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शिशुओं में बिलीरुबिन स्तर की गैर-संक्रामक स्क्रीनिंग के लिए “गैर-संपर्क” और “दर्द-रहित” उपकरण

एसएनबीएनसीबीएस ने नवजात शिशुओं में बिलीरुबिन स्तर की गैर-संक्रामक स्क्रीनिंग के लिए “गैर-संपर्क” और “दर्द-रहित” उपकरण विकसित किया

29 JUL 2020 by PIB Delhi

नवजात शिशुओं में बिलीरूबिन स्तर की सावधानीपूर्वक जांच अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (2004) के अनुसार अनिवार्य है। यह जांच एक प्रकार की मस्तिष्क क्षति जिसे किर्निकटेरस कहा जाता है, की घटनाओं को कम करने के लिए की जाती है, जिसका कारण शिशु के रक्त में बिलीरुबिन का उच्च स्तर हो सकता है। यद्यपि रक्त के केपिलरी संग्रह और उसके बाद के जैव रासायनिक परीक्षण को नवजात शिशुओं में पीलिया का पता लगाने के लिए स्वर्ण मानक माना जाता है, गैर-संक्रामक उपकरणों का उपयोग करके त्वचा के अन्दर बिलीरुबिन माप के स्पष्ट रूप से अतिरिक्त लाभ है।

भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत स्वायत्त अनुसंधान संस्थान, एस.एन. बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज (एसएनबीएनसीबीएस), कोलकाता के प्रोफेसर समीर के. पाल और उनकी टीम ने “एजेओ–निओ” नामक उपकरण विकसित किया है। संस्थान डीएसटी द्वारा वित्त पोषित तकनीकी अनुसंधान केंद्रों (टीआरसी) में से एक और निल-रतन सरकार (एनआरएस) मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, कोलकाता के साथ वैज्ञानिक सहयोग का संचालन भी कर रहा है। उपकरण का संचालन, अन्य बिलीरुबिन मीटर की सीमाओं से समझौता किये बिना, नवजात शिशुओं में बिलीरुबिन स्तर की माप के लिए गैर-संपर्क और गैर-संक्रामक स्पेक्ट्रोमेट्री तकनीकों पर आधारित है। इसे कुल सीरम बिलीरुबिन (टीएसबी) परीक्षण के विकल्प के रूप में पेश किया गया है।

एनआरएस मेडिकल कॉलेज में एसएनबीएनसीबीएस टीम द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, नव विकसित डिवाइस (एजेओ–निओ) प्रीटरम में बिलीरुबिन के स्तर को मापने में विश्वसनीय है, और नवजात शिशु के गर्भकालीन या प्रसवोत्तर उम्र, सेक्स, जोखिम वाले कारकों, आहार प्राप्त करने सम्बन्धी व्यवहार या त्वचा का रंग आदि से अप्रभावित रहता है। उपकरण देखभाल के स्थान से 10000 किमी की दूरी पर स्थित संबंधित चिकित्सक को तात्कालिक रिपोर्ट (लगभग 10 सेकंड) दे सकता है। यह पारंपरिक “रक्त परीक्षण” विधि की तुलना में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जिसकी रिपोर्ट में 4 घंटे से अधिक का समय लगता है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि नवजात में रक्त बिलीरुबिन (हाइपरबिलिरुबिनमिया) का तेजी से पता लगाना चिकित्सीय प्रबंधन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि नवजात शिशुओं में केर्निकटेरस से बचा जा सके जो न्यूरो-मनोरोग की समस्याओं का कारण होता है। बाजार में उपलब्ध अन्य आयातित उपकरणों की तुलना में एजेओ–निओ में कई अन्य फायदे हैं।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के डीएसआईआर के उद्यम राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम (एनआरडीसी) द्वारा डीएसटी के सचिव प्रोफेसर प्रो. आशुतोष शर्मा की उपस्थिति में प्रौद्योगिकी को विजयवाड़ा स्थित कंपनी, मेसर्स जयना मेडटेक प्राइवेट लिमिटेड को हस्तांतरित किया गया है। कंपनी के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक श्री मनिंदर सिंह लाल ने भारतीय प्रौद्योगिकी, जिसमें वैश्विक बाजार में अग्रणी होने की क्षमता है के व्यावसायीकरण में भाग लेने का अवसर मिलने पर संतोष व्यक्त किया।

डीएसटी के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने कहा, “भौतिक-रसायन विज्ञान की गहरी समझ के आधार पर सुविधाजनक, गैर-संक्रामक चिकित्सा उपकरणों का विकास दुनिया भर में तेज गति से हो रहा है, और मूलभूत विज्ञान पर आधारित संस्थान जैसे एस.एन. बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज, कोलकाता इस प्रकार की प्रौद्योगिकी और उपकरण विकास में सक्षम साझेदार हैं।’’

अधिक जानकारी के लिए, समीर के पाल ( skpal@bose.res.in ) से संपर्क करें।

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चित्र 1: अन्य आयातित उपकरणों के साथ एजेओ  निओ उपकरण की तुलना

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चित्र 2: बिलीरुबिन का पता लगाने के लिए पारंपरिक रक्त परीक्षण के दौरान दर्द (अध्ययन के दौरान एनआरएस मेडिकल कॉलेज में लिया गया चित्र)

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चित्र 3: बिलीरुबिन जांच के लिए एजेओ – निओ परीक्षण के दौरान आराम (अध्ययन के दौरान एनआरएस मेडिकल कॉलेज में लिया गया चित्र)