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Educated ganvar: शिक्षित गंवार (लघुकथा)

Educated ganvar: बस स्टैंड की बैंच पर बैठते हुए अंकित बोला।
अरे यार सुनील पता नही कब बस आएगी,कितनी गंदगी है यहाँ और ये मक्खियां बाप रे बाप !
पास में जमीन पर बैठे ग्रामीणों के झुंड की तरफ इशारा करते हुए बोला।
इतनी गंदगी में ये लोग जमीन पर बैठ कर आराम से खाना खा रहे है,अनपढ़,गंवार, अज्ञानी कहे के।
हाँ ये अनपढ़,गंवार तो हो सकते है पर इन्हें अज्ञानी समझने की भूल मत करना।
तो क्या ये बड़े ज्ञानी लोग है अंकित बोला?
जो ज्ञान इनके पास है न दोस्त वो ऑक्सफोर्ड और हार्वर्ड में भी नही मिलेगा।
अच्छा बताओ तुम बारिश का पूर्वानुमान लगा सकते हो क्या?
अंकित ने नही में गर्दन हिलाई।
ये गांव के लोग हवा का रुख देखकर बारिश का अनुमान लगा लेते है।
पेड़ पौधों पक्षियों के व्यवहार से मौसम का अंदाजा लगा लेते है।
और टाइम देखने के लिए हमे घड़ी या मोबाइल की जरूरत होती हैं, ये लोग दिन में सूरज की स्थिति और रात में तारो को देखकर लगभग सही टाइम बता सकते है। और इनकी हस्तकला,ग्रामीण वास्तुकला का तो कहना ही क्या।
हमे अपने घरों में कूलर और ए सी की जरूरत पड़ती हैं। जबकि इनके हाथ के बने कच्चे घर गर्मियों में ठंडे और सर्दियों में गर्म।
अंकित झल्लाकर बोला,तुमसे तो बात करना बेकार है हर बात में तर्क वितर्क लेकर बैठ जाते हो।
मेरे गोदी में अपना लेपटॉप रखते हुए
तुम बैठो हम जरा टँकी खाली करके आते है।
तभी पास बैठे ग्रामीणों में से एक युवक भी उठाकर चल दिया।
वो ग्रामीण युवक सामने बने शौचालय में पेशाब करने गया।
जबकि हमारे हाई क्वालिफाइड साथी सामने की गंदी दीवार को और गंदा करके वापस आ रहे थे।

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