Garmi re Garmi: आ गई हैं, गरमी….. हो रही हैं, हलचल
गर्मी रे गर्मी……(Garmi re Garmi)
Garmi re Garmi: आ गई हैं, गरमी…..
हो रही हैं, हलचल
बूंद बूंद पानी को तरस
रहा है, मानव
हो रहा है, इधर उधर
सूरज भी उगल रहा है, आग
चल रहे हैं,
गर्म हवा के झोंके
हर पथ जैसा जल रहा है,
पांव जैसे थम रहे हैं,
है आश थोड़ी सी,
मिल जाय पानी अगर कहीं,
खिल जाए होठो पर हसी,
मिल जाए लोगों को राहत,
क्यूकी,
पानी जीवन में अनमोल हैं,
न इसका कोई मोल हैं,
इसलिए सब करो यह काम,
जल का करो सदुपयोग,
जल को न करे दूषित,
जल स्रोतों को रखें साफ,
अपनाओ वॉटर हार्वेस्टिंग को,
क्यूकी,
जल हैं तो कल है
और
जल ही जीवन है।
यह भी पढ़ें:-Garmi aur Makeup: इस बार की गर्मी भी कहर ढा रही हैं..अनुराधा देशमुख
*हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारे पाठक अपनी स्वरचित रचनाएँ ही इस काव्य कॉलम में प्रकाशित करने के लिए भेजते है।
अपनी रचना हमें ई-मेल करें writeus@deshkiaawaz.in