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अनोखा मिलन Anokha Milan: मोहित कुमार उपाध्याय

कहानी – अनोखा मिलन (Anokha Milan)

Anokha Milan: ‘मैंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम ए की डिग्री ली है रोहण, मग़र आज तक मैं ख़ुद ही यह बात समझ नहीं पाई कि किसी दरिया की तरह इस उर्दू साहित्य रूपी समंदर की तरफ़ क्यों बहने लगी हूँ मैं ?’
सान्या की धीर गम्भीर मग़र बेहद मीठी आवाज़ में एक उलझन भी सुन पा रहा था रोहण।

‘या शायद ये भी हो सकता हैं कि बचपन से ही मुझे जिन लोगों का साथ मिला है, उन्हें बेहद अदब के साथ उर्दू बोलते देखकर मुझे ख़ुद ब ख़ुद उर्दू जुबां से मोहब्बत होने लगी हो। वजह कोई भी हो मग़र यह सच हैं कि उर्दू साहित्य को न केवल मैंने सिविल सर्विस की मुख्य परीक्षा के वैकल्पिक विषय के रूप में चुना हैं बल्कि यह मेरा सबसे अच्छा दोस्त भी हैं जो किन्हीं भी विपरीत परिस्थितियों में मेरा साथ नहीं छोड़ता हैं।’

‘जब जब उदास होती हूँ ग़ालिब मियां की शायरी पढ़ लेती हूँ या फिर गुलज़ार साब या जावेद साब के नए ज़माने के गीत गुनगुना लेती हूँ।’
उसने एक साथ बिना रुके अपनी बात कहकर ख़त्म की।

‘अच्छा तो सान्या ये बताओ, ये जो तुम्हारी मीठी सी आवाज़ है, इसका श्रेय किसे दोगी तुम ? इस उर्दू जुबां को या फ़िर अपने अल्लाह मियां को?’

‘आपके इस सवाल का जवाब आप ख़ुद ही हैं जनाब। क्योंकि मुझे तो यह लगता है कि ऊपर वाले ने मुझे यह सौगात हम दोनों के मिलने की वजह बनाकर दी है।’
खिलखिलाकर जवाब आया था उस ओर से।

हर शाम रोहण और सान्या कोचिंग सेंटर से लौटकर अपने अपने पीजी के कमरों में ख़ुद के अकेलेपन से जूझते रहते। हालाँकि एक दूसरे की तऱफ झुकाव दोनों ही महसूस करते तो थे मग़र जताने की पहल कौन करे ? हर शाम यूँ ही इधर उधर की बातें करके एक दूजे के मन की थाह लेने की कोशिश करते। उनके मन की बात एक दूजे तक पहुँच जाए, ऐसा कोई टॉपिक छेड़ देते। जिसमें दोनों ही एक हद तक सफल भी हुए।

दिल्ली जैसे शहर में जहां कोचिंग संस्थान लाखों अभ्यर्थियों को सिविल सर्विस में शतप्रतिशत सफलता की गारंटी का विश्वास दिलाने में न केवल आपसी प्रतिस्पर्धा जीतने में सफल होते हैं बल्कि इस नेक काम के एवज में उनसे मोटी रकम भी वसूलते हैं जो किसी साधारण व्यक्ति की पहुंच से कोसों दूर नजर आती है।

इन सभी वजहों से शायद भारत में छोटे शहरों एवं निम्न मध्यवर्गीय परिवार के छात्र छात्राएं सिविल सर्विस जैसी प्रतिष्ठित सेवा में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाते हैं जैसे कि अन्य सरकारी सेवाओं में देखने को मिलता है। सान्या और रोहण दोनों निम्न मध्यवर्गीय परिवार से ही संबंधित थे। दोनों ही का भाग्य सम्भवतः अच्छा था जो उनके घरों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी न होने के बावजूद उन दोनों को ही यहां कोचिंग सेंटर में आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

सिविल सर्विस परीक्षा की व्यवहारिक जटिल प्रक्रिया से रूबरू होने के पश्चात् दोनों आपसी संवाद के माध्यम से एक दूसरे के मानसिक तनाव को कम करने का प्रयास करते और अत्यधिक प्रतिस्पर्धा के होते हुए भी आपसी तैयारी में भरपूर सहयोग की भावना को बनाए रखते। दोनों ही अपने भविष्य के प्रति चिंतित तो थे मग़र परस्पर आकर्षण भी उन दोनों ही से छिपा न रह गया था।

दोनों ही एक-दूसरे को आजकल के लड़के लड़कियों की भांति तू तड़ाक नहीं बल्कि बेहद सम्मानजनक सम्बोधन द्वारा पुकारा करते थे और यही बात इन दोनों की दोस्ती को एक नया आयाम प्रदान करती थी।

इस के भी दो कारण हैं – अगर उम्र के दृष्टिकोण से देखा जाए तो सान्या उम्र में रोहन से कुछ वर्ष बड़ी थी और जहां तक सिविल सर्विस की तैयारी की बात की जाए तो रोहण ने उससे थोड़ा पहले सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी शुरू की।

सार यह कि सानिया ने अंग्रेज़ी साहित्य में एम ए के पश्चात् सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी आरंभ की, वहीं रोहण ने इण्टर के पश्चात अपने गृह जनपद मेरठ से प्रस्थान करके दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान विषय के साथ स्नातक की पढ़ाई शुरू की और स्नातक के दौरान ही सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी आरम्भ कर दी थी।

कभी कभी इन बातों को आधार बनाकर दोनों मजाक में ही सही लेकिन मजबूत तर्कों के साथ एक दूसरे का सीनियर बनने का प्रयास करते थे।

रोहण का यह तर्क सान्या के तर्क पर हमेशा भारी पड़ता कि जब दिमाग जागृत अवस्था में होता हैं और ह्रदय ईश्वर के बनाए नियमों में विश्वास रखता हैं तब वहां कोई उम्र से छोटा बड़ा नहीं होता हैं बल्कि प्रकृति के सर्वश्रेष्ठ जीव की रचना के गुणों से भरपूर एक भरा पूरा मनुष्य होता है।

इन सभी कारणों के सम्मिलित प्रभाव से सान्या व्यवहारिक जीवन में रोहण को स्वयं से आगे पाती थी।

जनवरी का महीना। जाड़ा पूरे यौवन पर था। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो ठंडी हवाएं रात का इंतजार न करके शाम ढलते ही दिल्लीवासियों को उनके घरों के भीतर कैद कर देना चाहती हो। और उसकी इस खुरापात में ढलती शाम भी पूरे मनोयोग से मानो उसका सहयोग कर रही है।

मानो जंग में हारे योद्धा ने फिर से जीतने का अवसर प्राप्त कर लिया हैं और वह इस अवसर का भरपूर लाभ उठाना चाहता है।

शायद, आज सुबह घर से निकलते समय, हल्की खिली धूप के कारण सान्या मौसम के ऐसे यकायक बदल जाने का अनुमान नहीं लगा पायी और रोहण के साथ टी स्टाल पर कड़क चाय का प्याला पीकर भी उसे सर्दी से राहत नहीं मिली।

लाइब्रेरी बंद होने में अभी पूरे 2 घंटे बाकी थे और जून के प्रथम सप्ताह में सिविल सर्विस की प्रारंभिक परीक्षा निश्चित थी एवं परीक्षा के दृष्टिकोण से एक एक मिनट का अपना अलग महत्व था।

इसी मानसिकता के साथ रोहण ने, अपनी सबसे प्रिय जैकेट जो उसने हाल ही में सर्दी आरंभ होने पर खरीदी थी, सान्या के बार बार मना करने पर भी उसे पहनाई व पास के कैमिस्ट से कुछ दवाइयां खरीदकर और सान्या का हाथ अपने हाथ में थामकर बड़ी सावधानी से सड़क पार करते हुए लाइब्रेरी में प्रवेश किया।

धीरे – धीरे सर्दी का जोर कम होने लगा और वैलेंटाइन वीक की सरगर्मियां बढ़ने लगीं।

रोहण के ह्रदय में भी सान्या के साथ मजबूत होते जा रहे संबंधों को लेकर उत्साह था। वैलेंटाइन वीक को लेकर उसकी दिमागी हलचल दिल की धड़कनों के साथ – साथ तेज होने लगीं थीं।

एक पढ़ाई की व्यस्तता के चलते और दूसरे दिखावटी बातों में कम विश्वास रखने के कारण रोहण यह महसूस ही नहीं कर पाया कि सप्ताह के 6 दिन कैसे बीत गये!

वैलेंटाइन डे यानि 14 फरवरी की तारीख ठीक उसके सामने आकर खड़ी हो गई।

उस रात रोहण ने कुछ नहीं खाया। पूरी रात रोहण इसी एक ख़्याल के साथ करवटें बदलता रहा कि यदि सान्या ने उसका औपचारिक प्रेम निवेदन ठुकरा दिया अथवा स्वीकार नहीं किया तो क्या होगा। परन्तु भाग्य को शायद कुछ और ही मंजूर था ….

14 फ़रवरी यानि वैलेंटाइन डे। पिछले कुछ समय से रोहण बड़ी बेसब्री से इसी दिन का इंतजार कर रहा था लेकिन आज ठीक समय आने पर उसके हृदय में उठती प्यार की तरंगे न जाने किस सागर में खो गयीं।

क्लास में पास बैठी सान्या की ओर उसने आंख उठाकर भी नहीं देखा। हर रोज की तरह दोनों ने एकसाथ लंच किया और कुछ समय परीक्षा की तैयारी पर चर्चा में खर्च करने के पश्चात् दोनों के कदम यकायक कोचिंग की लाइब्रेरी की ओर बढ़ गए। लाइब्रेरी में ही दोनों ने अपना बाकी बचा समय तैयारी में लगाया।

रात के लगभग 8 बजे लाइब्रेरी बंद होने पर दोनों एकसाथ मेट्रो स्टेशन पहुंचने की जल्दी में तेज कदमों के साथ आगे बढ़ने लगे, अपने चारों ओर के शोर शराबे को नज़रंदाज़ करते हुए जो उनकी उम्र के हजारों जोड़े पूरे उत्साह के साथ वैलेंटाइन डे की ख़ुशी में जश्न मना रहे थे

न जाने क्यों ? लेकिन आज दोनों चुपचाप, शांत भाव से, बिना एक दूसरे से नज़र मिलाएं मेट्रो स्टेशन की ओर बढ़ते जा रहे थे। भूमिगत मेट्रो स्टेशन के अन्दर पहुंचने पर अचानक पता नहीं कहाँ से रोहण को दैवीय शक्ति प्राप्त हो गई कि अपने बैग से उसने एक छोटा लाल गुलाब का फूल निकाला, घुटनों के बल बैठते हुए उसे सान्या की ओर बढ़ाकर आइ लव यू, आइ लव यू सो मच, यू आर माय लाइफ ……… कह गया। बस, जैसे ही उसे अपने हाथों में पकड़े गुलाब को सान्या द्वारा पकड़ने की एवज में उस के हाथों की छुअन महसूस हुई, वह बांवरा सा दौड़ते हुए अपने गंतव्य की ओर जाने वाली मेट्रो के गेट बंद होने से पहले उसमें प्रवेश कर गया।

सान्या किसी पत्थर की मूर्ति के समान प्रश्न सूचक दृष्टि से एक ओर अपने हाथ में पकड़े लाल गुलाब व दूजी ओर मेट्रो से स्वयं से दूर जाते हुए रोहण को देखने लगीं…..

अपने फ्लैट पर पहुंचकर रोहण ने बिना रात्रि भोज किए केवल सान्या के फोन का इंतजार किया। वह रात केवल इंतजार में ही बीत गयी लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं आया।

एक सप्ताह बीत गया। सान्या का लाइब्रेरी आना बंद हो गया था। रोहण का मन भी अब पढ़ाई से उखड़ने लगा लेकिन इतना सबकुछ होने के पश्चात् भी न तो उसने लाइब्रेरी छोड़ी और न ही सान्या को फोन करके संपर्क करने का प्रयास किया।

कोचिंग के परिसर में, ब्रेक के दौरान, दोस्तों संग टहलते हुए रोहण को अचानक एक दिन दूर से आती हुई सान्या दिखी।

रोहण का मन मयूर खुशी से नाच उठा। वह दौड़कर उसके पास पहुंचा लेकिन नजदीक पहुंचने पर उसने पाया कि वह लड़खड़ाकर चल रही थी।

‘ये क्या हो गया आपको सान्या?’ घबराहट के मारे उसके मुंह से एकाएक सीधा सवाल निकला था।

‘अरे, कुछ नहीं बस यूँ ही थोड़ा सा..’

‘ये थोड़ा सा तो नहीं है सान्या..? सच सच बताओ क्या हुआ है ये ?’ अब वह घबराने भी लगा था।

‘वो दरअसल हुआ क्या कि.. ‘

”कहो भी अब सान्या, मेरा दिल बैठा जा रहा है, कह भी दो अब।’

‘हुआ यूं जनाब कि उस दिन आप तो गुलाब थमाकर निकल लिए मेट्रो में, मैं उस खूबसूरत फ़ूल की प्यारी सी ख़ुशबू में इतनी मदहोश हो गई थी कि भूल बैठी कि सड़क पार कर रही हूँ और दूर से तेज गति से आती कार से टकरा बैठी ।’ झेंपती हुई थोड़ा धीमी आवाज़ में बोली थी वह।

‘ओह, तो यह वजह थी जिससे पिछले कुछ दिनों से लाइब्रेरी भी नहीं आ पा रही थी।’

‘जी बिल्कुल यही वजह थी मेरे प्यारे दोस्त !’

‘सान्या, सच बताओ, मैं क्या हूँ तुम्हारे लिए..?’ उसकी आंखों में भय और अनुनय दोनों ही था।

‘वो रोहण, दरअसल बात यह है कि ..’

‘सान्या प्लीज़ जो भी है सब साफ़ साफ़ कह दो मुझसे आज। सच में अब नहीं हो पा रहा सब्र.. तुम्हारी ख़ामोशी मुझे परेशान कर रही है..!’

‘रोहण, मुझे गलत न समझो तो कहूँ। ‘

‘तुम कहो तो सही सान्या। जानता हूँ, तुम जो कहोगी सोच समझकर ही कहोगे।

‘ सुनो रोहण, मुझे आप में एक सच्चा और प्यारा सा दोस्त और एक शुभचिंतक दिखता है। एक ऐसा दोस्त जिसे कभी खोना न चाहूँगी … मैं नहीं जानती कि मेरा ख्वाब पूरा होगा या नहीं…. पर यह सच है मेरे प्रिय दोस्त कि आने वाले वक़्त में जब भी ख़ुद के बारे में सोचती हूँ तो मैं अपने साथ सिर्फ़ और सिर्फ़ आप ही को देखती हूँ। एक आदर्श प्रेमी के रूप में, जीवनसाथी के रूप में, जो मेरा सम्बल बनकर मेरे जीवन की तमाम मुश्किलों से लड़ने की ताक़त भी है। मग़र हां, इस ख़्वाब के हक़ीक़त होने से पहले एक ख़्वाब और है मेरा… जिसे हम दोनों को मिलकर पूरा करना होगा। बोलो करोगे पूरा मेरा वह ख़्वाब रोहण..?

सान्या की आंखों में असमंजस की स्थिति साफ़ साफ़ दिखाई दे रही थी उसे.. बेहद प्यारी लग रही थी सान्या उसे इस रूप में।

‘देखो रोहण, मैं भी तो एक लड़की हूँ न… मेरे भी कुछ अरमान हैं हर लड़की की तरह… मुझे अब्बू अम्मी की उम्मीदों पर भी खरा उतरना है और ख़ुद के लिए भी जीना है.. मैं एक बेहद परम्परावादी परिवार से आती हूँ जहां एक धर्म से दूसरे धर्म में शादी ब्याह की बात सोचना भी हराम है। मेरा मतलब है बिल्कुल नामुमकिन है। मग़र मुझे मालूम है कि कब कैसे क्या करना है। घरवालों को मनाना इतना भी आसान नहीं होगा मग़र सोच लिया तो सोच लिया. बस जिंदगी सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे ही साथ गुज़ारनी है मुझे अब तो..’

रोहण अवाक रह गया था उस नाज़ुक सी लड़की के बुलंद हौसलों की उड़ान देखकर।

‘रोहण, पहले हम दोनों को ही अपने अपने भविष्य की चिंता करते हुए सिर्फ़ और सिर्फ़ पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए। जिस सपने को पूरा करने के लिए इलाहाबाद से यहां आई हूँ, उसको पूरा करने के लिए खूब वक़्त देना होगा। मगर दूसरी तऱफ ये भी चाहूँगी कि एक आम सी लडक़ी की प्रेम कथा की ही तरह हमारा प्रेम भी समय के साथ साथ पनपे, खूब परिपक्व हो। समझदारी व आपसी तालमेल बढ़े हममें।’

‘सान्या, मुझे नाज़ है तुमपर और तुम्हारी सोच पर। कितनी सहजता से तुम कुछ भी बात कह जाती हो…’

रोहण निरुत्तर हुआ जा रहा था।

जून के पहले हफ़्ते के आखिरी दिन संघ लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षा में सान्या को शामिल होना था। इसके लिए न्यूनतम आयु इक्कीस बरस से कम होने के कारण रोहण प्रारंभिक परीक्षा में शामिल होने के अयोग्य था। मग़र अपनी प्रारंभिक परीक्षा की तैयारी के साथ वह सान्या को हिम्मत और हौसला देता रहता था।

मग़र भाग्य को कुछ और ही मंजूर था……..

प्रारंभिक परीक्षा के ठीक पंद्रह दिन बाद अचानक आधी रात को रोहण के मोबाइल की घन्टी बजी। मोबाइल उठाकर देखा तो स्क्रीन पर सान्या का नाम पढ़कर हड़बड़ाकर उछलकर उठ बैठा। सान्या अनवरत रोये ही जा रही थी। रोहण के लाख पूछने व समझाने पर हिचकियों से भरी आवाज़ में उसने जो कुछ भी बताया, उससे केवल यही समझ आया कि उसे हमेशा हमेशा के लिए दिल्ली छोड़कर इलाहाबाद वापिस लौटना होगा। रोहण द्वारा हर सम्भव कोशिश करने के पश्चात भी वह माज़रा नहीं समझ सका।

हारकर रोहण ने सुबह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मिलने का वादा करके फोन रखा और बेचैनी से करवटें बदलता हुआ सुबह होने का इंतज़ार करने लगा। बड़ी कोशिशों के बावजूद भी जब नींद न आई तो जून की उस तपती रात में, जहाँ ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो आसमान कुपित होकर अग्निवर्षा कर रहा हो, जलती छत पर टहलने लगा। शायद अपने तप्त ह्रदय को और तप्त करने के लिए…

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के उस प्लेटफार्म पर, जहाँ से इलाहाबाद जाने वाली गाड़ी छूटने के लिए तैयार खड़ी थी, रोहण ने देखा कि सान्या रुआंसी खड़ी बड़ी बेसब्री से उसका इंतजार कर रही थी ।

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रोहण के पास पहुंचने पर उसने उसे बाँहों में भर लिया और सिसकियां भरने लगीं। रोहण ने पहली बार महसूस किया कि जीवन में प्रेम का वास्तविक अर्थ क्या होता है ! जो मनुष्य को देवता के समकक्ष लाकर खड़ा कर देता है। रोहण ने महसूस किया कि प्रेम आत्मसमर्पण का दूसरा रूप हैं जो आज ठीक रूप में उसके सामने है ।

स्वयं को टूटकर बिखरने से बचाते हुए और सान्या को सबकुछ ठीक होने की दिलासा देते हुए एवं उसके अच्छे भविष्य की कामना करते हुए रोहण ने उसे नई दिल्ली से इलाहाबाद जाने वाली ट्रेन में बैठाकर रवाना किया। प्लेटफार्म छोड़ती ट्रेन और कोच के गेट पर खड़ी अपनी पहली मोहब्ब्त को ख़ुदसे दूर जाते हुए देखकर उसे ऐसा एहसास हुआ मानों कि दुनिया की यह एकमात्र महिला हैं जो मुझसे निस्वार्थ प्रेम करती हैं लेकिन दुर्भाग्य देखिये कि वे अब कभी मिल नहीं पाएंगे ..

हे ईश्वर! कैसा न्याय है तेरा यह? रोहण ने पास खड़े दोस्त के कंधे का सहारा लेकर भरी आंखों से आसमान की ओर देखकर कहा। हज़ारों सवाल उसकी खामोश आंखों से झरने लगे थे।

संघ लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षा के परिणाम की घोषणा हो गई थी लेकिन उसके बहुत खोजने पर भी सूची में सान्या का नाम नहीं मिला। न ही उसके इलाहाबाद लौटने के बाद से कोई फ़ोन या मैसेज आया था।

निराशा के भाव व छलकती आंखों के साथ वह दिन में कई कई बार फ़ोन पकड़े घण्टों गुमसुम सा बैठा रहता। सान्या का इज़हार ए मोहब्ब्त और शर्तें और फ़िर रेलवे स्टेशन पर भीड़ में उससे गले लगकर रोना, यह सब बातें मिलकर उसे बहुत परेशान कर रही थी।

वक़्त कब किसी के लिए ठहरा है जो अब ठहरता। वह अपनी निश्चित गति से गुजरने लगा था।

बीतते वक़्त के साथ साथ वह दोस्तों से कटने लगा था। दिन भर बस किताबों में डूबा रहता। नतीजा यह हुआ कि उसकी पहली मोहब्ब्त से बिछुड़ने के ठीक तीन साल बाद पहली कोशिश में ही भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन हो गया।

भारत की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के बाद भी उसके चेहरे पर वह खुशी नज़र नहीं आ रही थी जो अन्य सफल अभ्यर्थियों के चेहरे पर दिखाई पड़ रही थी। मोबाइल में पड़े सैकड़ों बधाई संदेशों में भी वह सिर्फ़ उसी लड़की का संदेश खोजने का प्रयास कर रहा था जिसे वह जून की तपती सुबह को रेलवे स्टेशन पर छोड़ आया था।

इसे महज एक संयोग कहना ही उचित होगा या फिर रोहण की किस्मत का कमाल। सार यह हैं कि लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी मसूरी उत्तराखंड से एक निश्चित अवधि का प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात् व अनेकों महिला अधिकारियों द्वारा दिए गए शादी के प्रस्तावों को नकारते हुए रोहण अपनी पहली पोस्टिंग लेने के लिए इलाहाबाद के लिए निकल पड़ा।

वह ऊपरवाले की लीला देखकर दंग था कि उसकी एसडीएम के रूप में पहली नियुक्ति उसी इलाहाबाद में हुई थी जहाँ से उसकी सान्या की यादें जुड़ी थी। इतना समय बीतने और इतनी बड़ी सफलता पाने के पश्चात् भी रोहण न तो सान्या और न ही इलाहाबाद के वह किस्से, जो वह उसे खाली समय में सुनाया करती थी, कभी अपने व्यथित मन से निकाल नहीं पाया।

उसके मन में शायद सान्या को पाने की एक उम्मीद हर पल जिंदा थी जिसमें बराबरी के भागीदार अब उसके माता पिता भी थे जो उसे सान्या से मिलवाने के लिए हाल ही में वृंदावन धाम की यात्रा करके लौटे थे।

रविवार का दिन। नवंबर के महीने का अंतिम सप्ताह चल रहा था जो इस बात का संकेत कर रहा हैं कि यह वर्ष भी पिछले वर्षों के समान समाप्ति की ओर है। ठंड ने अपने पैर पसारने शुरू कर दिए हैं लेकिन उस रूप में दर्शन नहीं हुए कि कोहरा सूर्यदेव को अपने आगोश में लेकर उसकी चमक को कम कर दे। ठंड की इस कमी का फायदा उठाकर रोहण हल्की खिली धूप में दोनों हाथों से पकड़े दैनिक समाचार पत्र में, गर्दन झुकाए, किसी तस्वीर को पहचानने का प्रयास कर रहा था। अचानक मुख्य दरवाजे के सामने सफेद रंग की गाड़ी आकर रुकी और गेट कीपर से अंदर प्रवेश करने का संकेत प्राप्त करते ही तेज गति से आगे बढ़ती है।

गाड़ी की पिछली सीट से उतरकर दो महिलाएं उसकी ओर बढ़ी। एक महिला उसकी कनिष्ठ अधिकारी संध्या थी जबकि दूसरी अनजान महिला काले बुर्क़े में नपे तुले कदमों से उसकी ओर आ रही थी।

औपचारिक अभिवादन के पश्चात रोहण ने दोनों को बैठने का इशारा किया। अचानक बुर्काधारी महिला ने अपने बैग से एक लाल गुलाब का बड़ा गुलदस्ता निकालकर रोहन की ओर बढ़ाया। रोहण को समझ नहीं आ रहा था कि सारा माज़रा क्या है। वह संध्या की ओर सवालिया नज़रों से देखने ही वाला था कि महिला ने एकाएक चेहरे से नकाब हटाया। गिरते गिरते बचा था वह…

‘तुम, तुम …’

‘हाँ, मैं, मुझे अपने अल्लाहमियाँ पर पूरा भरोसा था कि मेरी पहली मोहब्बत पाने में वह ज़रूर मेरा साथ देगा। और देखो मेरी पाक मोहब्बत का नतीजा.. मेरे सामने खड़े हो तुम रोहण …’

दोनों ओर से आंसुओं की झड़ी लगी थी। ख़ुद को संभालने की कोशिश में सामने मेज पर रखे गिलास को उठाकर उसने पानी पीया।

तभी सान्या के उसकी ओर बढ़े हुए नाज़ुक नाज़ुक हाथ व हाथों में पकड़े हुए सुर्ख गुलाबों की ओर ध्यान गया तो उसने कांपते हाथों से वह गुलदस्ता थामा। फूलों के बीच से एक खुशबूदार गुलाबी पत्र भी रखा था। स्वयं को संभालकर रोहण ने, मोतियों की श्रृंखला के समान नज़र आने वाली, पत्र की पंक्तियों को नम आंखों के साथ पढ़ना शुरू किया –

प्रिय रोहण, प्रथम प्रयास में ही भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित होने के लिए आपको हार्दिक बधाई ! उससे भी अधिक बधाई इस बात के लिए कि आपने अपनी पहली पोस्टिंग हमारे गृह जनपद इलाहाबाद में ही पायी है। मुझे विश्वास हैं कि आप मेरी पिछली गलती को अपने उदार हृदय का परिचय देकर माफ कर देंगे। आपको अधूरा छोड़कर जिस आकस्मिक घटना के घटित होने पर मुझे हमेशा के लिए दिल्ली छोड़ना पड़ा उसका एकमात्र कारण था – मजहबी आग की लपटों में घिरकर जलने से मेरे अब्बा की मृत्यु..वह शख़्स जिन्हें खुद को भारतीय मुस्लिम कहलाने पर हमेशा गर्व महसूस होता रहा।

ऐसे व्यक्ति जो भारतीय संविधान को हमेशा अपनी कुरान से ऊपर रखकर चलते रहे। वह, जिन्होंने हमेशा मुझे धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ाया। दंगाईयों द्वारा उनके साथ किये गये ऐसे पाशविकतापूर्ण कार्य की कल्पना शायद किसी देवता द्वारा भी न की गई हो। अब्बा के छोड़कर चले जाने के पश्चात आर्थिक तंगी के कारण मुझे तैयारी रोक देनी पड़ी और घर के हालात के चलते लाख चाहकर भी आपसे संपर्क नहीं कर पायी। ख़ुद को संभालकर और अपनी जिम्मेदारियों का अहसास करते हुए मैंने व्यक्तिगत स्तर पर कोचिंग देनी शुरू की ताकि छोटे भाई बहनों की पढ़ाई में कोई व्यवधान उत्पन्न न हो।

उसी दौरान मुझे शादी रुपी सामाजिक दबाव का भी सामना करना पड़ा लेकिन हमारी अम्मी, जिनके ऋण से कभी मुक्त नहीं हो पाऊंगी, ने सामाजिक दबाव के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया। दैनिक समाचार पत्र के माध्यम से जब मुझे यह खबर मिली कि आप भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित हुए हैं, इस खबर से न केवल मुझे असीम खुशी मिलीं बल्कि इतना अधिक आत्मविश्वास प्राप्त हुआ कि मैंने धूल खाती अपनी पुस्तकों को फिर से समेटना शुरू कर दिया। इस नेक काम में अम्मी ने हमारा भरपूर सहयोग किया और उन्होंने मुझे इतना काबिल बना दिया जिसकी व्याख्या आपका वह समाचार पत्र कर देगा जिसे, हमारे पहुंचने के समय, आप हाथ में पकड़े झुकी हुई दृष्टि से किसी चित्र को पहचानने का प्रयास कर रहे थे। ‘

आपकी सानिया

पत्र की आखिरी पंक्ति के साथ ही रोहण ने सामने मेज पर रखे समाचार – पत्र पर नजर डालीं तो उसकी दृष्टि अचानक ठहर सी गई क्योंकि प्रथम पृष्ठ पर मोटे – मोटे साफ अक्षरों में लिखा था – उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा में उर्दू साहित्य विषय के साथ इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छात्रा सान्या कुरैशी का जलवा। (यह लेखक के अपने निजी कल्पनिक विचार है)

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