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Webinar: आनंद कें. कुमारस्‍वामी ने स्‍वराज के यत्‍न को चिन्‍मय बनाया : प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल


वर्धा, 10 सितंबर: Webinar: महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल ने कहा कि भारतीय कला के अनन्‍य आराधक आनंद केंटिश कुमारस्‍वामी ने स्‍वराज के यत्‍न को चिन्‍मय बनाने का महति कार्य किया है। कुलपति प्रो. शुक्‍ल गुरुवार (9 सितंबर) को आनंद केंटिश कुमारस्‍वामी की 75वीं पुण्‍य तिथि के अवसर पर आनंद केंटिश कुमारस्‍वामी ‘कृतं स्‍मर, क्रतो स्‍मर’ विषय पर आयोजित वेब संगोष्ठी की अध्‍यक्षता करते हुए संबोधित कर रहे थे।

आनंद कुमारस्‍वामी की कलादृष्टि की चर्चा करते हुए उन्‍होंने कहा कि कहा कला केवल कला के लिए नहीं अपितु जीवन के लिए है, इस दृष्टि को प्रस्‍तुत करने की कला जो स्‍थगित हुई थी, उसका पुनर्आख्‍यान करते हुए उसका परिचय देश-दुनिया को कराने का कार्य आनंदकुमार स्‍वामी ने किया है। इस संबंध में उन्‍होंने खजुराहो और कोणार्क के प्राचीन मंदिरों की समृद्ध शिल्‍प और कलाओं का उल्‍लेख भी किया। प्रो. शुक्‍ल ने कहा कि आनंद कुमारस्‍वामी की भारतीय कला दृष्टि शिल्‍प के आलोक में पहचानी जाती है।

इस अवसर पर वक्‍ता के रूप में लखनऊ विश्‍वविद्यालय के राजनीतिशास्‍त्र विभाग के अध्‍यक्ष डॉ. आर. के. मिश्र ने विचार रखते हुए कहा कि आनंद के. कुमारस्‍वामी का कार्यक्षेत्र व्‍यापक था। उन्‍होंने कला, साहित्‍य, दर्शन और राजनीति जैसे जीवन के सभी क्षेत्र में कार्य किया। उन्‍होंने धर्म और दर्शन के अनेक ग्रंथों की रचना की और भारतीय सभ्‍यता-संस्‍कृति को व्‍यापक फलक पर प्रदर्शित किया। डॉ. मिश्र ने कहा कि कुमारस्‍वामी आधुनिक सभ्‍यता को आत्‍मघाती सभ्‍यता मानते थे। उन्‍होंने कुमारस्‍वामी की कलादृष्टि पर विस्‍तार से चर्चा करते हुए कला के क्षेत्र में उनके अहम योगदान पर भी प्रकाश ड़ाला।

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दूसरे वक्‍ता के रूप में दिल्‍ली इंस्टिटयूट ऑफ हेरिटेज रिसर्च एंड मैनेजमेंट, नई दिल्‍ली के वरिष्‍ठ संकाय डॉ. आनंद वर्धन ने कहा कि कुमारस्‍वामी ने कला को गढ़ने का काम किया। वे आनंद और उद्वेलित करने वाली कला के गहरे मीमांसक थे और उन्‍होंने अपने जीवन काल में भारत के नाद सूत्र को समझने की कोशिश कर लोकचेतना की दृष्टि को उद्घाटित किया।

कार्यक्रम की प्रस्‍तावना विश्‍वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्‍ल ने रखी। उन्‍होंने कुमारस्‍वामी के जीवन कार्य पर प्रकाश ड़ालते हुए कहा कि उनका कार्य महत्‍वपूर्ण है और साधना प्रेरणा देने वाली है। उन्‍होंने कहा कि भारत के आत्‍म-गौरव को जगाने और उसके कला-गौरव के उद्धार में कुमारस्‍वामी का अनूठा योगदान है। वे बीसवीं शताब्‍दी के विश्‍व के मेधावी विद्वानों में अग्रगण्‍य हैं।

कार्यक्रम का संचालन विश्‍वविद्यालय के गांधी एवं शांति अध्‍ययन विभाग, संस्‍कृति विद्यापीठ के अध्‍यक्ष डॉ. मनोज कुमार राय ने किया। संस्‍कृत विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. जगदीश नारायण तिवारी ने मंगलाचरण प्रस्‍तुत किया। विश्‍वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो. चंद्रकांत रागीट ने आभार ज्ञापित किया। संगोष्‍ठी में विभिन्‍न विश्‍वविद्यालयों के अध्‍यापक, शोधार्थी, विद्यार्थियों की सहभागिता रही।

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