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Rajpur kavya gosthi: राजपुर में हुआ काव्य गोष्ठी का आयोजन, पढ़ें…

Rajpur kavya gosthi: जिन्हें तूफां से बचने जा हुनर आता नहीं “क़ादिर”, समंदर की वो लहरों में सफ़ीना छोड़ देते हैं”

राजपुर, 12 अक्टूबरः Rajpur kavya gosthi: जिला अदब गोशा की बड़वानी इकाई की ओर से राजपुर में एक साहित्यिक काव्य गोष्ठी आयोजित की गई, जिसमे शहर के शायरों ने अपने खूबसूरत कलाम पेश किए। संचालन रिजवान अली रिजवान ने अपने खुसूसी अंदाज में किया। जावेद कुरेशी विशेष अतिथि रहे और उस्ताद कादिर हनफी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की।

काव्य गोष्ठी का आरंभ फिरोज खान (रज्जू भाई) ने नाते पाक “कब्र से होती हुई, खु़ल्द की क्यारी निकले, शहरे तैयबा में अगर रूह हमारी निकले” पढ़कर किया। फैजान शैख “कैस” ने अपने अशआर “जो धड़कता नही बहत्तर बार, दिल किसी काम का नही होता” सुनाकर खूब दाद बटोरी।

वाहिद साहब कुरेशी “वाहिद” ने अपनी रचना “इरादे लाख हों लेकिन मशक्कत भी जरूरी है, किसी प्यासे को घर बैठे कभी दरिया नहीं मिलता “सुनाकर रंग जमाया।नौजवान शायर वाजिद हुसैन “साहिल” ने अपनी गजल सुनाते हुए कहा कि “हजारों ख्वाब गंवाने के बाद आई है, सुकूं की नींद जमाने के बाद आई है, वो एक चीज जिसे अक़्ल बोलते है सभी, मुझे वो ठोकरें खाने के बाद आई है”। पर खूब वाह वाही लूटी।

राजपुर के शायर रिजवान अली “रिजवान” ने गजल में “ठहरते भी भला कैसे वो दिल के बाला खानों में उन्हें मेरी निगाहों से उतर जाने की जल्दी थी” सुनाकर महफिल को नई ऊंचाईयां प्रदान की। महफिल की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ शायर उस्ताद कादिर हनफी साहब ने अपना कलाम “ये कैसे रहनुमा बन-बन के फिरते हैं जमाने में, जो अपने हमसफीरों को भटकता छोड़ देते हैं, जिन्हें तूफां से बचने जा हुनर आता नहीं “कादिर”, समंदर की वो लहरों में सफीना छोड़ देते हैं” सुनाकर समापन किया। देर रात तक चले इस कार्यक्रम में श्रोता उपस्थित रहे।

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