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Rejection: हमें अस्वीकार क्यों किया!

अस्वीकार (Rejection)

Rejection: अस्वीकार का अर्थ तो हम सभी को पता है! आज मैं एक ऐसे विषय पर चर्चा कर रही हूं जिसका सामना हम सभी ने कभी न कभी किया होगा। किसी को नौकरी के इंटरव्यू में अस्वीकृति मिली होगी, तो किसी को अपने प्रेमी/ प्रेमिका से अस्वीकृति मिली होगी। अकसर ऐसे अस्वीकृतियों के लिए हम सामने वाले को दोषी ठहराते है। “कंपनी में पहले से कुछ सैटिंग होगा! हम में कोई कमी नहीं” या “वह लड़की/लड़का ही हमारे लायक नहीं है इसलिए हमे (Rejection)अस्वीकार किया!” ऐसे ही न जाने कई बातों से हम हमेशा सामने वाले को गलत कह कर निकल जाते है, और यही मानवीय प्रवृति है!

लेकिन! जब एक लड़की अस्वीकार दी जाती है उन तुच्छ सोच वाले लोगों से जो बस इसलिए एक लड़की को रिजेक्ट कर देते है, क्यों कि वह काली है, क्यों कि उसकी कद छोटी है, क्यों कि वो थोड़ी मोटी है या फिर वो उम्र में थोड़ी बड़ी है। वो लड़की कभी सामने वाले को दोषी नहीं ठहराती। वो दोषी ठहराती है अपने भाग्य को! वह कोसती है अपने किस्मत को!

एक सभ्य लड़की की पहचान होती है उसके परिवार से। जब भी हम लड़की देखने जाते है तो इस बात को ध्यान में रख कर जाते है कि फलाना अच्छा है तो उसकी बेटी भी अच्छी होगी। यह बिल्कुल सही है, लेकिन हमे वहां जाकर एक ऐसी लड़की मिलती है जो दिखने में कम सुंदर या उसकी कद- काठी ठीक न हो। हम तुरंत मुंह पर ना कर देते है या ऐसा दिखाते है कि लड़की में बहुत बड़ी खोट है।

वास्तव में खोट लड़की में नहीं हमारे सोच में होती है। सबकी एक पसंद नापसंद होती है और इस बात की कद्र भी करनी चाहिए। लेकिन जब हम किसी लड़की को देखने जाते है तो हमें उस मर्यादा तक ही रहना चाहिए ताकि सामने वाले को इस बात का एहसास ना हो। हमारे मुंह पे एक ‘ ना ‘ बोलने से उस लड़की पर या उसके परिवार वाले पर क्या बीतती है यह बस वही समझ सकते है।

सबके अरमान होते है कि मेरी पत्नी सुंदर हो या मेरे घर की बहु सुंदर हो लेकिन अगर सभी तन सुंदर वाली लड़कियां खोजेंगे तो मन सुंदर वाली लड़कियों का क्या होगा! तन तथा मन दोनों ही सुंदर मिल जाए तो वो आपके अच्छे कर्मों का फल है। वैसे तो दुनियां के लोगों को हम उनके बातों से, हाव- भाव से तथा उनके व्यवहार से पहचानते है, कि ये बहुत अच्छा है, इसका दिल अच्छा है, यह बहुत चालाक है वैगरह वैगरह। फिर लड़कियों के मामलों में हम चेहरे और कद पर आकर क्यों अटक जाते है?

लड़कियां कोई वस्तु नहीं जो आपने मन में जो धारणा बनाया है हुबहू वैसी ही मिलेगी। एक गाड़ी आदमी जाकर, जब तक गला तक खाना न भर जाए तब- तक खाकर, सर से पैर तक ऐसे निरीक्षण करते है जैसे लड़की न होकर एक ऐसी मशीन होनी चाइए जो ठीक से घर के सब काम कर पाए और बच्चे पैदा कर पाए। “मां…लड़की रा कालो हमसार नुनु ते दूध खानेर मंदी गोरो छे।” “बाबु… अतेक मोटो छुरी रा घोरेर सब खाना आखलई खाए जाबे।” “लड़की रा बंगरी छे, जोड़ा रा नी मिटबे।” आदि-

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तन का सुंदर होना नहीं मन का सुंदर होना ज्यादा जरूरी है। अकसर ये बात उनको समझ आ जाती है जो हूर की परियाँ तो घर ले आते है लेकिन घर को जन्नत नहीं कुछ और में ही बदल देती है! वैसे आजकल लड़की वाले भी कुछ कम नहीं रहे हर जगह बस एक ही बात दोहराते है “मोक नौकरी वाला दमादे चहि।” बेचारे मेरे बेरोजगार भाई !!!!

आई एक निर्दयीयों की टोली
भरकर अपेक्षाओं की एक झोली!

जिसमें होनी चाहिए एक ऐसी लड़की
जिसकी सूरत हो सुंदर, चाहे मन हो विषैली!

उपर से नीचे तक तारकर ढूंढते है सौ कमियां
लड़की न होकर, मानो हो एक मेले वाली गुड़िया!

यह तन माटी का ढेला है
वक्त के साथ डह जाएगी!

घर में खुशीयां चाहिए तो
ढूंढो एक अच्छे मन की लड़की!

चेहरा, कद और शरीर से सुंदर नहीं
जो हो मन से भी एक सुंदर लड़की
जो हो मन से भी एक सुंदर लड़की !!

मिली कुमारी …✍️

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