झूमने लगी
मोहब्बत आकार दामन चूमने लगी
कैद थी जो कभी अपनी ही कैद में
आरजूयें गालियां चौबारे घूमने लगी
चूमकर के माथा गले से लगाकर
जी रहा हूं अब खुद को भुलाकर…!
अरमान दिल के खाक में मिल गए
सुलगे, जले, फिर राख में मिल गए
ख्वाईशें दिल की मचलती रह गई
गीत ओजस के भी राग में मिल गए
देखूंगा किसी रोज नज़रें मिलाकर
अभी जी रहा हूं खुद को भुलाकर…!
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