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Hindi Cinema: हिंदी सिनेमा में भाषा संस्कार का अनुशासन होना चाहिए : प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल

हिंदी सिनेमा (Hindi Cinema) में प्रदर्शित सामाजिक संघर्ष देश और दुनिया के दर्शकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है: प्रदीप कुमार मैत्र

वर्धा, 14 सितंबर: Hindi Cinema: महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल ने कहा है कि हिंदी सिनेमा का हिंदी के प्रचार में योगदान है परंतु विस्‍तार देने में उतना नहीं है। प्रो. शुक्ल आज हिंदी दिवस पर ‘हिंदी की वैश्विक भूमिका और सिनेमा’ विषय पर तरंगाधारित कार्यक्रम में अध्यक्षीय वक्तव्य दे रहे थे।

उन्होंने कहा कि हिंदी सिनेमा (Hindi Cinema) का अनुकूलन समाज के साथ होना चाहिए और भाषा संस्‍कार का कठोर अनुशासन भी होना चाहिए। प्रो. शुक्‍ल ने कहा कि हिंदी का बाजार बड़ा है। विज्ञापन की दुनिया में भी हिंदी का प्रभाव है। हिंदी सिनेमा का नायक 80 के दशक तक उर्दू बोलता था और उसके संवाद में फारसी शब्‍दों का भी प्रयोग होता था। फिल्‍मों के स्‍वरूप में शब्‍द मायने नहीं रखते परंतु नाटकों में शब्‍द महत्‍वपूर्ण होते हैं। कुलपति प्रो. शुक्‍ल ने कहा कि हिंदी सिनेमा की मिथ्‍या भाषा से सिनेमा के समीक्षकों को सावधान रहने की आवश्‍यकता है।

कार्यक्रम में वरिष्‍ठ पत्रकार, नागपुर प्रेस क्‍लब के अध्‍यक्ष प्रदीप कुमार मैत्र ने बतौर मुख्‍य अतिथि अपने संबोधन में कहा कि हिंदी की पहचान बनाने में हिंदी सिनेमा का अहम योगदान रहा है। हिंदी सिनेमा (Hindi Cinema) में प्रदर्शित सामाजिक संघर्ष देश और दुनिया के दर्शकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। उन्‍होंने अहिंदी भाषी फिल्‍म निर्देशक वी. शांताराम, ऋषिकेश मुखर्जी, सत्‍यजित रे आदि का उल्‍लेख करते हुए कहा कि ऐसे निर्देशकों ने हिंदी का परचम विदेशों में भी लहराया। उन्‍होंने कहा कि देश के दक्षिण क्षेत्र में भी हिंदी सिनेमा को महत्‍व दिया जा रहा है और अनेक नायक, नायिकाएं हिंदी सिनेमा में काम करने आगे आ रही हैं।

प्रास्‍ताविक वक्‍तव्‍य में मुख्‍य राजभाषा अधिकारी तथा जनसंचार विभाग के अध्‍यक्ष प्रो. कृपाशंकर चौबे ने कहा कि हिंदी का बाजार वैश्विक बन गया है। हिंदी का समाज कैसे बने इसके लिए प्रयास करने की आवश्‍यकता है। उन्‍होंने राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति का जिक्र करते हुए कहा कि इस नीति में मातृभाषा में शिक्षा पर बल दिया गया है। उन्‍होंने हिंदी को विचार और अभिव्‍यक्ति की भाषा बनाने के लिए सभी को कृतसंकल्पित होने का आहवान किया। प्रो. चौबे ने भारतीय भाषाओं में सहकार संबंध स्‍थापित करने का आहवान करते हुए हिंदी के विकास में हिंदीतर भाषियों के योगदान पर प्रकाश डाला ।

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कार्यक्रम का संचालन हिंदी अधिकारी राजेश कुमार यादव ने किया तथा धन्‍यवाद विश्‍वविद्यालय के कुलसचिव क़ादर नवाज़ ख़ान ने ज्ञापित किया। इस कार्यक्रम में प्रतिकुलपति द्वय प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्‍ल, प्रो. चंद्रकांत रागीट, प्रो. अवधेश कुमार, प्रो. नृपेंद्र प्रसाद मोदी, अजय ब्रह्मात्मज , डॉ. जयंत उपाध्‍याय, विश्वविद्यालय के प्रयागराज केंद्र के अकादमिक निदेशक प्रो. अखिलेश दुबे सहित वर्धा मुख्‍यालय और क्षेत्रीय केंद्र प्रयागराज के अध्‍यापक, अधिकारी बड़ी संख्‍या में उपस्थित रहे।

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