मां बाप के बुढापे की लाठी…..
नन्ही सी हथेली में
मुट्ठी भर सपने लिए
हम भी आगे बढ़ेंगे
पढ़ लिख कर के
लिखेंगे हमारे अरमान
भरेंगे सपनो की उड़ान
हम भी आगे बढ़ेंगे
चल उड़ पंछी
कभी इस डाल कभी उस पात
लगा दे जोर जितना है,
मुट्ठी में करते है हर ख्वाब
हम भी आगे बढ़ेंगे…
देश की रक्षा करेंगे
इन नन्हे नन्हे हाथों से,
दुश्मन को लातों से
निपटा ही देंगे
हम भी आगे बढ़ेंगे…..
मां बाप के बुढापे की लाठी
बनकर उनकी सेवा करेंगे
देश की खातिर प्राणों की आहुति
देनी पड़ी तो देकर रहेंगे
हम भी आगे बढ़ेंगे….।।
***********
हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारे पाठक अपनी स्वरचित रचनाएँ ही इस काव्य कॉलम में प्रकाशित करने के लिए भेजते है।
अपनी रचना हमें ई-मेल करें writeus@deshkiaawaz.in
loading…