Jeevan: यह जीवन एक यज्ञ है
Jeevan: !!जीवन एक यज्ञ!!
Jeevan: जिसकी वेदी भी तुम,
जिसकी सामग्री भी तुम।
जिसके यजमान भी तुम,
जिसके आचार्य भी तुम।
जिसके वेद की ऋचायें भी तुम,
जिसके मंत्र का स्वाहा भी तुम।
जिसकी अग्नि का तप भी तुम,
जिसकी आहुति का घृत भी तुम।
जिसके धुएँ से शोधन भी तुम,
जिसके दक्षिणा स्वरूप त्याग भी तुम।
जिसकी तपन से परेशान भी तुम,
जिसके प्रसाद से उल्लसित भी तुम।
पूर्णाहुति पर ही संपन्न होगा यह यज्ञ,
अंत तक रहोगे अनभिज्ञ….तुम!
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