Banner Mohit Upadhyaya

बंगाल की खाड़ी (Bay of Bengal) में सोनार बांग्ला

                व्यंग्य – विधा

राजा साहब बंगाल की खाड़ी (Bay of Bengal)को सोनार बांग्ला बनाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है इसलिए वह बंगाल की खाड़ी का पूर्ण समर्थन हासिल करने के लिए धुआंधार प्रचार करने में व्यस्त है।

राजा साहब खुद को एक अच्छा व्यापारी समझते हैं और उनका मानना है कि घाटे का सौदा तो वह भूलकर भी नहीं कर सकते है क्योंकि उनके पूर्वज व्यापार की जन्मभूमि गुजरात से संबंध रखते थे। यही कारण है कि राजा साहब अपने व्यापार को मजबूती देने एवं बंगाल की खाड़ी (Bay of Bengal) को सोनार बांग्ला में परिवर्तित करने के लिए वहां पर पूरी तरह नागरिक लोकतंत्र की स्थापना करना चाहते है इसलिए राजा साहब को यह महसूस होने लगा है कि पिछले एक दशक से जो लोग बंगाल की खाड़ी पर राज कर रहे हैं उन्हें न तो लोकतंत्र की समझ है और न ही उनमें जनता के अधिकारों के प्रति कोई खास रुचि है। कुल मिलाकर राजा साहब का मानना है कि ऐसे लोगों को अब बंगाल का राजसिंहासन छोड़ देना चाहिए ताकि बंगाल की खाड़ी के लोगों को एक स्वतंत्र एवं गौरवपूर्ण जीवन व्यतीत करने में कोई बाधा उत्पन्न न हो। अपने इसी मंतव्य को पूरा करने के लिए वह बंगाल के लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए भरपूर प्रयास करते हैं और अपनी हरेक रैलियों में लाखों लोगों की भीड़ जुटा लेते हैं और हाथ लहराकर हंसते हुए जनता का अभिवादन स्वीकार करते है।

इतना ही नहीं बंगाल की इन बड़ी बड़ी रैलियों में भीड़ में शामिल होकर आये कोविड को देखकर मुस्कुराते हुए कहते हैं कि कहा था ना, जब तक दवाई नहीं कोई ढिलाई नहीं; अब देखो हमारा जलवा। कोविड राजा साहब के चरणों में गिर जाता है और उनके चरणों में जगह मांगना शुरू कर देता है। राजा साहब दयालु प्रवृत्ति के तो नहीं है परन्तु तारीफ के बड़े भूखे हैं। राजा साहब ने कोविड की इस प्रार्थना पर यह सोचना आरंभ किया कि अब पूरा विश्व देखेगा कि कैसे उन्होंने कोविड को अपने वश में कर लिया है और जहां तक हो सके, इससे उन्हें वैश्विक ख्याति भी प्राप्त होगी। राजा साहब इसी प्रशंसा भाव के साथ अपनी प्रजा की स्वास्थ्य आवश्यकताओं को अनदेखा करते हुए विश्व के 150 से अधिक देशों को दवाईयां एवं अन्य सहायक उपकरण उपलब्ध कराने में सफल हो जाते है जो उनके विज्ञानियों ने कड़ी लग्न एवं मेहनत के साथ राज्य की जनता को बचाने के लिए तैयार की थी। परंतु राजा साहब मेडिकल डिप्लोमेसी को सोफ्ट डिप्लोमेसी का एक महत्वपूर्ण भाग समझते हैं। कोविड की प्रार्थना को विदेश नीति के संदर्भ में समझते हुए राजा साहब उसे अपने चरणों में जगह प्रदान कर देते है और वह राजा साहब के चरणों में लिपटकर राजधानी नगरी दिल्ली आ जाता है। 

दिल्ली आते ही राजा साहब से पता नहीं कैसे कोई चूक हो जाती है और कोविड राजा साहब की पहुंच से दूर होकर दिल्ली के पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश और मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र इत्यादि राज्यों के साथ ही फिर से बंगाल पहुंच जाता है, राजा साहब के एक विशेष मंत्री के विमान में सवार होकर। बंगाल सहित अन्य सभी राज्यों में वह अपना प्रभाव बढ़ाकर वहां की जनता पर मौत का साया बनकर टूटता है। राजा साहब को ‘जब तक दवाई नहीं तब तक ढिलाई नहीं’ के मंत्र पर पूरा विश्वास होता है और उनके मंत्री जो सलाहकार कम एवं चमचे ज्यादा, के रूप में काम करते हैं; उनके इस मंत्र में अगाध आस्था व्यक्त करते हैं। राजा साहब निश्चिंत होकर बंगाल की खाड़ी के सौंदर्य को दिन में कई – कई बार निहारते हैं। वैसे तो राजा साहब बंगाल के बगल में ही बसे बिहार राज्य पर भी अपना प्रभाव जमा चुके हैं परन्तु वहां पर अभी पूरी तरह नियंत्रण स्थापित नहीं कर पाए है इसीलिए अपने एक सहयोगी के साथ गठबंधन धर्म की मर्यादाओं का पालन कर रहे हैं।

Bengal election

राजा साहब बंगाल की खाड़ी (Bay of Bengal) के साथ ही असम, तमिलनाडु, पुड्डचेरी, केरल राज्यों में भी जा चुके हैं परन्तु इन चारों राज्यों में से असम को छोड़कर कहीं भी उनका यथेष्ठ स्वागत सत्कार नहीं किया गया। शायद यहां के लोगों को अभी राजा साहब की राजनीतिक एवं आर्थिक नीतियों को उतनी समझ नहीं है जितनी बंगाल की खाड़ी के नजदीक बसे लोगों को है इसलिए राजा साहब बंगाल की खाड़ी के लोगों से अधिक प्यार करते हैं और उन्हें सोनार बांग्ला का नारा थमा देते हैं। बंगाल के लोग अपने अपने घरों से बाहर निकलकर सोनार बांग्ला को, राजा साहब के इस पुराने नारे को भूलकर जो अक्सर वो रेडियो, टीवी पर दोहराते थे कि ‘दो गज की दूरी मास्क है जरूरी’ हाथों हाथ लेना शुरू कर देते है। राजा साहब का व्यक्तित्व एवं बोलचाल का तरीका जनता को इतना मोहित कर लेता है कि लोग उन पर सहज ही विश्वास कर लेते है और उनसे प्रश्न पूछना राष्ट्र धर्म के विरुद्ध समझते है। राजा साहब कोविड को एक बीता हुआ ऐसा बुरा पल समझने की भूल कर बैठते है जिसे उन्होंने अपने राजनीतिक कौशल एवं दूरदर्शिता के बल पर विजित कर दिया। तमाम बड़े बुद्धिजीवी भी राजा साहब के राजनीतिक कौशल का लोहा मानते हैं और दिन-रात वे सभी बुद्धिजीवी उनका भरपूर समर्थन करने में लगे रहते है।

मीडिया के लोग भी राजा साहब की आपदा प्रबंधन नीति से बड़े खुश हैं और वह राजा साहब की हरेक मीटिंग को बिना किसी खास परिणाम के हाई लेवल मीटिंग के रूप में उल्लेख करते है और उनकी छोटी मोटी घोषणा को भी दूरगामी परिणामों वाली घोषणा के रूप में व्यक्त करते है। राजा साहब बंगाल की खाड़ी (Bay of Bengal)को सोनार बांग्ला बनाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है इसलिए वह बंगाल की खाड़ी का पूर्ण समर्थन हासिल करने के लिए धुआंधार प्रचार करने में व्यस्त है। विपक्षी दलों का राजा साहब की इस क्षमता एवं योग्यता को देखकर बुरा हाल है इसलिए उन्होंने राजा साहब का अनुसरण करते हुए सोनार बांग्ला जिसमें कहीं न कहीं थोड़ा बहुत हिन्दुत्व छिपा हुआ है, का अनुसरण करना शुरू कर दिया है। विपक्ष के लोग लोग राजा साहब को बंगाल की खाड़ी पर अधिकार करने से रोकने के लिए उनके साथ अभद्रता के साथ पेश आते है और उन्हें बाहरी तक कहते है। राजा साहब प्रत्युत्तर में भारतीय संविधान द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को प्राप्त इकहरी नागरिकता का हवाला देते है। इससे जनता एवं राजा साहब के लोगों में दुगुना उत्साह उत्पन्न हो जाता है। 

राजा साहब बंगाल में भव्य एवं विशाल रैली को संबोधित कर दिल्ली आ चुके होते है। राजा साहब इतनी विशाल जनसभा को देखकर खुश हो जाते है और अपना यह उद्देश्य जाहिर करते है कि कोविड के कारण शैक्षणिक संस्थानों समेत सभी आर्थिक गतिविधियों बंद की जा सकती है परन्तु ऐसे भव्य एवं विशाल रैलियों को नहीं जिसमें आप जैसे सौभाग्यशाली लाखों लोगों का जमावड़ा होता है। राजा साहब की यह आवाज न्यायपालिका के कानों तक पहुंच जाती है और वह न्यायिक सक्रियता का रूप धारण कर उनकी जोरदार खिंचाई करना शुरू करती है। राजा साहब रात्रि भोज समाप्त कर सोने की तैयारी में होते है। उन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं होती है कि उनकी कैद से छूटकर भागा कोविड दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र इत्यादि राज्यों में लाखों लोगों की मौत का कारण बन रहा है और अस्पतालों में बुनियादी सुविधाओं एवं उपकरणों जैसे बेड, आक्सीजन, आईसीयू, वेंटीलेटर इत्यादि, का विशेष अभाव हो चुका है। राजा साहब तो बस सोनार बांग्ला में व्यस्त रहते है, इस आशा के साथ कि कीचड़ में ही कमल खिलता है।

अचानक राजा साहब से मिलने उनका बेहद खास मंत्री आता है और उनके कान में चुपके से आकर कुछ बोलता है। वैसे राजा साहब उस समय अकेले ही थे फ़िर भी वह कान में क्यों बोलता है यह बात समझ से परे है। शायद वह जानता होगा कि दीवारों के भी कान होते है। राजा साहब अच्छे वक्ता तो है ही साथ ही चतुर भी है। वह तुरंत मौके की नजाकत समझ लेते है और 8 बजकर 45 मिनट पर राष्ट्र के नाम संबोधन की घोषणा कर देते है। मीडिया के लोग टीआरपी बढ़ाने के लिए इस घोषणा को मुंह से पकड़ते हैं और देशवासियों को आश्वासन देते हैं कि कोविड दूर करने के लिए राजा साहब देशहित में कोई बड़ी घोषणा करने वाले है। उधर देशवासियों को इस बात का भय हो जाता है कि कहीं पिछले वर्ष के समान इस वर्ष भी लाकडाउन की घोषणा न हो जाए इसलिए वे अपने ईष्टदेव से राजा साहब द्वारा ऐसा न करने की प्रार्थना करने लगते है।

Whatsapp Join Banner Eng

आखिरकार राजा साहब दूरसंचार के माध्यम से राष्ट्र के नाम संबोधन शुरू करते है। अपने संबोधन के अंत में राजा साहब जनता से इस मुश्किल वक्त में धैर्य बनाए रखने की भावुक अपील करते है और स्वयं को दूरदर्शी शासक के रूप में प्रस्तुत करते हुए जनता को यह भरोसा देते है कि मैंने आप सभी की भावनाओं को समझते हुए लाकडाउन लागू न करने का निर्णय किया है। परंतु जितना संभव हो तब तक के लिए आप घर के अंदर ही विश्राम करें, जब तक कि कोविड को मैं फिर से बंगाल की खाड़ी की रैलियों में न खोज सकूं।

घर में रहकर आप भूखे न रहें इसके लिए अगले कुछ माह तक प्रति व्यक्ति पांच किलो अनाज लगभग 80 करोड़ लोगों को मुफ्त प्रदान किया जाएगा। जनता उनके संबोधन को सुनकर झूम उठी और अपने अपने ईश्वर को धन्यवाद देने में व्यस्त हो गई। जनता राजा साहब द्वारा राष्ट्रव्यापी लाकडाउन न लगाए जाने से और मुफ्त में प्रति व्यक्ति पांच किलो अनाज की घोषणा से खुश हैं और इधर राजा साहब अपने देश को विश्व गुरु बनाने एवं बंगाल की खाड़ी को सोनार बांग्ला बनाने का सपना पूरा करने में पूरी कोशिश के साथ जुट जाते है। (डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.)

यह भी पढ़े…..Corona: कोरोना ने मानव को नहीं मानवता को परास्त किया है।

ADVT Dental Titanium