Kavya: मैं कितना टूट गया
!! मैं कितना टूट गया !!(Kavya)
Kavya: एक पीढ़ा है जो दिल से दूर नहीं जाती
एक तरफ वो जिसे मेरी याद नही आती
पहले तो हर आहट पर तुम आ जाते थे
मेरे ना मिलने से तुम कितना घबराते थे
कारवां वर्षों का एक पल में छूट गया
देखो ना तेरे जाने से मैं कितना टूट गया
अब पहले जैसी बागों में बहारें नहीं रही
बारिश तो आती है मगर फुहारें नहीं रही
चांद आता है पर बदली में छुप जाता है
अब दिल अपने ही साए से घबराता है
ऐसा लगता है मेरा रब मुझसे रूठ गया
देखो ना तेरे जाने से मैं कितना टूट गया
कुछ पहले सा नहीं तकदीर सोने लगी
तेरे जाने के गम में कलम भी रोने लगी
तुमको खोकर हम खुद को ही खो दिए
कलम ने रो -रोकर कागज भिगो दिए
यूं समझो मिट्टी का घड़ा आज फूट गया
देखो ना तेरे जाने से मैं कितना टूट गया
अब दिल है, तन्हाई है, और तेरी बातें है
मैं भी खुश हूं की मेरे पास तेरी यादें हैं
समझा लिया खुद को की सब सपने हैं
जो अपने थे वो भी कहां तेरे अपने हैं
गम है इस बात का कि बंधन अटूट गया
देखो ना तेरे जाने से मैं कितना टूट गया
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