Mohabbat: मोहब्बत की गिरफ्त में क्या मिला उसे….
Mohabbat: !!मोहब्बत!!
रिहा होकर कैदियों सी सजा काटता है
दर्द को दो हिस्सो मे भी कहां बांटता है
अब जब आता है ख्याल मोहब्बत का
तो बुरे लहजे से वो खुद को डांटता है
याद आती तो टूटकर बिखर जाता है
देर रात छत से गलियों में झांकता है
मोहब्बत की गिरफ्त में क्या मिला उसे
याद में रोज सुनसान सड़क मापता है
उसे यकीं कुरबत पर नही जलेगी शमां
तन्हाई नहीं वो साथ के डर कांपता है
रहने दो ओजस अपने हाल पर खुश है
रात सोती रहती वो ख्यालों में जागता है
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