समाज को नफरत और चारित्रिक पतन के खिलाफ खड़ा करने में भूमिका निभाए कला-संस्कृति : सिसोदिया
- सच को सच कहने की सबसे ज्यादा ताकत कला-संस्कृति में : सिसोदिया
- दिल्ली सबकी है, पूरे देश की संस्कृति दिखेगी दिल्ली में : उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया
- महज इवेंट नहीं, समाज की सोच बदलने का सपना है नई सांस्कृतिक नीति : सिसोदिया
- कला के जरिए बदलेंगे शहर का मिजाज, होटल और मूवी की तरह सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अपने मेहमानों को ले जा सकेंगे दिल्ली के लोग : सिसोदिया
- स्कूलों में थिएटर शिक्षा लागू करे दिल्ली सरकार : अभिनेता मनोज वाजपेयी
- जिस सरकार से नजदीकी रिश्ता हो, उसे देना चाहता था यह सुझाव : मनोज वाजपेयी
रिपोर्ट: महेश मौर्य, दिल्ली
नई दिल्ली, 19 अक्टूबर :2020: उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा है कि समाज को नफरत और चारित्रिक पतन के खिलाफ खड़ा करने में कला और संस्कृति को अपनी भूमिका निभानी होगी। आज के दौर में हिंसा और नफरत बढ़ रही है तथा चौतरफा पतन दिख रहा है। ऐसे में कला संस्कृति का सार्थक योगदान हो, इसके लिए दिल्ली सरकार एक समग्र सांस्कृतिक नीति बना रही है।
श्री सिसोदिया ने आज यह बात दिल्ली सांस्कृतिक नीति सलाहकार समिति की पहली ऑनलाइन बैठक में कही। उन्होंने कहा कि सच को सच कहने की सबसे ज्यादा ताकत कला संस्कृति में ही है और हम इस सांस्कृतिक नीति के जरिए शहर के सोचने का मिजाज बदलना चाहते हैं।
श्री सिसोदिया ने चर्चित नाटक मसखरा मौलियर का उदाहरण दिया। इसमें मसखरा कहता है- “कौन रोकेगा मुझे, अगर हंसते-हंसते सच कह जाऊं तो?”
श्री सिसोदिया ने कहा कि हम दिल्ली में ऐसा सांस्कृतिक माहौल बनाना चाहते हैं, जहां हर दिन कुछ अच्छी गतिविधियां हों। जिस तरह लोग अपने मेहमानों को सिनेमा घर और रेस्टोरेंट ले जाते हैं, उसी तरह अब दिल्ली के लोगों के पास सांस्कृतिक कार्यक्रमों में जाने के कई विकल्प होंगे।
बैठक में अभिनेता मनोज वाजपेयी ने कहा कि लंबे समय से मेरा सपना है कि अगर किसी सरकार से नजदीकी रिश्ता हो, तो स्कूलों में थिएटर की शिक्षा लागू करने की सलाह दूं। श्री वाजपेयी ने स्कूलों के साथ ही स्लम और चौराहों के बच्चों को भी थियेटर शिक्षा के माध्यम से मुख्यधारा में लाने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि पेरिस में हर चौक चौराहे और मेट्रो के समीप तरह तरह के नृत्य संगीत के कार्यक्रम होते रहते हैं। श्री वाजपेयी ने दिल्ली में भी कलाकारों को कला प्रदर्शन के लिए जगह मुहैया कराने का सुझाव दिया ताकि दिल्ली को सांस्कृतिक राजधानी के तौर पर और ऊपर लाया जा सके।
बैठक में श्री सिसोदिया ने कहा कि दिल्ली सबकी है, इसलिए दिल्ली में पूरे देश का सांस्कृतिक माहौल दिखना चाहिए। कश्मीर या बिहार या किसी अन्य राज्य की सरकार अपने राज्य की भाषा और संस्कृति पर केंद्रित रह सकती है, लेकिन दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी होने का गौरव है। इसलिए देश के जिस भी हिस्से के लोग यहाँ आते हों, उन्हें यहाँ अपनी संस्कृति की झलक दिखाई पड़े। दिल्ली को कला और संस्कृति का जीवंत केंद्र बनाने की दिशा में सरकार तेजी से काम कर रही है।
श्री सिसोदिया ने कहा कि यह एक बड़ा सपना है। इसे साकार करने के लिए एक सांस्कृतिक नीति बनाई जा रही है। इसके लिए दिल्ली सरकार के कला संस्कृति और भाषा विभाग ने पंद्रह सदस्यीय समिति सलाहकार समिति बनाई है। यह दो माह के भीतर अपनी रिपोर्ट देगी।
सलाहकार समिति में कला-संस्कृति की हस्तियों एवं विशेषज्ञों को शामिल किया गया है। इनमें अभिनेता मनोज वाजपेयी और जावेद जाफरी, कला नीति विशेषज्ञ पूजा सूद, जेएनयू के स्कूल ऑफ आर्ट्स और सौंदर्यशास्त्र की प्रोफेसर ईरा भास्कर शामिल हैं। साथ ही, दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट के प्रिंसिपल अश्विनी कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता विनीत नागर, लोक नृत्यांगना बीना व्यास भी समिति में शामिल हैं। इसी तरह, संगीत प्रोड्यूसर बृन देसाई, कला विशेषज्ञ अभिनंदिता दयाल माथुर, कलाकार एवं शोधकर्ता भगवती प्रसाद एवं लतिका गुप्ता, कलाकार एवं शिक्षाविद आस्था चौहान को सदस्य बनाया गया है।
बैठक में श्री सिसोदिया ने कहा कि हम कला संस्कृति को हम महज इवेंट तक सीमित नहीं रखना चाहते बल्कि इसके जरिये सोच बदलने का सपना है। इतिहास में कलाकारों ने बड़े बदलावों को जन्म दिया है और आज हम कला संस्कृति से बड़ी भूमिका की अपेक्षा करते हैं। श्री सिसोदिया ने कहा कि इस सांस्कृतिक नीति का निर्माण हमारे देश के सांस्कृतिक परिदृश्य और इतिहास में एक अभूतपूर्व कदम है। इसके माध्यम से दिल्ली की रचनात्मक अर्थव्यवस्था के लिए भी एक रोडमैप की तलाश की जाएगी।
बैठक में श्री सिसोदिया ने कहा कि हमारी सरकार ने कला और संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए काफी कदम उठाए हैं। लेकिन अब तक इन गतिविधियों की कोई स्पष्ट संरचना नहीं है। यही कारण है कि हम एक सर्वांगीण सांस्कृतिक नीति बनाना चाहते हैं ताकि सुव्यवस्थित तरीके से बेहतर सांस्कृतिक माहौल बनाना संभव हो।
श्री सिसोदिया ने कहा कि पहले दिल्ली में सांस्कृतिक गतिविधियां मंडी हाउस और लाल किले तक सीमित थी। हमने ‘दस्तक’ तथा अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से इसे दिल्ली के विभिन्न इलाकों तक पहुंचाने का सफल प्रयोग किया। कार्यक्रमों की सूचना व्यापक जनता को देने के लिए मिस कॉल सिस्टम लागू किया। इसमें लगभग 80 हजार लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया, जिन्हें कार्यक्रम की सूचना भेजी जाती है। श्री सिसोदिया ने कहा कि हम सांस्कृतिक कार्यक्रमों को महज कुछ लोगों तक सीमित रखने के बजाय दिल्ली के जन-जन तक पहुंचाना चाहते हैं। इसी से लोगों की सोच बदलेगी और बेहतर सांस्कृतिक माहौल बनेगा। श्री सिसोदिया ने भरोसा दिलाया कि सलाहकार समिति द्वारा प्रस्तुत सांस्कृतिक नीति को आम आदमी पार्टी सरकार पूरी राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ लागू करेगी।
बैठक में विभिन्न सदस्यों ने महत्वपूर्ण सुझाव दिए। सामाजिक कार्यकर्ता विनीत नागर ने कहा कि दिल्ली के लगभग 300 गांवों को अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाने का अवसर मिलना चाहिए। कई इलाकों में अलग अलग राज्यों के लोग रहते हैं, उन्हें भी अपनी सांस्कृतिक धरोहर सामने लाने का मौका मिलना चाहिए।
भगवती प्रसाद ने कहा कि कलाकार किसी दूसरी दुनिया से नहीं आते, वो हमारे बीच से ही होता है। हमें उस कलाकार को वो स्पेस और मौक़ा देना है जिसमें वो अपनी कला को निखार पाए।
पूजा सूद ने कहा कि दिल्ली सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति क़ाबिल-ए-तारीफ़ है। प्रोफ़ेसर इरा भास्कर ने कहा कि हमें इस कल्चरल पॉलिसी के तहत उत्तर पूर्वी दिल्ली के इलाक़ों को भी जोड़ना चाहिए और कलाकारों के प्रशिक्षण के लिए सोसायटीज़ का निर्माण करना चाहिए।
बैठक में विभिन्न मुद्दों पर नीति का प्रारूप बनाने के लिए अलग-अलग उपसमितियों का गठन किया गया। उल्लेखनीय है कि दिल्ली सरकार के कला संस्कृति और भाषा विभाग ने 22 सितंबर 2020 को इस 15 सदस्यीय समिति के गठन का आदेश जारी किया था। इसमें विभाग के सचिव को अध्यक्ष, विशेष सचिव को सदस्य सचिव बनाया गया है। साहित्य कला परिषद के सचिव भी इसमें सदस्य हैं।
दिल्ली सरकार का मानना है कि समाज को आकार देने में कला और संस्कृति का काफी महत्व है तथा इसमें सामाजिक परिवर्तन की क्षमता है। यह नीति दिल्ली की बहुसांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने की दिशा में एक प्रयास है। सरकार कला और संस्कृति के लिए अपनी दृष्टि में समग्रता, विविधता, ज्ञान के लोकतंत्रीकरण, सांस्कृतिक परिदृश्य के विस्तार, सामाजिक परिवर्तन और सरकारी खर्च के विकेंद्रीकरण के लिए प्रयासरत है।
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