अनलाक-1में स्वास्थ्य की देखरेख ज्यादा जरूरी है

Mishra
प्रो. गिरीश्वर मिश्र, पूर्व कुलपति
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय

 आज की कठिन घड़ी का एक व्यापक वैश्विक परिदृश्य है जहाँ पर  किसी दूर बाहर के देश से पहुंच कर एक विषाणु  चारों ओर छा रहा है और जान को जोखिम में डाल रहा  है और  पूरे विश्व में आज हाहाकार मचा हुआ है. ऐसे में हम अपने को कैसे स्वस्थ रखें यह  बड़ी चुनौती  बन रही है. पर जब हम विचार करते हैं तो वह प्रश्न खड़ा होता है कि हम अपने स्वास्थ्य की रक्षा के लिए कितने तत्पर हैं?  यह सही है कि स्वास्थ्य केवल अपने ऊपर ही नहीं बल्कि व्यक्ति और परिवेश इन दोनों की अंत:क्रिया  पर निर्भर करता है.  अपने परिवेश को देख भारी अंतर्विरोध की स्थिति दिखती है कि आज जब  महीने से ज्यादा समय लॉक डाउन का हो रहा है तो हमारा परिवेश सकारात्मक रूप से प्रभावित हुआ है. प्रदूषण की मात्रा घटी है, हवा और  पानी की गुणवत्ता ठीक हो रही है ,  पेड़ पौधों का स्वास्थ्य ठीक हो रहा है. इससे यह भी सन्देश मिलता है कि हम अपने प्रति और अपने परिवेश  दोनों के प्रति किस तरह का दायित्व का निर्वाह हमें करना चाहिए इस पर सोचने  की आवश्यकता है. अपने ऊपर नियंत्रण और प्रकृति के प्रति संवेदना दोनों ही आवश्यक हैं.

जीवन में चुनौतियाँ

जब हम अपने ऊपर विचार करते हैं तो हमें लगता है कि कुछ विशेष तरह का परिवर्तन ले आना अब आवश्यक हो गया है. जीवन में चुनौतियाँ और  समस्याएं बनी रहती हैं, तनाव भी बने रहते हैं . इन सबके लिए आवश्यक है कि हम अपने आप को कैसे संचालित करें? हमको अपने इम्यूनसिस्टम या प्रतिरक्षा तंत्र को कैसे सबल बनाएं?  तमाम  अध्ययनों के परिणामों से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जिस व्यक्ति में प्रतिरक्षा तंत्र सुदृढ़ है वह  कोविड – 19 की लड़ाई में सक्षम साबित हो रहा है. साथ ही यह भी बड़ा आवश्यक है कि हम अपनी दिनचर्या को  व्यवस्थित बनाएं रखें.  हम सो कर कब उठते हैं,  कब  भोजन करते हैं, कब अध्ययन करते हैं और घर के काम में किस तरह हाथ बंटाते हैं इनका नियम से पालन किया जाय. इसके साथ ही साथ यह भी आवश्यक है कि शरीर के श्रम के ऊपर ध्यान दिया जाय. लॉक डाउन की स्थिति में प्रायः लोग एक ही जगह बने रहते हैं , बैठे रहते हैं,  सोये रहते हैं यानी  पड़े रहते हैं और यह शरीर के स्वास्थ के लिए हानिकर है और इससे कई तरह की कठिनाइयां पैदा हो सकती हैं. इसके साथ ही साथ यह भी आवश्यक है कि संतुलित आहार लिया जाय. अर्थात अपने शरीर, मन और कार्य के बीच में एक संतुलन स्थापित किया जाय.

नई राह और नए विकल्प

       अतीत की चिंता करते हुए उसी में खोये रहने  से  समस्या बढती है. हमें उससे भी मुक्त होना चाहिए. मनुष्य अपने भविष्य के बारे में विचार कर सकता है.  चुनौती और तनाव के इस दौर में हमको नई राह और नए विकल्प ढूढने चाहिए और उसके आधार पर हमारी समस्याओं के समाधान विकसित हो सकते हैं. इसके लिए अपने आप में आत्मविश्वास चाहिए. पर अपनी क्षमताओं को लेकर दृढ़ निश्चय से अपने ऊपर कार्य करने पर ही मार्ग मिलेगा.इसके लिए ध्यान केन्द्रित करने का प्रयास करना चाहिए.  अपनी शक्ति को, अपनी उर्जा को कैसे बनायें रखे इसके लिए, योग और  ध्यान ( मैडिटेशन) लाभकर हैं. योग और ध्यान के माध्यम से आप एकाग्रता भी ला सकते हैं और आप में साहस का भी संचार होगा. तब  आपकी क्षमता भी बढेगी. स्वस्थ्य शरीर अगर है तभी स्वस्थ्य मन और  स्वस्थ्य बुद्धि होगी. इसके लिए मन में अच्छे विचार  आने चाहिए . आप जिस किसी भी धर्म का पालन करते हैं,  जिस गुरु के विचार को मानते हैं. कोशिश करें कि  उसे सुनिए और सकारात्मक विचार लाएं. इनसे जीवन में सुगमता बढेगी, सहजता बढेगी, सरलता बढेगी. हमारे मनोभाव विस्तृत होंगे  और मोह (अटैचमेंट)कम होंगे  जो तमाम तरह के भय,  क्रोध, घृणा और  द्वेष पैदा करते हैं.

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 हमें अपने लिए प्रेरणा पाने की कोशिश करनी चाहिए और ऊर्जा का संचार लाना चाहिए. व्यक्ति अपने लिए ऐसे लक्ष्यों को सुनिश्चित कर उनकी दिशा में सक्रिय हो सकते हैं जो प्राप्त किये जा सके. छोटे लक्ष्य बना कर उन्हें एक-दिन में दो दिन में पूरा   करने से स्फूर्ति अएगी.  इस प्रसंग में समुदाय या समूह के साथ जुड़  कर उनके साथ संपर्क बनाए रखना भी जरूरी  है . आज कल बहुत सारे ऐसे सोशल मीडिया के उपय उपलब्ध हैं जिनके आधार पर यह  काम  सरलता से हो सकता है. यह जरुर है कि सोशल मीडिया के व्यसन से बचा जाय .  सम्पर्क से सहयोग की भावना पैदा होगी और अकेलेपन की समस्या भी कम होगी. आज की परिस्थिति में सामाजिक दूरी बनाएं रखने को आवश्यक माना जा रहा है और यह संक्रमण की संभावना को घटाती है. पर दूसरी ओर भावनात्मक दूरी को कम करना हितकर नहीं होगा. यह जरुरी होगा कि हमारे मन में जो विचार आयें, जो कार्य हम करें, उनमें व्यक्ति के साथ समाज की चिंता भी शामिल हो. यह कटु सत्य है  कि हम प्राय: व्यक्तिवादी होते जा रहे हैं और समाज के हित की कम होती जा रही है. पर लोक हित का ध्यान नहीं करेंगे तब तक हमारा निजी हित भी संभव नहीं होगा. साथ ही वास्तविकताओं को स्वीकार करना भी सीखना चाहिए.  हम यदि संयम से काम लें और उपलब्ध साधनों का ठीक से उपयोग करें तो समय का हम अच्छी तरह से उपयोग करते हुए कुछ सृजनात्मक कार्य भी कर सकते हैं.

खान पान में  बदलाव

कोरोना वायरस से बचने के लिए हमारे लिए स्वयं को स्वच्छ रखना अनिवार्य  है. कहा जाता है कि अपने हाथ धोइए, बार-बार हाथ धोइए और यह कोशिश करिए कि विषाणु का संपर्क न हो. आपका स्वास्थ्य आप ही के हाथ में है यब  बात सब लोग जानते हैं लेकिन जब सामान्य रूप से काम चलता रहता है तब हमें स्वास्थ्य की चिंता नहीं रहती है . आज के कठिन समय में बाजार में जंक फ़ूड और फास्ट फूड की दुकाने बंद हैं और सब लोग खान पान में  बदलाव ला रहे हैं. यह समय अपने उचित आहार,  अच्छे व्यवहार और सामाजिकता की आदत ढालने और  अपनी जीवन शैली में  परिवर्तन ले आने के लिए आमंत्रित कर रहा है जो दीर्घकाल तक लाभकारी हो सकती है. अपने को संस्कार देने का प्रयास करना होगा. बदलाव बाध्यता न हो बल्कि हमारा स्वयं का निर्णय हो. अपने जीवन के लिए ‘मेन्यु’  मेन्यु आप बना कर  भविष्य संवारने की आवश्यकता  है.

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 स्वास्थ्य आपके हाथ में है और स्वास्थ्य कोई ऐसी स्थिति नहीं है कि वहां पर आप एक बार पहुँच गए तो हमेशा स्वस्थ्य रहेंगे. स्वास्थ्य एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जैसे आप निरंतर साँस ले रहे हैं. तो यह साँस लेना इस पर निर्भर करेगा कि आपको वायु कैसी प्राप्त हो रही है? और आपके शरीर की क्षमता कैसी है? कोरोना के जो मरीज हैं उनके फेफड़े में इतनी क्षमता ही नहीं है तो उनको वेंटीलेटर में रखा जाता है ताकि उनको वायु पहुँच सके. शरीर ही उनका काम नहीं कर रहा है. ठीक से अंग ही नहीं काम नहीं कर रहे हैं. यदि शरीर का अंग काम न करे और बाहर वायु हो या फिर शरीर काम करे लेकिन बाहर वायु न हो,  दोनों स्थितियां  गड़बड़ हैं. इसलिए दोनों पर ध्यान देना पड़ेगा . अपने व्यवहार और अपने आचरण के द्वारा हमको अपने कार्य की क्रिया, दिनचर्या, आहार-विहार इन सबको नियमित करना होगा. यह हमारे हित में है और समाज के हित में भी है.