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Azimushshan mushayre in sendhwa: वतन लहू के लिए जब कभी पुकारेगा, हमीद बन के मुसलमां तमाम निकलेंगेः वाजिद हुसैन

Azimushshan mushayre in sendhwa: “ये जमीं मां है इसे मां के सिवा कुछ न कहो”: कयामुद्दीन

सेंधवा, 23 अगस्तः Azimushshan mushayre in sendhwa: आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत कौमी एकता कमेटी, सद्भावना मंच सेंधवा के तत्वाधान में मोतीबाग जमातखाना परिसर में जश्ने आजादी शीर्षक से एक अजीमुश्शान मुशायरे का आयोजन हुआ। इसमें मशहूर शायरों और कवियों ने देशभक्ति के ओतप्रोत शायरी और कविताएं सुनाई।

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मुशायरे के संयोजक मुन्ना शेख थे और संचालन मशहूर शायर कयामुद्दीन “कयाम” ने किया। जबकि अध्यक्षता हारून मंसूरी ने की। वाजिद हुसैन साहिल ने अपने खूबसूरत तरन्नुम में नाते पाक “मेरी बैचेन आंखों को भी सब्ज़ गुम्बद दिखा दीजिए, अब तो आका बुला लीजिए” पढ़कर मुशायरे को आरंभ किया।

कयामुद्दीन “कयाम” ने अपनी मशहूर गजल ” गरीबी थी तो सब अपने नज़र अंदाज करते थे, गले हमको लगाया जब चमकती कार से उतरे “
और ये जमीं मां है इसे मां के सिवा कुछ न कहो” सुनाकर रंग जमाया। साजिद “परवाज” ने ” कोई तोहफा परी ख्वाबों की शायद दे गई उसको, तभी तो नींद में बच्ची ने मुठ्ठी बांध रखी है” सुनाकर खूब वाह वाही लूटी।

रिजवान अली “रिजवा” ने गजल “सब यहां आइना दिखाते है, आईना कोई देखता ही नहीं” सुनाकर मुशायरे को ऊंचाई प्रदान की। वाजिद हुसैन “साहिल” ने “वतन लहू के लिए जब कभी पुकारेगा, हमीद बन के मुसलमां तमाम निकलेंगे” सुनाकर खूब तालियां बटोरी। डॉ अपूर्व “शुक्ला” अपना गीत “मेरे घर में मेरी मां है, पांव में जिसके जन्नत है” सुनाकर समां बांधा।

जुनैद अहमद “जुनैद” ने अपनी गजल “बाल बिखरे हुए है माथे पर, आखरी बार मिल रही हो क्या” सुना कर खूब दाद हासिल की। हाफिज अहमद “हाफिज” ने शेर सुनाया “एक ही लफ्ज से शुरू दो नाम है, एक आरती तो दूसरी अजान है” शाकिर शेख ने शेर पढ़ा “बेईमानी के धंधे में तो बरकत नहीं होती, हर शख्स के हिस्से में तो दौलत नहीं होती” निजाम बाबा ने भी बेहतरीन अशआर सुनाए।

मुशायरे में शहर के कई गणमान्य नागरिक और बढ़ी संख्या में उपस्थित श्रोताओं ने देर रात तक शायरी का लुत्फ लिया। आभार मुन्ना शेख ने माना।

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