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Mahatma gandhi international hindi university in wardha: भारत को भव्‍य और श्रेष्‍ठ बनाना हम सबकी जिम्‍मेदारी: प्रो.रजनीश कुमार शुक्‍ल

Mahatma gandhi international hindi university in wardha: भारत मां के श्रेष्‍ठ बेटे-बेटियों ने शताब्दियों के निरंतर संघर्ष और सर्वोत्‍कृष्‍ठ बलिदान के द्वारा हमारे लिए अर्जित किया: प्रो.रजनीश कुमार शुक्‍ल

वर्धा, 16 अगस्त: Mahatma gandhi international hindi university in wardha: महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के 76वें स्‍वतंत्रता दिवस समारोह में कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल ने शिक्षकों, शिक्षकेतर कर्मियों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि भारत को भव्‍य और श्रेष्‍ठ बनाना हम सबकी जिम्‍मेदारी है। भारत को आज़ादी दान में नहीं मिली है बल्कि महान सपूतों ने, भारत मां के श्रेष्‍ठ बेटे-बेटियों ने शताब्दियों के निरंतर संघर्ष और सर्वोत्‍कृष्‍ठ बलिदान के द्वारा हमारे लिए अर्जित किया है।

उन्‍होंने विश्‍वविद्यालय के समस्‍त शिक्षकों, विद्यार्थियों, कर्मियों को स्‍वाधीनता दिवस की बधाई देते हुए कहा कि आपने आज़ादी के 75वें अमृत महोत्‍सव वर्ष में अपने कर्तव्‍यों को पूरा किया है। आज़ादी के सौंवे वर्ष के लिए हमें अपने संकल्‍प निर्धारित क‍रने होंगे, सपने सजाने होंगे। हम सभी को भारत को समता और ममता के साथ करुणामयी राष्‍ट्र बनाने का संकल्‍प लेना चाहिए।

प्रो.शुक्‍ल ने कहा कि जब आजादी का सौंवा वर्ष मनाया जाए तो इस विश्‍वविद्यालय के योगदान की चर्चा हो, इस विश्‍वविद्यालय के माध्‍यम से हिंदी सहित समस्‍त भारतीय भाषाएं भारत की भाषा, ज्ञान की भाषा, विश्‍व में सम्‍मान की भाषा और वैश्विक संवाद की भाषा बनकर उभरें, इस प्रकार का कुछ योगदान हमारे द्वारा भी हो सके तो शायद 75 वर्ष पर आज़ादी के अमर शहीदों को, उन महान हुतात्‍माओं को हमारी ओर से विनम्र श्रद्धांजलि होगी और मां भारती की आंचल में हमारे द्वारा अपने कर्तृत्‍व से और अपने कर्मों से अर्पित किया गया एक पुष्‍प होगा।

यह विश्‍वविद्यालय आजादी के सपनों का विश्‍वविद्यालय है। यह भारतेंदु से लेकर महात्‍मा गांधी और अटल बिहारी बाजपेयी तक के सपनों का विश्‍वविद्यालय है। उनका सपना था कि भारतीय भाषाओं के माध्‍यम से ही भारत पढ़े और आगे बढ़े।

कुलपति ने कहा कि विश्‍वविद्यालय केवल पाठ्य पुस्‍तकों को पढ़ाने का स्‍थान नहीं है अपितु ज्ञान के नव-नवोन्‍मेष और विकास का केंद्र है। यह विश्‍वविद्यालय ज्ञान के नये वातायन खोलने और ज्ञान के नये पंख लगाने की दृष्टि से कुछ बेहतर और श्रेष्‍ठ कर सकता है। सामाजिक संरचना और समतामूलक ममता का प्रश्‍न अभी पूरी तरह से हल नहीं हुआ है।

आज भी भाषा, जन और जाति के आधार पर इस देश के अंदर सर्वत्र भेद मिट गया हो, ऐसा नहीं हुआ है; हां, धार कुंद हुई है लेकिन जब तक यह असमानता देश के, समाज के किसी भी कोने में है तो भारत मां व्‍यथित होती रहेगी। इस दृष्टि से क्‍या हम भारतीय समाज विज्ञान को नई दृष्टि देने के लिए सामने ला सकते हैंॽ

भारत की विशाल एवं महान परंपरा, जिसमें पूरी दुनिया की वर्तमान सभ्‍यता की विसंगतियों को प्रत्‍युत्तर देने की क्षमता है, उसको आज की भाषा में, सामाज की भाषा में, भारतीय जन की भाषा में, उसके बोध के स्‍तर पर अनूदित करके प्रस्‍तुत करने के लिए हम संकल्‍पबद्ध हैं। भारतीय भाषाओं के बीच अंतर्संवाद हो सके, ज्ञान का सहजता-सुगमता के साथ अंतरण हो सके, इसके लिए क्‍या हम हिंदी को केंद्र में रखकर भारतीय भाषाओं के बीच ज्ञानांतरण की कोई प्रविधि निर्मित करने की चुनौतियों को स्‍वीकार करने की स्थिति में हैंॽ

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कुलपति ने कहा कि भारत विश्‍व को त्राण देने वाला देश है। दुनिया में इन 75 वर्षों में जो विज्ञान और तकनीक का विकास हुआ है, वह जिस क्षेत्र में पहुंचा है, इसमें भाषा की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। डिजिटाइजेशन ने दुनिया को एक अमूर्त जगत् का हिस्‍सा बनाया है। आभासी संसार और वास्‍तविक संसार के बीच नित्‍य प्रति के रिश्‍ते कायम हुए हैं और यह सबकुछ तर्क और भाषा पर आधारित है।

तर्क और भाषा के क्षेत्र में भारत विश्‍व विजय कर सके, आज जो नयी डिजिटल दुनिया आ रही है, वह भारतीयों के लिए सहज हो सके, दुनिया में जो भी नव-नवोन्‍मेष हो रहा है, उससे भारत का जन-जन वास्‍तविक समय में बिना किसी प्रतीक्षा और इंतजार के परिचित हो सके, इसके लिए भाषा के मोर्चे पर बड़ी चुनौती है। यह हम नहीं कर सके तो भारत के विकास की गति को अवरुद्ध करने के पाप के भागी होंगे।

विश्‍वविद्यालय की इस दृष्टि से विशिष्‍ट भूमिका है कि हिंदी सहित भारतीय भाषाओं के माध्‍यम से जो हिंदी संस्‍कृति, भारतीय जीवन दृष्टि आनी चाहिए, वह ज्ञान-विज्ञान के सभी क्षेत्रों में आए। हमने नित् उपलब्धियां हासिल की हैं। इस वर्ष 25 पुस्‍तकों के प्रकाशन का लक्ष्‍य रखा गया, जिसमें 15 पुस्‍तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और 10 प्रकाशनाधीन हैं।

कोरोना कालखंड की चुनौतियों के बीच हमने अवसर तलाशे और पठन-पाठन का कार्य निरंतर जारी रखा। इस दौरान अंतरराष्‍ट्रीय संगोष्ठियों में आठ देशों के अध्‍येताओं की सहभागिता रही। ध्‍वजारोहण के पूर्व कुलपति ने महात्‍मा गांधी की प्रतिमा पर माल्‍यार्पण और बोधिसत्त्व डॉ. बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा पर पुष्‍पांजलि अर्पित की। ध्‍वजारोहण समारोह के दौरान मंच पर कुसुम शुक्‍ला, प्रतिकुलपति द्वय प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्‍ल और प्रो. चंद्रकांत रागीट सहित सभी अधिष्‍ठाता एवं कुलसचिव उपस्थित थे।

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