एक नये सफर पर जाना है जहाँ खुद को भूल जाना है।
एक नये सफर पर जाना है
जहाँ खुद को भूल जाना है|
बस उसी मे दिल लगाना है
बस उसी मे डूब जाना है |
तेरी रहमत से है जहाँ रोशन
तेरी बारीश मे भीग जाना है |
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कयू न हँसू उदास कयू मैं रहूं
मुझे पता है उसने फिर हँसाना है |
मैं भी उसी का एक कतरा हूँ
उस मे ही फिर समानां है |
~~डॉ दिलीप बच्चानी~~
*हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारे पाठक अपनी स्वरचित रचनाएँ ही इस काव्य कॉलम में प्रकाशित करने के लिए भेजते है। अपनी रचना हमें ई-मेल करें writeus@deshkiaawaz.in