Varanasi

वाराणसी (Varanasi) में राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला

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वाराणसी (Varanasi) में राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला

  • मानसिक संरचना का निर्माण करती हैं मातृभाषा

रिपोर्ट: डॉ राम शंकर सिंह

वाराणसी, 13 मार्चः वाराणसी (Varanasi) में हिंदी विभाग, वसंत महिला, महाविद्यालय, राजघाट, वाराणसी तथा महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में शिक्षा विद्यापीठ पंडित मदन मोहन मालवीय राष्ट्रीय शिक्षक एवं शिक्षण अभियान, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत आयोजित द्वि साप्ताहिक अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला के बारहवें दिन के पहले सत्र में डॉ.मिथिलेश कुमार मिश्र (निदेशक, हिंदी उर्दू भाषा एवं दक्षिण एशियाई भाषा विभाग एवं समन्वयक, अरबाना, इलीनॉय विश्वविद्यालय, यू एस ए) ने अपने विषय राष्ट्रीय शिक्षा नीति की सफलता के आवश्यक उपांग विषय पर अपना वक्तव्य देते हुए कहा की मातृभाषा से ममत्व झलकता है। मातृभाषा (Mother toungue) हमारे होने की जड़ है।

उन्होंने अंग्रेजी की बात करते हुए कहा कि यह भी उतना ही महत्व रखता है जितना अन्य मातृभाषा या स्थानीय भाषा रखती है। इक्कीसवीं सदी में सिर्फ एक भाषा के बल पर आप नहीं चल सकते। लोकतांत्रिक, वैश्विक दृष्टिकोण के साथ स्थानीय स्तर पर शुरुआत करने की जरुरत है। उन्होंने सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर का प्रयोग करते हुए कॉसेप्ट फार्मेशन की बात की। भारत में भाषा शिक्षण के तकनीकी पर जोड़ देने की आवश्यकता पर उन्होंने बल दिया। बौद्धिक चीजों के प्रति नया दृष्टिकोण लाकर राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अमल में लाया जा सकता। मातृभाषा की तुलना जड़ से करते हुए कहा कि हमारी परंपराएं जड़ की तरह हैं जो हमें मजबूती देती हैं।

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दूसरे सत्र की वक्ता डॉ.फिल्मेंका मार्बानियांग (सह आचार्य हिंदी विभाग, सेंट एंथोनीज कॉलेज शिलांग, मेघालय) ने खासी भाषा शिक्षण के संदर्भ में अपने वक्तव्य को रखा उन्होंने खासी भाषा के महत्वपूर्ण बिन्दुओं को लेकर अपने व्याख्यान में कहा कि खासी भाषा मेघालय में बोली जानेवाली भाषा है। जिनको 3 भागों में विभक्त किया गया है, 1.खासी, 2.चैत्य और 3 गारों भागों में विभक्त किया गया है। पहले इस भाषा की लिपि नहीं थी। उन्होंने खासी भाषा में शिक्षण के विषय में चर्चा करते हुए बताया कि आज अपनी संस्कृति के प्रति प्रेम होने के कारण लोग खासी भाषा सीख रहें।

तीसरे सत्र में डॉ.सत्यपाल शर्मा (आचार्य, हिंदी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) (Varanasi)ने अपने विषय भाषाई राजनीति, हिंदी और नयी शिक्षा नीति विषय पर कहा कि यह 1986 की अधूरी शिक्षा नीति को पूरा करने का प्रयास है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 आदर्श राज्य की कल्पना करते हुए बताया कि देश आदर्श तब होगा जब उस देश के नागरिक आदर्श होंगे और नागरिक तब आदर्श होंगे जब वहाँ की शिक्षा आदर्श होगी और देश की शिक्षा आदर्श कब होगी जब शिक्षा में पढ़ाए जानेवाले विषय आदर्श होंगे। संविधान यदि मूल रूप से हिंदी में लिखा गया होता तो स्थिति अलग होती। हम अभी भी शंका होने पर अंग्रेजी के पाठ का सहारा लेते हैं। जनता की क्षेत्रीय भावना का राजनीति में इस्तेमाल किया गया लेकिन सर्वस्वीकृत प्रणाली नहीं बनाई गयी।

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चौथे सत्र के वक्ता डॉ.संजय शर्मा (डॉ हरि सिंह गौड़ विश्वविद्यालय) ने नव उदारवाद भाषा एवं शिक्षा नीति विषय पर बोलते हुए कहा कि राष्ट्रबोध को विभिन्नता में ही परिलक्षित किया जा सकता है। मातृभाषा हमारी मानसिक संरचना का निर्माण करती है। भाषा अनुभवों की पुनर्संरचना करती है क्योंकि वह हमारी सभ्यता संस्कृति की पहचान है। भाषा एक ताकत है; व्यक्ति बात नहीं करता ,भाषा करती है। भाषा तकनीकि कौशल है जो इस कौशल को सीखेगा वही बाजार में खड़ा रहेगा। कार्यक्रम का संचालन डॉ. बंदना झा और डॉ. मीनाक्षी विश्वाल ने किया। कार्यक्रम की संयोजक डॉ. बंदना झा ने अतिथियों का स्वागत और आभार प्रकट किया।

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