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National Forensic Science Hackathon: आई आई टी बी एच यू के शोध कर्ताओं ने जीता राष्ट्रीय फॉरेंसिक साइंस हैकाथान

National Forensic Science Hackathon: अपराध स्थल की जांच में क्रांतिकारी नवाचार के लिए आई आई टी बी एच यू के शोधकर्ताओं ने राष्ट्रीय फॉरेंसिक साइंस हैकाथॉन जीता

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रिपोर्ट: डॉ राम शंकर सिंह
वाराणसी, 16 अप्रैल:
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय), के जैव रासायनिक अभियांत्रिकी विभाग की एक शोध टीम ने राष्ट्रीय फॉरेंसिक साइंस विश्वविद्यालय, गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा आयोजित ऑल इंडिया फॉरेंसिक साइंस समिट के अंतर्गत आयोजित फॉरेंसिक हैकाथॉन 2025 में शीर्ष पुरस्कार जीतकर, राष्ट्रीय स्तर पर संस्थान को गौरवांवित किया. यह पुरस्कार भारत सरकार के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा विज्ञान भवन, नई दिल्ली में प्रदान किया गया।

उक्त सम्मान टीम द्वारा जैविक तरल पदार्थों का उपयोग करके उम्र का सटीक अनुमान लगाने हेतु विकसित की गई ग्लाइकेन-आधारित फॉरेंसिक तकनीक के लिए प्रदान किया गया है, जो अपराध जांच के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। पुरस्कार विजेता टीम का नेतृत्व प्रो. सुमित कुमार सिंह (स्कूल ऑफ बायोकैमिकल इंजीनियरिंग) ने किया, जिनके साथ शोधार्थी शांतनु सिंह (पीएच.डी. स्कॉलर) एवं प्रणव चोपड़ा (बी.टेक छात्र) शामिल हैं। इस नवाचार के लिए टीम को ₹2,00,000/- की नकद राशि एवं एक स्मृति चिह्न प्रदान किया गया।

इस संबंध में जानकारी देते हुए प्रोफेसर सुमित सिंह ने बताया कि जहाँ डीएनए आधारित फॉरेंसिक विश्लेषण – जैसे एपिजेनेटिक मार्कर्स – उम्र अनुमान के लिए उपयोगी सिद्ध हुए हैं, वहीं ये तकनीकें केवल जनसंख्या स्तर पर ही प्रभावी होती हैं। ये विधियाँ अक्सर शुद्ध डीएनए की आवश्यकता रखती हैं तथा क्षतिग्रस्त नमूनों या विविध पृष्ठभूमियों वाले व्यक्तियों पर कार्य करते समय अपनी सटीकता खो देती हैं, जो फॉरेंसिक जांच में सामान्य स्थिति होती है।

इन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए आई आई टी बी एच यू की टीम ने ग्लाइकेन – यानी वे जटिल शर्करा अणु जो प्रोटीन से जुड़ते हैं और उम्र, स्वास्थ्य एवं जीवनशैली के अनुसार परिवर्तित होते हैं – पर आधारित एक वैकल्पिक दृष्टिकोण अपनाया।

टीम ने जैव-तरलों से अणु स्तर पर हस्ताक्षर पढ़ने के लिए ग्लाइकोमिक प्रोफाइलिंग और मशीन लर्निंग एल्गोरिदम का प्रयोग किया, जिससे न केवल व्यक्ति की वास्तविक उम्र (chronological age) का बल्कि जैविक उम्र (biological age) का भी अनुमान लगाया जा सकता है। जैविक उम्र व्यक्ति की स्वास्थ्य स्थिति, रोग प्रतिरोधक क्षमता या मानसिक तनाव की स्थिति को दर्शाती है, जो अपराध की जांच में महत्वपूर्ण सुराग दे सकती है।

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यह तकनीक विभिन्न फॉरेंसिक परिदृश्यों में बहुपयोगी सिद्ध हो सकती है – जैसे जब कोई डीएनए मेल नहीं खाता हो, तो संदिग्ध की आयु सीमा का अनुमान लगाने में, अज्ञात शवों की पहचान में, बहु-अपराधियों के बीच अंतर करने में, और किशोर अपराधों या मानव तस्करी जैसे मामलों में उम्र सत्यापन हेतु। इसके अलावा, किसी व्यक्ति की जैविक उम्र और स्वास्थ्य स्थिति का विश्लेषण घटना के समय उनके तनाव या बीमारी की स्थिति को भी दर्शा सकता है, जिससे अपराध की समय-सीमा या परिस्थितियों को पुनर्निर्मित करने में सहायता मिल सकता है.

आई आई टी बी एच यू के निदेशक प्रो. अमित पात्रा ने टीम को इस उपलब्धि पर बधाई दी और कहा कि यह नवाचार मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप है। उन्होंने कहा, “यह वही स्वदेशी, विज्ञान-आधारित पहल है जिसकी हमारे देश को कानून व्यवस्था, स्वास्थ्य देखभाल और जैव सुरक्षा जैसे जटिल मुद्दों के समाधान के लिए आवश्यकता है। IIT (BHU) ऐसे तकनीकी नवाचारों को पोषित करने और आम जनता तक पहुँचाने के लिए प्रतिबद्ध है।”

यह तकनीक पहले ही राष्ट्रीय मंचों और वैज्ञानिक सम्मेलनों में चर्चा का विषय बन चुकी है और इसे वास्तविक फॉरेंसिक अनुप्रयोगों में रूपांतरित करने की दिशा में प्रयास जारी हैं। सरकारी सहयोग प्राप्त होने पर, टीम इसे एक राष्ट्रव्यापी ग्लाइकोमिक निगरानी पहल के रूप में विस्तार देने का लक्ष्य रखती है, जिससे भारत अगली पीढ़ी की आणविक फॉरेंसिक विज्ञान में वैश्विक नेतृत्व स्थापित कर सके।

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