Varanasi women asmita

Stree Asmita and Kavita Ka Bhaktiyuga book launched.वाराणसी में स्त्री अस्मिता और कविता का भक्ति युग पुस्तक का लोकार्पण

Stree Asmita and Kavita Ka Bhaktiyuga book launched: प्रोफेसर शशिकला त्रिपाठी द्वारा रचित पुस्तक के लोकार्पण समारोह में नामचीन विद्वानों की रही उपस्थिति

रिपोर्टः डॉ राम शंकर सिंह
वाराणसी, 13 फ़रवरी:
Stree Asmita and Kavita Ka Bhaktiyuga book launched: वसंत महिला महाविद्यालय, जे. कृष्णमूर्ति फाउंडेशन और अनुज्ञा बुक्स, दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शशिकला त्रिपाठी द्वारा लिखित पुस्तक ‘स्त्री अस्मिता और कविता का भक्तियुग’ का लोकार्पण किया गया। प्रारम्भ में कॉलेज की छात्राओं ने संगीत मय कुलगीत प्रस्तुत किया. प्राचार्य प्रोफेसर अलका सिंह ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि, इस पुस्तक के माध्यम से भक्तिकाल में स्त्री की स्थिति, उनकी भक्ति आदि की जानकारी होगी तथा पाठकगण इससे लाभान्वित होंगे।

ख्याति लब्ध साहित्यकार प्रोफेसर शशिकला त्रिपाठी ने अपने लेखकीय वक्तव्य में कहा कि (Stree Asmita and Kavita Ka Bhaktiyuga book launched) ..यह पुस्तक मेरी स्त्री विचारधारा श्रृखंला की एक बहुमूल्य कड़ी है। स्त्री चिंतन करते हुए मेरा ध्यान भक्तिकाल की स्त्रियों पर गया और यह पुस्तक नये चिंतन के पुराने सूत्रों की खोज का परिणाम है। किसी भी काल में जो साहित्य लिखा गया वह अधिकांशतः पुरुषों द्वारा लिखा गया। परन्तु जब एक स्त्री साहित्य की रचना करती है तो उसमें भी अगर स्त्रीवादी चेतना न हो, तो यह आश्चर्य जनक है. उदाहरण स्वरूप हम भक्तिकाल की दयाबाई या सहजोबाई को देख सकते हैं। वह उसी स्वर में लिखती हैं जिस स्वर में पुरुष लिखते हैँ . कबीर, तुलसी आदि ने स्त्रियों पर जो भी लिखा उसमें परम्परापोषित विचार मिलते हैं।

पुस्तक पर चर्चा करते हुए डॉ. रामसुधार सिंह (पूर्व अध्यक्ष, हिंदी विभाग, यू.पी. कॉलेज, वाराणसी) ने कहा कि पुस्तक के माध्यम से भक्तिकाल में स्त्री अस्मिता को एक नया दृष्टिकोण मिला है। यह दृष्टि आधुनिक स्त्री अस्मिता का मार्ग प्रशस्त करेगी। डॉ. दयाशंकर त्रिपाठी (आचार्य एवं अध्यक्ष, हिंदी विभाग, सरदार पटेल विश्वविद्यालय, वल्लभ विद्यानगर, गुजरात) ने कहा कि इस पुस्तक में एक परिप्रेक्ष्य हिंदी कविता का है, जो भक्त कवि है वो कैसे एक स्त्री को देखते हैं और कवयित्रियाँ अपनी बात कैसे रखती हैं, उनकी भाषा किस तरह की है. स्त्री प्रश्न को लेकर जिस भक्तिकाव्य पर बात करने से बहुत से आलोचक कन्नी काटते हैं वही ‘स्त्री अस्मिता का प्रश्न’ ही इस पुस्तक का केंद्रबिंदु है।

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प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. सुभाष शर्मा ने कहा कि भक्तिकाल में संतो की लंबी परंपरा का वर्णन है लेकिन इस पुस्तक में पूरे भारत के विभिन्न क्षेत्रों के संतो का वर्णन है। इसमें भारतीय स्त्री को पितृसत्ता रूपी छाया कहा गया है, जिस छाया के भीतर उसे पनपने का अवसर नही मिला. डॉ. रंजना अरगड़े (पूर्व निदेशक, भारतीय भाषा भवन, सेवानिवृत्त आचार्य एवं अध्यक्ष, हिंदी विभाग, गुजरात विश्वविद्यालय, गुजरात) ने पुस्तक की प्रशंसा करते हुए कहा कि पुस्तक का संदर्भीकरण ही इसकी ताकत है।

आपने आगे कहा कि पुस्तक की भाषा बहुत संजीदा और रचनात्मक है। (Stree Asmita and Kavita Ka Bhaktiyuga book launched) स्त्री अस्मिता और भक्तियुग की भाषा पुस्तक को और आगे ले जाती है। किसी भी आलोचनात्मक कृति में लेखक मात्र अपनी बात नहीं कर सकता, उसे पूर्व में किये गये कार्यों को भी बताना होता है जैसा कि पुस्तक के लेखक ने मीरा पर लिखते हुए अरविंद तेजावत और माधव हाड़ा के कार्यों का उल्लेख किया है। इससे पाठक को अन्य पुस्तकों एवं रचनाकारों पर किये गये कार्यों का पता चलता है। पुस्तक की एक विशेषता यह है कि एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में लेखिका ने गहरी नींव के साथ स्त्रीवादी दृष्टिकोण से भक्ति कविता की सुदृढ़ इमारत रचने का कार्य किया है। इस रूप में यह पहला कार्य है। पुस्तक को देखकर पता चलता है कि लेखक के भीतर एक शोधकर्ता उपलब्ध है। निःसंदेह यह पुस्तक शोधार्थियों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी.

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कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. चितरंजन मिश्र ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि हिंदी जगत् में स्त्री अस्मिता को आधुनिकता से पूर्व देखना सराहनीय है। इस पुस्तक में बताया गया है कि कवयित्रियाँ पितृसत्ता को तो चुनौती देती हैं किन्तु परमसत्ता को स्वीकार भी करती हैं। वर्तमान में मौलिक पुस्तकें कम लिखी जाती हैं। आजकल लेख ज्यादा लिखे जाते हैं और वे पत्रिकाओं में छप रहे हैं।

शिथिल और बंद पड़े समय में इस पुस्तक ‘स्त्री अस्मिता और कविता के भक्तियुग’ का आना सराहनीय है। लेखिका ने गंभीरतापूर्वक पुस्तक लिखने की योजना बनाकर हिंदी जगत को एक अच्छी पुस्तक दी है। कार्यक्रम का कुशल संचालन हिंदी विभाग की प्रोफेसर मीनू अवस्थी ने तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रकाशक सुधीर वत्स ने किया.