Iran Hijab protest

हिजाब: (Hijab) ए कवर

Hijab: कुछ समस्याएं मनुष्य समुदाय के अंदर गहरी पैठ रखती हैं । इतनी गहरी कि उससे संबधित व्यक्ति और समुदाय खत्म हो जाता है किन्तु वो समस्याएं जीवित रहती है । ये समस्याएं परंपरागत रूप से अनंत समय से चल रही होती हैं किंतु दुर्भाग्य तथाकथित सबसे बुद्धिजीवी मनुष्य वर्ग का पूरा समुदाय भी उसको हल करने में सफल नहीं हो पाता है ।

ऐसी वास्तव में बहुत सी समस्याएं हो सकती है जो पुरुष या महिला वर्ग से संबंधित है । किंतु अभी ध्यान खींच रही है ईरान की घटना ।
ईरान की यह घटना 13 सितंबर की है । मासा अमीनी नाम की एक लड़की जो अपनी गाड़ी में जा रही है उसे रोका जाता है और हिजाब (Hijab) नहीं पहनने पर उसे देश की सरकार की तरफ से गिरफ्तार किया जाता है । उसके बाद उसे इतना प्रताड़ित किया जाता है कि अंततः उसकी मृत्यु हो जाती है । फिर देश की जनता में इस हत्या को लेकर एक आक्रोश आंदोलन के रूप में सामने आता है जिसे इरान सरकार द्वारा बेरहमी से दबाया जाता है । जिसमें बहुत लोगों की जान जाती है, गिरफ्तारीया होती है और बहुत लोग हॉस्पिटलाइज होते हैं । सामान्य रूप से अप्रजातांत्रिक देशों में आंदोलन का ये स्वरूप ही दिखाई देता है । यह एक अलग विषय है ।

यहाँ महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि हिजाब ना पहनना दंडनीय अपराध है और ऐसा देश की सरकार द्वारा स्वीकार किया जाता है । यह मामला एक मुस्लिम समुदाय के संबंध में है ।
कुछ महीने पहले भारत ने भी एक घटना घटित हुई थी। भारत में केरल न्यायालय में केस गया था । न्यायलय मे उसके तथ्य अलग थे । किंतु जनता के सामने यह केस नई प्रकार से सामने आया । यह भी मामला एक मुस्लिम समुदाय से जुड़ा हुआ था । जहाँ एक लड़की हिजाब पहनना चाहती थी और उसे हिजाब पहनने से रोका गया।

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दोनों ही मामले एक दूसरे से भिन्न नजर आ सकते हैं । कुछ देशों में हिजाब का महिलाओं द्वारा विरोध किया जा रहा है जबकि कुछ देशो में हिजाब का मुस्लिम महिलाओं द्वारा समर्थन किया जाता है ।
यद्यपि कुछ लोगों के मतानुसार यह धार्मिक मामला माना जा रहा है । उचित है कि एक समुदाय को दूसरे समुदाय के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए । किंतु कोई भी मामला धार्मिक सीमाओं के भीतर तब तक माना जाएगा जब तक हिंसा या मानव मृत्यु कारित ना हो। इसलिए जहाँ मानवीयता का प्रश्न उत्पन्न होता है तो धार्मिक मामला महत्वहीन हो जाता है । फिर मामला समाज के समाज सुधारकों के हाथ से निकलकर विश्व मंच पर आ जाता है । यह प्रथम तथ्यत सही हैं और यहाँ किसी भी व्यक्ति की अस्वीकारोक्ति उसके मत को महत्वहीन सिद्ध करती है ।

एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि क्या हिजाब का भारत में समर्थन उचित था या ईरान में उसका विरोध उचित है । निष्कर्ष रूप में यह निकल कर आता है कि महिलाओं को क्या पहनना है यह देश की सरकार तय करेगी या एक मनुष्य को क्या पहना है यह दूसरा मनुष्य तय करेगा । यह बिल्कुल गलत है । यह ऐसा है जैसे किसी शक्तिशाली प्राणी के द्वारा कमजोर व्यक्ति का दमन किया जाता है । यह महिला के प्रति पुरुष समाज की मानसिकता द्वारा किया जाने वाला शोषण है ।

यह एक समुदाय विशेष का मामला था। क्या अन्य समुदाय में ऐसा नहीं है । अवश्य है । भारत में तथाकथित हिंदू मान्यता वाले समाज में भी महिलाओं में सदियों से घूंघट प्रथा का चलन रहा है । आज भी महिलाओं को कुछ वर्ग विशेष में अपने परिवार के सदस्यों के सामने घूंघट में रखा जाता है और समाज के समक्ष भी घूँघट मे रखा जाता है । यद्यपि ऐसा समाज महिलाओं में भी अंतर करता है । वह महिलाएं जो अविवाहित है वह अब स्वतंत्र है और जो विवाहित स्त्रियां हैं उनको घुंघट में रखा जाता है । इस समाज में महिलाओं में आयु के अनुसार भी अंतर पाया जाता है वह महिलाएं जो नवविवाहित हैं उन्हें घूँघट मे रखा जाता है, किंतु जो वृद्धा हो चुकी हैं वह स्वतंत्र है । ये हर समाज ही कुरीतियांँ हैं । हिन्दू समाज में इसका समय- समय पर समाज सुधारकों के द्वारा विरोध किया गया और वर्तमान में यह पर्दा प्रथा कम प्रचलित है ।

यहाँ महत्वपूर्ण अन्तर यह है कि ये कुरीतीयाँ वर्तमान में किसी कानून द्वारा समर्थित नहीं है, इसलिए स्थिति सामान्य है । लेकिन ईरान मे यह कानून द्वारा समर्थित है कि महिला को क्या पहनना चाहिए । यह ठीक उसी तरह से है जैसे उत्तरी कोरिया द्वारा मानव चिंतन और बौधिक स्वतंत्रता को बल पूर्वक समाप्त किया जा चुका है । प्रत्येक व्यक्ति क्या पहनेगा क्या नही पहनेगा इसके लिये कोई देश या समाज या दूसरे व्यक्ति कानून नहीं बना सकते है ना ही कोई आदेश जारी किया जा सकता है । अगर किसी महिला पुरुष को हिजाब से खुद को ढकना है तो वह खुद को ढक कर रख सकती है । और किसी को हिजाब नहीं पहनना है तो वह नहीं पहने।

परन्तु अनुशासित होने के दृष्टिकोण से किसी स्थान, संस्था में एक ड्रेस कोड जारी किया जा सकता है और वहाँ इस आधार पर विवाद नहीं किया जा सकता कि मैं स्वतंत्र हूँ चुनाव के लिए ।
अब पर्दा के गहरे इतिहास में उतरते हैं । हम सनातन परंपरा के प्राणी अगर अपने पूर्वजों के परिधान पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि वहांँ वस्त्र बहुत कम प्रयोग में लिए जाते थे । अगर हम शकुंतला के वस्त्रों पर गौर करें या प्राचीन देवी स्वरूपो पर या मातृ स्वरूपो पर जो मानी गई है, वहाँ देखें तो पाएंगे कि वस्त्रो से पूरे शरीर को छुपाने का प्रयास नहीं किया जाता था । कारण वहाँ महिला और पुरुषों का चिंतन विस्तृत था । मन आध्यात्मिक और पवित्र था ।

समाज में परिवर्तन हुआ चिंतन का स्तर गिरा । पुरुष समाज महिलाओं के प्रति अपने आध्यात्मिक विचारों से परे विचार करने लगा । किंतु दण्ड व्यवस्था इस समाज को नियंत्रण करने हेतु लाई गई । और समाज में दो वर्ग की महिलाएं होने लगी । एक वो महिलाएं जो शक्तिशाली परिवारो का हिस्सा थी। वहाँ महिलाएं वस्त्र पहनने हेतु स्वतंत्र थी क्योंकि कोई पुरुष उनके प्रति गलत भाव नहीं ला सकता था । अन्यथा उन्हें मृत्यु दण्ड मिल सकता था । दूसरी महिलाएं जो कमजोर परिवार का हिस्सा होती थी ऐसी महिलाओं को समाज अपने कुचेष्ट दृष्टिकोण से देख सकता था । अतः इन महिलाओं को छुपा कर रखा जाता था या ढक कर रखा जाता था ।

अर्थात महिलाओं का कम और ज्यादा परिधान उनसे संबंधित पुरुष के पौरूष या वीरता पर निर्भर करता था । किंतु पुरुष अपनी कायरता को छुपाना चाहता रहा है । इसीलिए महिलाओं को ढकने का प्रबंध कर दिया गया । यह एक प्रचलित इतिहास था । और इस सत्य को स्वीकारना होगा ।
अगर किसी भी समाज में हिजाब या पर्दा प्रथा या घूंघट मौजूद है या किसी परिवार में ऐसा मौजूद है तो वह कमजोर वर्ग है ।
किंतु इस स्वीकारोक्ति से भी समस्या का हल नहीं होगा । समस्या का हल वही है विरोध । उस मानसिकता का विरोध जो आपके वस्त्रों को तय करता है । उस विपरीत लिंग की मानसिकता का विरोध जो बलपूर्वक आपको कुछ करने या न करने के लिए विवश करता है ।

यद्यपि ऐसा नहीं है कि पूर्ण समाज स्त्री या पुरुष समुदाय में विभक्त होकर ऐसा कर रहा है । यह कुछ भीरू मानसिकता के द्वारा ही समर्थित है । जो डरे और कुंठित व्यक्ति है । यद्यपि ईरान में महिलाओं का समर्थन पुरुषों के द्वारा किया जा रहा है । अतः वास्तव में यह विवाद महिला बनाम पुरुष का नहीं है । यह गलत मानसिकता और सही मानसिकता का है । जहाँ पर कोई किसी वर्ग विशेष को अधिकार नहीं देता । सभी अपने अधिकारों पर समान अधिकार रखते हैं ।

अतः बहुत संभव है कि ऐसी मानसिकता और ऐसी किसी देश की व्यवस्था और शासन को गिराकर सही मानसिकता को शासन करने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए । विरोध तब तक जारी रहे जब तक कि कुरीतियांँ खत्म ना हो । क्योंकि यह धर्म नहीं कुरीतियांँ है, जो कमजोर और कुंठित लोगों ने स्वयं से कमजोर लोगों के लिए बनाई है ।
ईरान की समस्या का समाधान मात्र एक ही है विरोध और निरंतर विरोध । देश मे उन लोगों को नेतृत्व करने का अवसर मिलना चाहिए जो शोषण की अगुवाई करने का समर्थन नहीं करते हैं ।

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए Desh ki Aawaz उत्तरदायी नहीं है.)

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