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Maine Tumhe chaha hai: मैंने तुम्हें चाहा है…

Maine Tumhe chaha hai: !!मैंने तुम्हें चाहा है!!

जैसे
चाहती हैं
लहरें समुंदर को
जो किनारे पर आकर भी
लौट जाती है बापस
एक गहरे मिलन की चाह लिए
और सिमट जाती हैं
गोद में कुछ इस तरह ही मैने तुम्हें चाहा है

जैसे
खिल खिलातें
बागवान में
अमलतास के पत्ते
खिल उठते है देखकर
बेरंग बेपरबाहियो में आती
हसीं बहारें
जब आता है मौसम
संदेशा लेकर वैसे ही मैंने तुम्हें चाहा है

जैसे
कड़ाके की
धूप में घने घनघोर
बरगद की तरह
जो भी आता है थक हार कर
बैठ जाता है सुकून के लिए
उसकी छांव के आंचल में
कुछ उसी तरह ही मैंने तुम्हें चाहा है

जैसे
चांद अपनी
चांदनी का
रसपान लुटाता है
अंधेरी रात में जब
दो प्रेमी पंछी एक दूसरे में
खोकर प्रेम रस का
रसपान कर रहे होते है
बस कुछ बैसे ही मैंने तुम्हें चाहा हैं

जैसे
हवाओं को
है इश्क़ खुशबू से
जब भी गुजरतीं है
गुलों से तो खुशबू अपने
साथ ले जाती है और
झूमती है ऊंचे बादलों में कहीं
इस तरह ही ओजस मैंने तुम्हें चाहा है

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