Voice of the voiceless: बेज़ुबानों की आवाज़
भगवान ने आवाज़ नहीं दी है तो क्या? हम सब ‘हर्ष’ से बेज़ुबानों की आवाज़ बनते है।


चलो मानुष, मानुष बनते है,
बेज़ुबानों के लिये कुछ करते है।
चलो, मानुष मानुष खेलते है;
बेज़ुबानों के लिये कुछ करते है।
चलो, थोड़े मानुष बनते है;
बेज़ुबानों के लिये कुछ करते है।
एक पानी से भरा कुंज रखते है,
बेज़ुबानों के लिये कुछ करते है।
सुबह शाम दो तीन रोटी देते है,
बेज़ुबानों के लिये कुछ करते है।
थोड़ा हरा घास डालते है,
बेज़ुबानों के लिये कुछ करते है।
जो मिले वोह, जो खाये वह डालते है,
बेज़ुबानों के लिये कुछ करते है।
इस समाचार को फैलाते रहते है,
बेज़ुबानों के लिये कुछ करते है।
बहुत समझदार है बेज़ुबान जीव,
बेज़ुबानों के लिये कुछ करते है।
इनको छाँव देने के लिए कुछ करते है,
बेज़ुबानों के लिये कुछ करते है।
ठंड में गर्म कपड़े और बोरे रखते है,
बेज़ुबानों के लिये कुछ करते है।
गाड़ी के नीचे सोते है बेज़ुबान जीव,
गाड़ी चालू करने से पहले नीचे जाँच करते है;
आइये, बेज़ुबानों के लिये कुछ करते है।
भगवान ने हमें इन्सानोको आवाज़ दी है,
चलो सब मिलकर बेज़ुबान के बोल समजते है।
बेज़ुबानों के लिए हम आवाज़ बनते है,
आइये, बेज़ुबानों के लिये कुछ करते है।
बेज़ुबानों की सेवा पुण्य और धर्म ही तो है,
हररोज़ थोड़ा बहुत समय निकालते है;
बेज़ुबानों की सेवा का पुण्य कर्म करते है।
आइये, बेज़ुबानों के लिये कुछ करते है।
चलो ‘परख’करते है बेज़ुबानों का दर्द और भूख,
और सच्चे मानुष बनके बेज़ुबानों को ‘हर्ष’ देते है।
भगवान ने आवाज़ नहीं दी है तो क्या?
हम सब ‘हर्ष’ से बेज़ुबानों की आवाज़ बनते है।
‘परख’ करके बेज़ुबानों की ज़रूरते,
‘हर्ष’ देने बेज़ुबानों को मानुष बनते है।
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