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Vasanta College for Women: वसंता कॉलेज फॉर वोमेन के तत्वावधान मे शोध प्रविधि के विविध आयाम पर सप्तदिवसीय व्याख्यान का शुभारंभ

Vasanta College for Women: शोध के अंतर्गत तथ्यों का संकलन सूक्ष्मग्राही बुद्धि से अवलोकन, विश्लेषण तथा नये सिद्धांतो का उद्घाटन

रिपोर्टः डॉ राम शंकर सिंह

वाराणसी, 07 सितंबर: Vasanta College for Women: शोध समिति एवं हिन्दी-विभाग, वसंत महिला महाविद्यालय (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय), राजघाट फोर्ट, वाराणसी द्वारा “शोध प्रविधि के विविध आयाम” विषयक सप्तदिवसीय राष्ट्रीय ई-व्याख्यान श्रृंखला के उद्घाटन सत्र के अतिथियों का स्वागत करते हुए महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. अलका सिंह ने कहा कि नवीन वस्तुओं की खोज और पुरानी वस्तुओं एवं सिद्धान्तों का पुनः परीक्षण करना, जिससे कि नए तथ्य प्राप्त हो सकें, उसे शोध कहते हैं। शोध के अंतर्गत तथ्यों का संकलन, सूक्ष्मग्राही बुद्धि से उसका अवलोकन-विश्लेषण तथा नए तथ्यों या सिद्धांतों का उद्घाटन किया जाता है। शोध प्रविधि से संबंधित समस्याओं को हमें समझना होगा।

Vasanta College for Women: विषय प्रवर्तन करते हुए शोध समिति की समन्वयक एवं हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. शशिकला त्रिपाठी ने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शोध के लिए विद्यार्थी,चाहे वह किसी भी विषय का हो, उसे ज्ञान-विज्ञान के विविध अनुशासनों से जोड़ना होगा ताकि उसकी दृष्टि परिपक्व हो।

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उसका प्रयास हो कि वह जो कुछ लिखे, उसके क्षेत्र में वह उसका अवदान हो ज्ञान और बौद्धिक संपदा को निरंतर विकासशील होना चाहिए और यह निरंतरता शोध के माध्यम से ही संभव हो सकती है। इस संगोष्ठी का यही उद्देश्य है। अज्ञात को ज्ञात करना, तथ्य का नये ढंग से विश्लेषण करना और नई स्थापनाएँ देना ही शोध है। उच्च शिक्षा संस्थानों को शोध के लिए प्रेरित किया जाता रहा है जिससे शोध की महत्ता निरंतर बढ़ रही है।

Vasanta College for Women: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी इसके महत्व का रेखांकन हुआ है। तभी भारत नेतृत्वकर्ता हो सकता है। किन्तु प्रश्न यह कि क्या शोध करने वाले विद्यार्थी ज्ञान को सही दिशा प्रदान कर पा रहे हैं ? शोध विज्ञान का विषय है। वैज्ञानिकता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण इसके लिए आवश्यक है। विज्ञान तभी तक सफल है जब तक वह निष्कर्ष दे पाता है।

विज्ञान जहां असफल होता है, वहाँ दर्शन आ जाता है। इसीलिए, फिलासफी ऑफ डाक्टरेट की उपाधि दी जाती है शोध के द्वारा यह कोशिश की जाती है कि ज्ञान-विज्ञान, तकनीक, कृत्रिम बुद्धि, प्रौद्योगिकी आदि ऐसे तमाम क्षेत्र हैं, जहाँ शोध -प्रक्रिया से जुड़कर देश को प्रगति के रास्ते पर ले जाया जा सकता है। शोध परिकल्पना नहीं है बल्कि वस्तुओं/ तथ्यों का प्रामाणिक विश्लेषण है, ज्ञान का उत्पादन है।

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कार्यक्रम के मुख्य वक्ता वरिष्ठ भाषाविद् प्रो. अमरनाथ ने समकालीन शोध के विविध आयाम विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि शोध का अर्थ है- Discovery अर्थात् जो covered है उसे हटा देना यानि ज्ञान को प्रकाशित करना। उन्होंने न्यूटन और जेम्स वाट का उदाहरण देते हुए बताया कि जिज्ञासु प्रवृत्ति का होना शोध की पहली शर्त है। शोध का कार्य मौलिक चिंतन से संभव है और मौलिक चिंतन दूसरे की भाषा में संभव नहीं है। मातृभाषा से ही मौलिकता आती है। जिसकी रुचि हो वही रिसर्च की ओर जाए। सभ्यताओं का विकास शोध के अनुसंधान का परिणाम है। शोध में अधिकांशतः शोधार्थी कुछ नया नहीं दे पाते, उनमें अज्ञात को ज्ञात करने का अभाव होता है।

उन्होंने कहा कि शोध को नौकरी के साथ जोड़ना दुर्भाग्यपूर्ण है। डॉ. ए० अरबिंदाक्षन जी (पूर्व प्रति कुलपति, महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि शोध में निरंतर यात्रा करना अत्यंत आवश्यक है। शोध, समय, परिस्थिति और परिवेश के मध्य मानवीयता की खोज है। शोध जैसा भी हो ज्ञानवर्धन में उसका योगदान होना चाहिए। शोध में जो मानक तत्त्व होते है उन्हें ही शोध प्रविधि कहते है। हिंदी में शोध के दो क्षेत्र होते है-साहित्य और भाषा। साहित्यिक शोध मूलतः अन्तरानुशासनपरक है।

उन्होंने शोध के विभिन्न प्रकार बताये जैसे- तुलनात्मक शोध, समाजशास्त्रीय शोध, वैज्ञानिक शोध, साहित्यिक शोध आदि और कहा कि शोध में समय परिवर्तन के साथ नए-नए सिद्धान्त और आंदोलनों के आधार पर होने वाले परिवर्तनों को भी देखना चाहिए। शोध आवेग और उत्तेजना से नहीं किया जा सकता। यह अनुशीलन एवं मनन की लंबी यात्रा है। कार्यक्रम का शुभारंंभ डॉ. विलम्बिता वाणीसुधा के कुलगीत गायन से हुआ। डॉ. मीनू अवस्थी ने कुशल संचालन किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. वंदना झा ने इस अवसर पर शोध समिति और हिंदी-विभाग के सभी सदस्य और विभागाध्यक्ष, विभिन्न विषयों के शिक्षकगण एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

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