प्रदर में कारगर अशोक
- वानस्पतिक नाम-Saraca indica ( सरका इंडिका)
- कुल- सिसलपिनिएसी (Caesalpineaceae)
- हिन्दी- अशोक, असोका, अशोका
- अंग्रेजी- अशोका (Ashoka)
- संस्कृत- अपाशोका, अंगनाप्रिया, चक्रगुच्छा
ऐसा कहा जाता है कि जिस पेड़ के नीचे बैठने से शोक नहीं होता, उसे अशोक कहते हैं। अशोक का पेड़ सदैव हरा-भरा रहता है, जिसपर सुंदर, पीले, नारंगी रंग फूल लगते हैं। अशोक का वानस्पतिक नाम सराका इंडिका है। अशोक की छाल को कूट-पीसकर कपड़े से छानकर रख लें, इसे 3 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से सभी प्रकार के प्रदर में आराम मिलता है। अशोक के 1-2 ग्राम बीज को पानी में पीसकर नियमित रूप से 2 चम्मच की मात्रा में पिलाने से मूत्र ना आने की शिकायत और पथरी की तकलीफ में आराम मिलता है। डाँग-गुजरात के आदिवासियों के अनुसार पान के पत्तों के साथ अशोक के बीजों का चूर्ण की एक चम्मच मात्रा चबाने से साँस फूलने की शिकायत और दमा में आराम मिलता है।
अशोक की छाल को पानी के साथ उबालकर काढ़ा तैयार करें और ठंडा करके, इसमें बराबर की मात्रा में सरसों का तेल मिला लें। इस मिश्रण की कुछ मात्रा मुहाँसों, फोड़े-फुसियों पर लगाएं। इसके नियमित प्रयोग से वे दूर हो जाएँगे। पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार यदि महिलाएँ अशोक की छाल 10 ग्राम को 250 ग्राम दूध में पकाकर सेवन करें तो माहवारी सम्बन्धी परेशानियाँ दूर हो जाती हैं। अशोक की छाल के रस में सरसों को पीसकर लेप तैयार करें और त्वचा पर लगायें तो रंग निखरता है। अशोक की छाल और ब्राह्मी का चूर्ण बराबर की मात्रा में मिलाकर 1-1 चम्मच सुबह-शाम एक कप दूध के साथ नियमित रूप से कुछ माह तक सेवन करें। इससे बुद्धि का विकास होता है।