Kavya: मैं ढूंढ़ा उसे गर्दिशों में, ठहर गया मानो कोई
!! मैं ढूंढा !! (Kavya)
Kavya: मैं ढूंढ़ा उसे गर्दिशों में
ठहर गया मानो कोई
साथ नहीं सहारा नहीं
जिस कदर में जाता
लोग ठुकरा जाते मुझे
किस तन्हा से कहूँ मैं
किस ओर जाने वो
जिस ओर जाता हूँ
फिर ठहर जाता
यह सोच कर
कैसे फिर उसे ढूंढूं ?
उस किनारे गर्दिशों में ।
कैसे बताऊं ?
किस कदर से
टूट पड़ा हूँ
बिखरे हुए पत्तों जैसे
आखिरी पन्नों में खोजा
मिला भी नहीं वो
लेकिन अकेले में
सिसक – सिसक के
याद उसे करके
आखिर सो जाता हूँ
सदा – सदा जीवन से ।
*********
यह भी पढ़ें:-wakt ka khel: वक्त – वक्त का खेल है आज: अमरेश कुमार वर्मा
*हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारे पाठक अपनी स्वरचित रचनाएँ ही इस काव्य कॉलम में प्रकाशित करने के लिए भेजते है।
अपनी रचना हमें ई-मेल करें writeus@deshkiaawaz.in