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Freedom and its true nature: स्वतंत्रता एवं उसका वास्तविक स्वरूप

Freedom and its true nature: स्वतंत्र आत्मा के साथ किसी भी देश के लिए जीना उसकी प्रगति एवं सुशासन के लिए बुनियादी आवश्यकता है। भारत को यह अवसर मिला 15 अगस्त 1947 को आधी रात में उस समय जब आधी दुनिया सो रही थी जिसका वर्णन हमारे प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपने “नियति के साक्षात्कार” भाषण में यह कहते हुए किया है कि आधी रात के समय, जब दुनिया हो रही होगी, भारत जीवन और स्वतंत्रता के लिए जाग जाएगा। दशकों तक लंबे संघर्ष एवं लाखों लाख भारतीयों के बलिदान के पश्चात मिली यह स्वतंत्रता प्रत्येक भारतीय के लिए अमूल्य है और किसी भी रूप में हमारे किसी भी कार्य से स्वतंत्रता को कोई भी क्षति न पहुंचे यह हम सभी भारतीयों का प्राथमिक कर्तव्य होना चाहिए। इसके लिए भारतीय संविधान के भाग – 4A में मूल कर्तव्य के शीर्षक में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखें।

वास्तव में अगर देखा जाए तो किसी भी देश के लिए स्वतंत्रता प्राप्त करने से भी मुश्किल है, स्वतंत्रता को उसके उचित उद्देश्यों के साथ लेकर सुनिश्चित मार्ग पर आगे बढ़ना जिससे राष्ट्र एवं नागरिकों का सर्वांगीण विकास किया जा सके। किसी भी देश के लिए यह सर्वांगीण विकास देखने में जितना सरल जान पड़ता है व्यवहार में यह उतना सरल होता नहीं है और विशेष रूप में भारत जैसे बहुविविधता समेटे देश के लिए तो बिल्कुल भी नहीं। भारत देश जो विभिन्न धर्मों, जातियों, समुदायों, संस्कृतियों इत्यादि को अपने अंदर समाहित किये हुआ है, उसके लिए सभी विविधता को समेटना अपने आप में सरल तो नहीं होगा परंतु विविधता में एकता भारत एवं भारतीयता की सदियों से विशेषता रही है और अपनी इसी विशेष पहचान के कारण विश्व भर में भारत को एक विशेष स्नेह एवं सम्मान प्राप्त होता आया है।

यही कारण है कि वसुधैव कुटुंबकम् की भावना के साथ जीने वाले भारत को दुनिया भर में विश्व गुरु के रूप में जाना जाता रहा है। विश्व गुरु यानि दुनिया को जीने की कला सीखाने वाला। समृद्ध संस्कृति के साथ जीने वाले भारत के सम्मुख वर्तमान में अनेक मुश्किलें खड़ी है जिसका सामना करने के लिए भारत को अपने आप को मजबूत बनाना होगा। आज भारत की विश्व में सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में गणना की जाती है परन्तु आजादी के इतने दशकों बाद भी देश में गरीबी, भुखमरी, निरक्षरता, बेरोजगारी, कुप्रथाएं, जातिवाद, धार्मिक कट्टरवाद इत्यादि समस्याओं से पूरी तरह मुक्ति प्राप्त नहीं हुई है।

भारतीय नेतृत्वकर्ताओं को यह ठहरकर सोचने का समय है कि वर्ष दर वर्ष बीत जाने के बाद भी आखिर हम कहां पिछड़ रहे हैं? एक ओर जहां भारत युवाओं का देश है और ऐसा माना जाता है कि 21वीं सदी भारत की सदी होगी, भारतीयों की सदी होगा। परंतु 21वीं सदी के इस तीसरे दशक में ऐसे कोई प्रारंभिक लक्षण नज़र आ रहे हैं। शायद नहीं! फिर हम किस बात के लिए खुशी मना रहे हैं कि यह 21वीं सदी हम भारतीयों की होगी।

एक तरफ जहां देश का 90 प्रतिशत धन केवल 10 प्रतिशत धनिकों के पास जमा है वहीं देश के 90 प्रतिशत नागरिक केवल 10 प्रतिशत धन के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं। देश की वास्तविक आजादी का सपना देखने वाले हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने क्या इसी दिन के लिए आर्थिक समानता को संविधान के सबसे मुख्य अंग प्रस्तावना में शामिल किया गया था। आज जब देश में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है तब जीवन की बुनियाद आटा पर टैक्स लगाना क्या देश में गरीबी एवं महंगाई को दूर करने में सहायक सिद्ध होगा।

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एक ओर जहां प्रधानमंत्री जी गांधी जी के सिद्धांतों पर चलने की बात कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर क्या उन्होंने गांधी जी के नमक आंदोलन से कोई सीख नहीं ली! देश के लिए यह दोहरा चरित्र कम से कम सहायक तो नहीं सिद्ध होगा। गरीबी, भुखमरी एवं बेरोजगारी का परस्पर संबंध है। ये समस्याएं देश के तीव्र आर्थिक विकास में बाधक सिद्ध होगी। इसके लिए केंद्र एवं राज्य सरकार दोनों को एकसाथ मिलकर ठोस एवं तीव्रगामी कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।

जातिवाद एवं धार्मिक कट्टरता ये दो समस्याएं भारत की एकता एवं अखंडता के लिए वर्तमान में सबसे बड़ा खतरा नजर आ रही है। सर्वविदित है कि भारत बहुविध संस्कृतियों एवं धर्मों का देश है। भारत की एकता एवं प्रगति के लिए सभी धर्मों एवं संस्कृतियों तथा विभिन्न मतवालंबियों के मध्य सामंजस्य स्थापित करना आवश्यक है अन्यथा स्वतंत्रता सेनानियों ने जिस स्वतंत्र भारत की कल्पना की थी, उसे साकार करना मुश्किल होगा। इसके लिए सरकार एवं समाज के मध्य बेहतर तालमेल एक बेहतर एवं प्रभावी विकल्प साबित होगा।

गांधी जी का सपना हरेक आंख से आंसू पोंछने का था। क्या हम उनके इस सपने से आंखें फेर लेंगे! क्या हम इस जिम्मेदारी से भाग निकलेंगे! क्या हम हर पिछड़ी बातों के लिए एक दूसरे पर दोषारोपण कर बच निकलने की कोशिश करने का वही रटा रटाया रवैया अपनाते चले आएंगे! बिल्कुल नहीं। अगर हम सच में भारत एवं यहां की जनता से प्यार करते हैं तो बिल्कुल ऐसा नहीं करेंगे। यह गांधी जी के सपनों के साथ खिलवाड़ करने जैसा होगा। यह एक नैतिक अपराध साबित होगा। जब तक देश को पीछे खींचने वाली समस्याएं होंगी तब तक हम इन सभी समस्याओं के साथ चैन की नींद नहीं सो सकेंगे – ऐसा हमें मानकर चलना होगा। कैसे सरकारें ऐसा सोच सकती है कि वो जनहित में अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर रही है।

क्या केवल औपचारिकता पूरी कर लेने से देश का भला हो सकेगा। क्या केवल फ्री राशन से ही कार्य पूरा हो सकेगा। रोटी कपड़ा और मकान जीवन की बुनियादी आवश्यकता है। इसके लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों को एकसाथ मिलकर युद्ध स्तर पर कार्य करना होगा। केवल जीडीपी के आंकड़े बढ़ जाने से देश की तस्वीर नहीं बदल सकती है क्योंकि वह वास्तविक तस्वीर नहीं होगी। निस्संदेह देश की तस्वीर एवं तकदीर गांधी जी के सपने, हरेक आंख से हरेक आंसू पोंछने से बदल जाएगी। गांधी जी का यह सपना जिस आर्थिक विकेंद्रीकरण की बात करता है, वर्तमान में वह भारत में कमजोर नजर आ रहा है क्योंकि अमीर एवं गरीब तबके के बीच की खाई दिन प्रतिदिन चौड़ी होती जा रही है।

स्वतंत्रता के उद्देश्य को ठीक ढंग से समझकर और उन्हें पूरा करने की भरसक कोशिश करना ही स्वतंत्रता को सहेजकर रखा जा सकता है। इससे स्वतंत्रता सेनानियों को उनके बलिदान के लिए सच्ची श्रद्धांजलि भी दी जा सकती है। वास्तव में स्वतंत्रता कोई उपहार नहीं है जिसे मनमाने ढंग से स्वीकार किया जा सकता है। स्वतंत्रता को उसके वास्तविक अर्थों में बनाए रखने के लिए राष्ट्रहित में लगातार कार्य किये जाने की आवश्यकता होती है क्योंकि कमजोर चरित्र के नागरिकों के सहारे कोई भी राष्ट्र प्रगति पथ पर अग्रसर नहीं हो सकता है।

निस्संदेह भारत को एक प्रगतिशील लोकतांत्रिक एवं समृद्धि संस्कृति और मजबूत आर्थिकी वाला देश बनाने के लिए सशक्त नागरिकों की आवश्यकता होगी। सशक्त नागरिकों से सशक्त राष्ट्र का निर्माण होता है। आजादी के अमृत महोत्सव के इस शुभ अवसर पर भारत के शासन व्यवस्था में सर्वोच्च स्तर से लेकर निम्न स्तर तक के भागीदारों को नेहरू जी की इन पंक्तियों को आधार बनाकर अपनी नीतियों को क्रियान्वित करने की आवश्यकता है कि हम ऐसी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संस्थाओं को बना सकें जो प्रत्येक स्त्री-पुरूष के लिए जीवन की परिपूर्णता और न्याय सुनिश्चित कर सकें! (यह लेखक के अपने निजी विचार हैं।)

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