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Kavya: मैं ढूंढ़ा उसे गर्दिशों में, ठहर गया मानो कोई

!! मैं ढूंढा !! (Kavya)

Varun singh

Kavya: मैं ढूंढ़ा उसे गर्दिशों में
ठहर गया मानो कोई
साथ नहीं सहारा नहीं
जिस कदर में जाता
लोग ठुकरा जाते मुझे
किस तन्हा से कहूँ मैं
किस ओर जाने वो
जिस ओर जाता हूँ
फिर ठहर जाता
यह सोच कर
कैसे फिर उसे ढूंढूं ?
उस किनारे गर्दिशों में ।

कैसे बताऊं ?
किस कदर से
टूट पड़ा हूँ
बिखरे हुए पत्तों जैसे
आखिरी पन्नों में खोजा
मिला भी नहीं वो
लेकिन अकेले में
सिसक – सिसक के
याद उसे करके
आखिर सो जाता हूँ
सदा – सदा जीवन से ।

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