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Vasanta College for Women: संघर्ष निवारण और शांति शोध पर पांच दिवसीय कार्यशाला

Vasanta College for Women: वसंता कॉलेज फ़ोर वीमेन और डी ए वी पी जी कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में चल रहे कार्यशाला में विद्वान वक्ताओं के विचार

  • राजनीति विज्ञान विभाग और आई क्यू ए सी के द्वारा आयोजित कार्यशाला चलेगी 2 अप्रैल तक
  • प्रोफेसर प्रियंकर उपाध्याय , प्रोफेसर अलका सिंह , प्रोफेसर संजीव कुमार, प्रोफेसर प्रीति सिंह, प्रोफेसर पुनीता पाठक आदि ने रखे अपने विचार

रिपोर्टः डॉ राम शंकर सिंह
वाराणसी, 30 मार्च:
Vasanta College for Women: राजनीति विज्ञान विभाग, बसंत महिला महाविद्यालय, राजघाट, आंतरिक गुणवत्ता मूल्यांकन प्रकोष्ठ के तत्वाधान एवं राजनीति विज्ञान विभाग, डीएवी पीजी कॉलेज के साहचर्य में पांच दिवसीय कार्यशाला, “संघर्ष निवारण एवं शांति शोध: मुद्दे एवं पद्धतियां” विषय पर किया जा रहा है . कार्यशाला के उद्घाटन सत्र के अंतर्गत प्रोफेसर अलका सिंह, प्राचार्य, बसंत महिला महाविद्यालय ने स्वागत अभिभाषण के अंतर्गत अतिथियों का स्वागत किया तथा वर्तमान में शांति की महत्ता पर प्रकाश डाला I डॉ पुनीता पाठक, राजनीति विज्ञान विभाग ने कार्यशाला के विषय पर प्रकाश डाला. आपने वर्तमान संदर्भ में संघर्ष निवारण एवं शांति शोध के विकास तथा इसके विभिन्न आयामों के विषय में विस्तार से बताया.

Vasanta College for Women: डॉ प्रीति सिंह, विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान विभाग ने उद्घाटन सत्र की बीज वक्ता प्रोफेसर प्रियंकर उपाध्याय का परिचय देते हुए उन्हें व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया I अपने व्याख्यान के अंतर्गत प्रोफ़ेसर प्रियंकर उपाध्याय, यूनेस्को चेयर, एमसीपीआर बीएचयू ने शुरुआत में कहा, शांति हमारी विलासिता नहीं बल्कि हमारी आवश्यकता है I इसी क्रम में उन्होंने संघर्ष निवारण एवं शांति अध्ययन के विषय के रूप में उद्भव की वृहद चर्चा की तथा बताया कि, किस प्रकार विकास और परिवर्तन की प्रक्रिया से बहुत ही नजदीकी से संघर्ष भी जुड़ा हुआ है I उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि किस प्रकार युद्ध की प्रक्रिया मानव मस्तिष्क से उत्पन्न होती है, इसलिए इसे एक विषय के रूप में शांति को पढ़ाना बहुत आवश्यक है I

प्रो. उपाध्याय ने शांति अध्ययन विमर्श के संदर्भ में भारतीय चिंतन परंपरा के योगदान पर भी बल दिया I डॉ स्वाति सुचारिता, विभागाध्यक्ष, राजनीति विज्ञान, डीएवी कॉलेज ने धन्यवाद ज्ञापन किया एवं संचालन डॉ मनीषा मिश्र, राजनीति विज्ञान विभाग, बसंत महिला महाविद्यालय, ने किया I

तत्पश्चात प्रथम तकनीकी सत्र के अंतर्गत मुख्य वक्ता डॉ कौशिकी, प्रोफेसर एवं डायरेक्टर, नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कनफ्लिक्ट रेजोल्यूशन, जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी ने संघर्ष निवारण और शांति शोध: पद्धतियां कौशल एवं रणनीतियां विषय पर व्याख्यान दिया I अपने व्याख्यान में उन्होंने बताया कि शांति स्थापना के अंतर्गत हिंसा के द्वारा हिंसा के चक्र को खत्म नहीं किया जा सकता बल्कि इससे वह निरंतर चलता रहेगा I

उन्होंने अपने व्याख्यान के अंतर्गत संघर्ष निवारण एवं शांति अध्ययन, संघर्ष संबोधन एवं शांति स्थापना के दृष्टिकोण तथा संघर्ष निवारण दृष्टिकोण एवं तरीके को बताया I उन्होंने यह भी बताया कि प्रक्रिया अर्थात संवाद में लगे रहने से ही हमें परिणाम अर्थात शांति स्थापना प्राप्त होती है I तकनीकी सत्र के अंतर्गत मुख्य वक्ता का परिचय एवं सत्र संचालन डॉ प्रीति सिंह, विभागाध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ राकेश मीणा, राजनीति विज्ञान विभाग, डीएवी पीजी कॉलेज द्वारा दिया गया I इस कार्यशाला में लगभग 100 से अधिक प्रतिभागियों ने सहभागिता की I

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द्वितीय तकनीकी सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर अंजू शरण उपाध्याय, निदेशक मालवीय शांति शोध केंद्र, काशी हिंदू विश्वविद्यालय एवं राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर तथा भूतपूर्व समन्वयक, नेपाल अध्ययन केंद्र का.हि.वि.वि ने अपने विचार रखे । उन्होंने “संघर्ष समाधान एवं शांति: एक जेंडर परिप्रेक्ष्य” विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किए। प्रोफेसर उपाध्याय का यह मानना है कि हमें महिलाओं को शांति के अभिकरण के रूप में चिन्हित करना होगा। उन्होंने समकालीन शांति स्थापना प्रक्रिया के दो प्रमुख मुद्दे- न्यूक्लियर परीक्षण के विरोध एवं पर्यावरण सुरक्षा में महिलाओं की केंद्रीय भूमिका पर प्रकाश डाला।

उन्होंने बताया युद्ध के क्षेत्र में भी महिलाएं मात्र पीड़ित ना होकर शांति स्थापना की प्रक्रिया का भाग बनती है। उन्होंने 1900 से लेकर 1945 तक महिलाओं शुरुआती संघर्ष पर प्रकाश डाला। डेविडसन के योगदान, यूएन कमीशन ऑफ द स्टेटस ऑफ वूमेन रिपोर्ट पर जानकारी दी। मदर्स डे को किस प्रकार यूके में एंटी वार डे के रूप में मनाया जाता है और महिलाओं ने किस प्रकार से 1945 में न्यूक्लियर परीक्षण का विरोध किया जिसकी वजह से 1963 में परीक्षण निषेध संधि अस्तित्व में आया, साथ ही रूस में सैनिकों की माताओं के आंदोलन पर प्रकाश डाला।

आपने आगे कहा कि बोस्निया संघर्ष में भी महिलाओं ने बहुत पहले ही सरकार को यह सूचित कर दिया था कि संघर्ष के भयावह परिणाम होंगे। यूएन में भी महिलाओं को शांति प्रक्रिया में सम्मिलित किया जाए यह प्रस्ताव रखा गया। परंतु 24 प्रमुख शांति स्थापना की प्रक्रियाओं में केवल 8% ही महिला समझौताकार अपनी भूमिका निभाई। इसलिए आवश्यक है कि विभिन्न संस्थाएं महिलाओं को शांति स्थापना की प्रक्रिया में संलग्न करें और उनकी पहुंच सुनिश्चित करें।

कार्यशाला का संचालन एवं वक्ता से परिचय वर्कशॉप की समन्वयिका डॉ प्रीति सिंह,विभागाध्यक्षा, राजनीति विज्ञान विभाग, वसंत महिला महाविद्यालय द्वारा किया गया एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ स्वाति सुचारिता नंदा, वर्कशॉप की समन्वयिका एवं सहायक प्राध्यापक, राजनीति विज्ञान विभाग, डीएवी पीजी कॉलेज के द्वारा से किया गया। इस कार्यक्रम में 118 छात्र-छात्राओं ने विभिन्न महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों से भाग लिया। इस कार्यक्रम में डॉ पुनीता पाठक, डॉ मनीषा मिश्र, डॉ राकेश मीणा, सुश्री प्रियंका, डॉ प्रतिभा वर्मा एवं डॉ आशा पांडे इत्यादि उपस्थित थे।

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