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Coaching Center: हादसे के शिकार होते कोचिंग केंद्र  

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Coaching Center: Pro Girishwar Misra

आशाओं और आकांक्षाओं की उठापटक के बीच ये युवा कठिन परिस्थितियों में अथक परिश्रम करते हैं । वे अपने सपनों को साकार करने के लिए धैर्यपूर्वक और लगन के साथ कोशिश करते हैं । अब औपचारिक डिग्री की गुणवत्ता पिटने के फलस्वरूप हर काम के लिए, यहाँ तक कि अगली कक्षा में प्रवेश या फैलोशिप के लिए भी कोई न कोई परीक्षा देना अनिवार्य हो चुका है । ख़स्ताहाल हो रहे विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय की पढ़ाई अपर्याप्त होती है। ऐसे में यदि कोचिंग केंद्रों (Coaching Center) की झड़ी लग रही है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं । पर इस बेहद लोकप्रिय और नफ़े वाले शानदार व्यापार के विस्तार के साथ इसके सुचारु संचालन लिए ज़रूरी आधारभूत सुविधाओं का घोर अभाव भी होता है । वस्तुतः व्यावसायिक कोचिंग का विशाल धंधा शिक्षा की घोर दुरवस्था की स्थिति का बयान करता है ।

पिछले कुछ वर्षों में कोचिंग संस्थानों में आग लगने की घटनाएँ होती रही हैं ।अब दिल्ली के राजेंद्र नगर इलाक़े में एक नामचीन कोचिंग संस्थान के तलघर या बेसमैंट में  जहां विद्यार्थी उपस्थित थे अचानक कंधों से ऊपर तक इतना पानी भर गया कि कोचिंग लेने वाले तीन व्यक्तियों, दो युवतियाँ और एक युवक, जो आई ए एस ( सिविल सर्विस ) की तैयारी कर रहे थे, उनकी जान चली गई । अब तक ज्ञात तथ्यों से यह दुर्घटना आपराधिक लापरवाही का परिणाम लगती है परंतु इसकी ज़िम्मेदारी तय करना विवादास्पद ही रहेगा । यह अमानवीय दर्दनाक हादसा एक ग़ैर क़ानूनी ढंग से बिना अनुमति के चलने वाली कोचिग केंद्र की निजी व्यवस्था के तहत हुआ ।

जब भी गम्भीर घटना होती है जनता की आवाज़ उठती है और जाँच कमेटी बैठेगी “, “सख़्त कार्रवाई होगी “, “ क़ानून अपना काम करेगा “ और ‘दोषी को बख्शा नहीं जायेगा’ कहते हुए सरकार जगती है। उसकी ओर से प्रतिक्रिया का यह चिरपरिचित सधा-सधाया ‘स्टैण्डर्ड’ तरीक़ा हो चुका है। कभी-कभी उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय ज़रूर अपनी आँख खुद खोल कर ख़ास मामले का संज्ञान ले कर कार्रवाई करता है । मानव अधिकार आयोग भी कुछ ऐसा करता है । पर यह सब बड़े दुर्लभ प्रकरण में ही होता है जिसका निश्चय न्यायमूर्ति के नज़रिए से होता है । प्रायः घटनाओं को और उनके आशय को अपनी मौत मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। समय बीतने के साथ लोग भूल जाते हैं और ज़िंदगी में आगे बढ जाते हैं। राजनीति और राजनेता भी बदल जाते हैं। हम अक़्सर वहीं खड़े रहते हैं जहां पहले खड़े थे। यथास्थितिवाद हमें और हमारे प्रिय नेताओं की बड़ी पसंदीदा तकनीक है।

विद्यालय की पढ़ाई से विद्यालय की परीक्षा की तैयारी और कोचिंग की पढ़ाई से व्यावसायिक परीक्षा की तैयारी, यह आज अभिभावक और विद्यार्थी के मन में एक स्पष्ट समीकरण बन चुका है । इसी के अनुसार जीवन मकी डगर पर कदम बढ़ाने की क़वायद चल रही है । आज मेधावी बच्चे विद्यालय को छोड़ कोचिंग में भर्ती हो रहे हैं । सरकारी शिक्षा के प्रति सरकार, समाज और विद्यार्थी सबका अविश्वास  बढ़ रहा है । इसकी रोकथाम करने के बदले साझी प्रवेश परीक्षा इसी अविश्वास की पुष्टि करती है और घोषित करती है कि विद्यालय की पढ़ाई जैसे हो रही थी जारी रहेगी यदि आगे पढ़ने-पढ़ाने की इच्छा है तो विद्यालयी परीक्षा के अतिरिक्त इस नई परीक्षा को अनिवार्य रूप से पास करना होगा । विद्यालय की पढ़ाई प्रवेश परीक्षा के लिए सिर्फ़ प्रवेश पत्र रह जायगी।

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गौर तलब है कि शिक्षा पर बाज़ार की जकड़न दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। कोचिंग केंद्र का ग़ैर ज़िम्मेदार संचालन करने वाले अवैध अड्डा सरकारी तंत्र की आँखों के सामने चलता था और जाने कितनी जगह अभी भी चल रहा है । सरकारी व्यवस्था अक्सर इस बात से बेख़बर और उदासीन रहती है कि शिक्षा  और कोचिंग के संस्थानों में क्या और कैसे हो रहा है । युवा वर्ग की ज़िंदगी के साथ इस तरह का खिलवाड़ अक्षम्य अपराध है । यह अलग बात है कि ऐसे और इसी तरह के हादसे ग़ैरक़ानूनी शिक्षा की दुकानों में और उनके आस पास विद्यार्थियों के रहने के लिए बने “ पी जी “ आवासों में आये दिन होते रहते हैं ।

यहाँ ठूँस-ठूँस कर बच्चे भरे जाते हैं । मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से निहायत बुरे हालात में चलने वाले ये कोचिंग के व्यापार केंद्र देश में शिक्षा की दुर्गति की हक़ीक़त बयान करते हैं । आज की जनसंख्या में युवा-वर्ग के अनुपात में वृद्धि के साथ शिक्षा पर दबाव लगातार बढ़ रहा है ऐसे में कोई  राहत नज़र नहीं आती । सार्वजनिक क्षेत्र की तुलना में निजी क्षेत्र का अभूतपूर्व विस्तार हुआ है क्योंकि सरकार की ओर से न पर्याप्त निवेश हो रहा है न व्यवस्था ही ठीक हो पा रही है । चूँकि शिक्षा देश के समाज के मानस-निर्माण, उत्पादकता तथा सर्जनात्मक नवोन्मेष सब के लिए महत्वपूर्ण है इस समस्या पर तत्काल ध्यान देना आवश्यक है।

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