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Bye-Bye 2022: ये ढलता हुआ दिसम्बर…

Bye-Bye 2022: !!ढलता हुआ दिसम्बर!!

Rajesh rajawat
राजेश राजावत “ओजस”
दतिया, मध्य प्रदेश

कोहरे में जाड़े की धूप की आहटें
सब है मगर कहां पहले सी राहतें
नहीं अब कुएं से उठती भाप कहीं
फैला गया धरती पे बेहद पाप कहीं
देख -देख उदास हो गया है अम्बर
कितना मायूस है ढलता हुआ दिसम्बर…।

अब पनघट पे गोरी नजर ना आए
और ना ही दूर कहीं भंवरे गुनगुनाए
जाड़े में हल्की सी धूप मधुर सुहाए
कलियां ओस की बूंदों से नहाए
करीब रहकर दूर हो रहा नवम्बर
कितना मायूस है ढलता हुआ दिसम्बर…।

ओस की बूंदें पत्तों से कुछ कह रहीं
हसीन यादें है जो बस साथ रह रहीं
साल का साथ था पल में छूट रहा है
आज मुझ से मेरा दिल रूठ रहा है
कुछ आसान कुछ मुश्किल रहा सफर
कितना मायूस है ढलता हुआ दिसम्बर…।

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