unsc

यूएनएससी में स्थायी सदस्यता का प्रबल दावेदार है भारत

Mohit Kumar Upadhyay
मोहित कुमार उपाध्याय
राजनीतिक विश्लेषक एवं अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपनी स्थापना के 75 वर्ष पूरे किये। इन वर्षों में संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व के विभिन्न देशों को एक मंच पर लाने में न केवल सराहनीय पहल की वरन् जटिल वैश्विक समस्याओं के निपटारे में भी सफलता प्राप्त की। संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अनुच्छेद – 1 का मुख्य उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखना, सभी राष्ट्रों के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंधों का विकास करना और आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं मानवीय समस्याओं के प्रति अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्राप्त करना है। संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्यों में यह निहित है कि एक राज्य किसी दूसरे राज्य के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा और संयुक्त राष्ट्र संघ किसी राज्य के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा। अक्सर ऐसा माना जाता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन तृतीय विश्व युद्ध को रोकने के लिए किया गया था परंतु संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में निहित उद्देश्यों को अधिक गहराई से देखने पर स्पष्ट होता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन संभावित तृतीय विश्व युद्ध को रोकने के साथ ही मानवता को सभी प्रकार के युद्धों से बचाने के लिए किया गया है।

यह एक कटु सत्य है कि एक ओर जहां संयुक्त राष्ट्र संघ परमाणु हथियारों से संपन्न विश्व को तृतीय विश्व युद्ध जैसे किसी सर्वसंहारी महायुद्ध की विभीषिका से दूर रखने में सफल रहा, वहीं यह संगठन आतंकवाद, देशों के मध्य परस्पर युद्ध, नृजातीय संघर्ष, गृहयुद्ध, वैचारिक एवं राजनीतिक संघर्ष इत्यादि षड्यंत्रकारी एवं विनाशकारी गतिविधियों पर कठोर नियंत्रण स्थापित करने में पूरी तरह विफल साबित हुआ है। यह एक विचारणीय प्रश्न है कि जिस संगठन की स्थापना आज से 75 वर्ष पूर्व तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार विश्व में शक्ति संतुलन स्थापित करने के लिए की गई थी, क्या वह संगठन आज बिना किसी बदलाव के वर्तमान की परिवर्तित भू राजनीतिक एवं आर्थिक परिस्थितियों में भी प्रासंगिक है? इस प्रश्न को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के अपने संबोधन में कहा है कि “आज हम एक बिल्कुल अलग दौर है। २१वीं सदी में हमारे वर्तमान की, हमारे भविष्य की, आवश्यकताएं और चुनौतियां अब कुछ और हैं। इसलिए आज पूरे विश्व समुदाय के सामने एक बहुत बड़ा सवाल है कि जिस संस्था का गठन तब की परिस्थितियों में हुआ था, उसका स्वरूप क्या आज भी प्रासंगिक है?” 

unsc

भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का संस्थापक सदस्य है और भारतीय विदेश नीति में संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों एवं लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है। इतना ही नहीं भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 7 बार – 1950-51, 1967-68, 1972-73,1977-78, 1984-85, 1991-92 और 2011-12 अस्थायी सदस्य रह चुका है और हाल ही में 8वीं बार भारत को सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के रूप में चुना गया है जिसमें संयुक्त राष्ट्र संघ के 192 में से 184 सदस्यों ने भारत के पक्ष में मतदान किया। इस घटनाक्रम से साबित होता है कि वैश्विक नेतृत्व में भारत की भूमिका को सदस्य देशों द्वारा उत्साह के साथ स्वीकार किया जा रहा है। परंतु यह दुखद एवं अन्यायपूर्ण स्थिति है कि संयुक्त राष्ट्र संघ का संस्थापक सदस्य होने के बावजूद भी भारत को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता से वंचित किया गया है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अनुच्छेद – 7 के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रधान अंग है। यह संयुक्त राष्ट्र संघ का सर्वाधिक शक्तिशाली अंग है क्योंकि इसके सदस्य देशों को स्थायी सदस्यता के साथ वीटो पावर प्राप्त है इसलिए सुरक्षा परिषद में पारित प्रस्ताव सदस्यों देशों पर बाध्यकारी होते है। यही कारण है कि विश्व में शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने का दायित्व सुरक्षा परिषद को सौंपा गया है। सुरक्षा परिषद के वर्तमान में 15 सदस्य हैं जिसमें 5 स्थायी सदस्य – अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस एवं चीन हैं और 10 अस्थायी सदस्यों का निर्वाचन विश्व के विभिन्न भागों एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, पश्चिमी देशों एवं पूर्वी यूरोप से प्रत्येक दो वर्ष के लिए किया जाता है। सुरक्षा परिषद का आखिरी विस्तार 1963 में किया गया था जब अस्थायी सदस्यों की संख्या 6 से बढ़ाकर 10 की गई थी।

1963 से लेकर आज तक भारत समेत विभिन्न देशों द्वारा लगातार सुरक्षा परिषद में सुधार एवं विस्तार की मांग की जा रही हैं परंतु महाशक्तियों के उदासीन रवैये के कारण सुधार एवं विस्तार की मांग आगे बढती नजर नहीं आ रही है। यह भारत की स्थायी सदस्यता प्राप्त करने के संदर्भ में प्रभावी एवं ठोस कूटनीति का ही परिणाम है कि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 14 सितंबर 2015 को सुरक्षा परिषद सुधार संबंधी अपने निर्णय को 69/560 से स्वीकार किया है। इसके माध्यम से अब सुरक्षा परिषद में सुधार एवं विस्तार और भारत को स्थायी सदस्यता प्रदान करने के संदर्भ में सयुंक्त राष्ट्र संघ द्वारा सदस्य देशों के मध्य आपसी विचार विमर्श को बढ़ावा दिया जाएगा।

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के समय से ही भारत की भूमिका यूएन शांति मिशनों में उल्लेखनीय रही है। संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में संचालित किये जाने वाले ऐसे 65 में से 43 अभियानों में भारत द्वारा 1,60,000 से अधिक सैन्यकर्मी भेजे गए। इन शांति अभियानों में भारत के 100 से अधिक पुलिस एवं रक्षा बलों ने अपने प्राणों की आहुति दी। भारत एकमात्र ऐसा परमाणु शक्ति संपन्न देश है जो विश्व में शांति स्थापना के लिए परमाणु हथियारों के व्यापक एवं सार्वभौमिक उन्मूलन के लिए प्रतिबद्ध है। यह सर्वविदित है कि भारत की विदेश नीति परमाणु निरस्त्रीकरण पर आधारित है। सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता प्राप्त करने के संदर्भ में भारत द्वारा जी – 4 का गठन किया गया है। इस समूह में भारत, जापान, ब्राजील और जर्मनी शामिल है। ये सभी राष्ट्र सुरक्षा परिषद में विस्तार एवं सुधार और एक दूसरे को स्थायी सदस्यता प्रदान करने का समर्थन करते है। भारत के लिए यह हर्ष का विषय है कि विश्व राजनीति एवं अर्थव्यवस्था में अग्रणी और सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य देश – अमेरिका, ब्रिटेन, रूस एवं फ्रांस, भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन कर रहे है।

ऐसा माना जाता है कि भारत विरोधी स्वभाव के कारण चीन जरुर इस मार्ग में बाधक बन सकता है। जी – 4 देशों के सम्मुख काॅफी क्लब के सदस्य देश जिसमें अर्जेंटीना, कनाडा, कोस्टारिका, कोलंबिया, माल्टा, मैक्सिको, पाकिस्तान,  इटली, स्पेन और तुर्की शामिल हैं, विरोधी बनकर सामने आ रहे है। ये सभी देश सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यों की संख्या को बढ़ाने का विरोध कर रहे है। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के समय इसके सदस्य देशों की संख्या 51 थी परंतु वर्तमान में सदस्य देशों की संख्या 192 तक पहुँच गयी हैं तत्पश्चात सुरक्षा परिषद विस्तार से अछूता रहा है और इसके स्थायी सदस्य देशों की संख्या 5 से आगे नहीं बढ़ पा रही है। संयुक्त राष्ट्र के मंच पर लोकतंत्र का स्पष्ट अभाव परिलक्षित होता है क्योंकि सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य अधिकतर मामलों में वीटो पावर का प्रयोग कर अपनी मनमानी करते हैं जो कि संयुक्त राष्ट्र संघ में निहित उद्देश्यों अर्थात सर्वसम्मति से लिए जाने वाले निर्णयों के विरुद्ध है। सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता प्राप्त करने के लिए सुरक्षा परिषद के सभी स्थायी सदस्यों का समर्थन आवश्यक है। वहीं सुरक्षा परिषद के विस्तार के लिए संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में संशोधन की आवश्यकता पड़ती है जिसके लिए महासभा के दो तिहाई सदस्यों का समर्थन आवश्यक होता है।

संयुक्त राष्ट्र संघ का 75 प्रतिशत कार्य अफ्रीकी महाद्वीप के देशों के विकास कार्यों पर आधारित है परंतु यह विडंबना है कि अफ्रीकी महाद्वीप और लैटिन अमेरिका के किसी भी देश को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता प्राप्त नहीं है। आजकल एक मत प्रचलित है कि 21वीं सदी एशिया की सदी होगी जिसका नेतृत्व भारत करेगा परंतु सुरक्षा परिषद की गैर लोकतांत्रिक संरचना को देखकर यह मत काल्पनिक ही अधिक प्रतीत होता है क्योंकि एशिया महाद्वीप से केवल एक ही देश (चीन) स्थायी सदस्य है जबकि आवश्यकता इस बात की है कि भारत की मजबूत सैन्य, आर्थिक एवं सांस्कृतिक क्षमता के आधार पर त्वरित गति से सदस्यता प्रदान की जाए। लंबे समय से भारत सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता प्राप्त करने के लिए प्रयासरत हैं। भारत सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने के लिए विश्व के अन्य देशों से अधिक योग्य हैं क्योंकि वर्तमान विश्व राजनीति में शक्ति संतुलन स्थापित करने में भारत की भूमिका में वृद्धि हुई है और भारत क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और वैश्विक चुनौतियों के सम्मुख नेतृत्वकारी भूमिका में है।

भारत विश्व का सबसे विशाल लोकतांत्रिक देश है और उदार लोकतान्त्रिक मूल्यों एवं संवैधानिक संस्थाओं के प्रति भारत पूर्ण रूप से समर्पित रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की घोषणा की गई हैं जिसकी झलक भारतीय संविधान के अनुच्छेद – 51 में परिलक्षित होती है। भारत विश्व का दूसरा सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है और हिन्दू बहुसंख्यक होने के पश्चात भी भारत के संविधान में पंथनिरपेक्षता को वरीयता प्रदान की गई है। भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं और भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ रही है। भारत विश्व का सबसे बड़ा बाजार है। भारत विश्व का एकमात्र ऐसा परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र है जो “नो फर्स्ट यूज पाॅलिसी” का पालन करता है। संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशनों में भारत का सैन्य योग्यदान विश्व में तीसरा सबसे बड़ा योगदान है। 

परिवर्त्तन प्रकृति का नियम है इसलिए किसी भी संस्था में समयानुसार परिवर्तन न करने पर वह संस्था अपने मूल उद्देश्यों को प्राप्त करने में न केवल असफल रहती हैं बल्कि अपनी प्रासंगिकता भी खो देती है। वर्तमान में विश्व समुदाय के समक्ष जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, भूखमरी, गरीबी, बेरोज़गारी,  निरक्षरता इत्यादि जटिल समस्याएँ मौजूद है। अत: आवश्यकता इस बात की है कि सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य देश पूर्वाग्रह से बाहर आकर एवं गतिशीलता का परिचय देते हुए जी – 4 देशों के स्थायी सदस्यता से संबंधित प्रस्ताव पर विचार करें ताकि भारत सहित जापान, जर्मनी,  ब्राजील जैसे सैन्य एवं आर्थिक क्षमता से संपन्न देशों को सहयोगपूर्ण भावना के साथ विश्व राजनीति का नेतृत्व करने का अवसर प्रदान किया जा सके। (डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.)

**********

Reporter Banner FINAL 1
loading…