Fluorescent ink: आई आई टी (बीएचयू) टीम ने विकसित की अभिनव फ्लोरोसेंट स्याही
Fluorescent ink: पर्यावरण अनुकूल फ्लोरोसेंट स्याही जालसाजी और सुरक्षा अनुप्रयोगों के लिए साबित होगी एक क्रांतिकारी समाधान

रिपोर्ट: डॉ राम शंकर सिंह
वाराणसी, 15 अक्टूबर: Fluorescent ink: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (बीएचयू) के जैव-रासायनिक अभियांत्रिकी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. विशाल मिश्रा और उनकी शोध टीम ने बैक्टीरिया के अपशिष्ट से एक अत्याधुनिक फ्लोरोसेंट स्याही विकसित की है। यह नवाचार, जो पराबैंगनी (यूवी) प्रकाश में चमकीली नीली फ्लोरोसेंस दिखाती है, सुरक्षा अनुप्रयोगों में विशेष रूप से जालसाजी-रोधी उपायों में एक महत्वपूर्ण प्रगति का प्रतीक है।

इस स्याही के शक्तिशाली फ्लोरोसेंट गुणों के साथ-साथ यह टिकाऊपन का भी एक आदर्श उदाहरण है। प्रयोगशाला के प्रयोगों से उत्पन्न बैक्टीरिया के कल्चर मीडिया के अपशिष्ट का पुनः उपयोग कर, डॉ. मिश्रा की टीम ने एक पर्यावरण-अनुकूल स्याही बनाई है, जो न केवल अपशिष्ट को कम करती है बल्कि एक महत्वपूर्ण सुरक्षा समाधान भी प्रदान करती है।डॉ. विशाल मिश्रा ने कहा, “हमने स्थिरता और व्यावहारिक सुरक्षा अनुप्रयोगों को एक साथ जोड़ा है। यह स्याही दिखाती है कि अपशिष्ट सामग्री में भी नवाचार की संभावनाएं छिपी होती हैं। यह पर्यावरणीय उत्तरदायित्व और दस्तावेज़ संरक्षण में एक बड़ा कदम है।”
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फ्लोरोसेंट सुरक्षा स्याही की प्रमुख विशेषताएं:
- यूवी प्रकाश में दोहरी दृश्यता: स्याही उच्च और निम्न-शक्ति यूवी प्रकाश स्रोतों के तहत दिखाई देती है, जो इसे विभिन्न वातावरणों और स्थितियों में प्रभावी बनाती है।
- जीवंत फ्लोरोसेंस: स्याही एक चमकीली नीली फ्लोरोसेंस उत्पन्न करती है, जिसे नग्न आंखों से आसानी से देखा जा सकता है, जिससे यह सुरक्षा अनुप्रयोगों में अत्यधिक प्रभावी होती है।
- पर्यावरण-अनुकूल और टिकाऊ: स्याही बैक्टीरियल कल्चर मीडिया के अपशिष्ट से बनाई गई है, जो प्रयोगशाला अपशिष्ट में कमी और पर्यावरणीय स्थिरता का समाधान करती है।
- जालसाजी-रोधी तकनीक: स्याही को संवेदनशील दस्तावेजों की नकल, हेरफेर या पुनरुत्पादन से बचाने के लिए डिज़ाइन किया गया है, और यह बैंकिंग, कानूनी दस्तावेज़ीकरण और सरकारी संस्थानों में उपयोग के लिए आदर्श है।
- सुरक्षित और उपयोग में आसान: स्याही की श्यानता (2.2±0.26 से 2.3±0.26 सेंटिपॉइज़) और इसका कम विषाक्तता स्तर इसे सुरक्षित हैंडलिंग और मुद्रण प्रक्रियाओं के लिए उपयुक्त बनाता है।डॉ. मिश्रा और उनकी टीम को दस्तावेज़ सुरक्षा की आवश्यकता वाले क्षेत्रों जैसे बैंकिंग, कानूनी सेवाएं और सरकारी कार्यों में इस स्याही के अनुप्रयोग की अपार संभावनाएं दिखाई देती हैं। यह नवाचार उन संस्थानों के लिए एक गेम-चेंजर साबित होगा जो मजबूत जालसाजी-रोधी उपायों को लागू करने के साथ-साथ पर्यावरणीय स्थिरता में योगदान देना चाहते हैं।
डॉ. मिश्रा ने इस आविष्कार को संभव बनाने के लिए आईआईटी (बीएचयू) का आभार व्यक्त किया और भविष्य में वैज्ञानिक अनुसंधान का उपयोग स्थिरता और सुरक्षा-केंद्रित नवाचारों के लिए करने की दिशा में सहयोग की आशा जताई। उन्होंने बताया कि इस फ्लोरोसेंट स्याही को 15 जुलाई 2024 को एक पेटेंट प्राप्त हुआ है, जो इसे सुरक्षा-केंद्रित उद्योगों में बड़े पैमाने पर अपनाने की संभावनाओं को और मजबूत करता है।संस्थान के निदेशक, प्रोफेसर अमित पात्रा ने डॉ. विशाल मिश्रा और उनकी टीम को इस महत्वपूर्ण शोध के लिए बधाई दी।
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