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letter of Emotions: कोरे काग़ज़ पर आज जज़्बात लिख रही हूँ: अनुराधा रानी

!! कोरा काग़ज़ !!( letter of Emotions)

letter of Emotions, Anuradha Rani

letter of Emotions

कोरे काग़ज़ पर आज जज़्बात लिख रही हूँ
सवाल है मेरा क्या तेरा सिर्फ़ पढ़ना काफ़ी हैं
मुझे लोगों की ज़रूरत हैं
कुछ अपनों से दर्द बाँटना हैं
भावुक हो गई हूँ आज
मेरे अंतर्मन में कुछ यादों के लम्हें हैं
बेफ़िक्री के वो पल हैं
कुछ अनकहे जज़्बात है ज़िंदगी के
अनगिनत यादों का सफ़र हैं
मैं दर्द के सागर में डूब गई हूँ
बेबस भीड़ में खुद को अकेला पाकर
कोरे काग़ज़ पर आज जज़्बात लिख रही हूँ

मैं किस भीड़ में गुम हूँ
किस सफ़र की मुसाफ़िर हूँ
कहीं पहुँची नहीं वो राहगीर हूँ
क्या खोज रही हूँ
कोई दस्तक नहीं देता दरवाज़े पे
क्या लोग आते हैं बस जनाज़े पे
राहों में आज भटक गई हूँ
ज़िंदगी के ताले में कहीं अटक गई हूँ
छुप गई हूँ ओस की बूंदों में
कोई पूछे उन उम्मीदों में
मेरी निगाहों की तलाश जारी हैं
शून्य मेरे मन की कठिनाई काफ़ी हैं
मेरी परछाई को भी आज मैं दिख रही हूँ
कोरे काग़ज़ पर आज जज़्बात लिख रही हूँ

लोगों की बेरुखी भी जरा देखिए
उनसे अपने मन की ना कहिए
समय नहीं है इन राजदारों को
ये तो बस निभा रहे हैं किरदारों को
ज़िंदगी की यही रिवायत हैं
एक बस खुदा की मुझपे इनायत हैं
देख अपने बंदो का गुरूर
एक बात तो कहना है जरूर
मुझे रोने को कांधा ना मिला
गिला-शिकवा ही लोगों को रहा
ये कौन सा शहर है जहाँ मैं अकेले रहती हूँ
बंद दरवाज़े और खिड़कियों को दोस्त कहती हूँ
जिसे अपना माना वो भी अंजान ही रहा
टूटे मेरे दिल का आज सैलाब है बहा
मैं आज बड़े निराशा के साथ ये कह रही हूँ
कोरे काग़ज़ पर जज़्बात लिख रही हूँ

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