Madhya Pradesh Urdu Academy: बड़वानी में महान क्रांतिकारी भीमा नायक को समर्पित व्याख्यान एवं रचना पाठ का आयोजन
Madhya Pradesh Urdu Academy: “मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा बड़वानी में “सिलसिला” के तहत महान क्रांतिकारी भीमा नायक को समर्पित व्याख्यान एवं रचना पाठ आयोजित”
बड़वानी, 06 अगस्त: Madhya Pradesh Urdu Academy: मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग के तत्त्वावधान में ज़िला अदब गोशा बड़वानी के द्वारा सिलसिला के तहत महान क्रांतिकारी भीमा नायक को समर्पित व्याख्यान एवं रचना पाठ का आयोजन ज़िला समन्वयक सैयद रिज़वान अली के सहयोग से किया गया।
उर्दू अकादमी की निदेशक डॉ. नुसरत मेहदी ने कार्यक्रम की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद द्वारा भीमा नायक को समर्पित कार्यक्रम का उद्देश्य स्वतंत्रता संग्राम में किए गए उनके योगदान और बलिदान को याद करना और उनकी वीरता की गाथा को जनमानस तक पहुंचाना एवं इनके माध्यम से राष्ट्रीय गर्व और देशभक्ति की भावना को जागृत करना है।
बड़वानी ज़िले के समन्वयक सैयद रिज़वान अली ने बताया कि सिलसिला के तहत व्याख्यान एवं रचना पाठ का आयोजन हुआ जिसकी अध्यक्षता बड़वानी के वरिष्ठ शायर क़ादिर हनफ़ी ने की। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में सिराज तन्हा अलीराजपुर एवं इस्माईल शेख़ अध्यक्ष, राजपुर उपस्थित रहे। इस सत्र के प्रारंभ में बलदेव सिंह चौहान ने महान क्रांतिकारी भीमा नायक के जीवन एवं कारनामों पर प्रकाश डाल कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि कहते हैं युद्ध तो सेना लड़ती है नाम कर्नल का होता है जी हां मैं बात कर रहा हूं एक ऐसे कर्नल की जिसे निमाड़ का रॉबिनहुड कहा जाता है। 1857 में अंग्रेज़ों की ग़ुलामी से मुक्ति के लिए देश के हर हिस्से से क्रांति का बिगुल फूंका गया और पूरे देश में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन और विद्रोह हुए। जब पूरा देश अंग्रेजों से विद्रोह कर रहा था तो हमारा निमाड़ कैसे अछूता रह जाता। पश्चिम के निमाड़ में भीमा नायक ख्वाजा नायक जैसे वीर योद्धाओं ने अंग्रेज़ों से मुक्ति के लिए कमर कसली। भीमा नायक ऐसे पहले क्रांतिकारी थे जिन्हें अंग्रेज़ों ने काले पानी की सज़ा सुनाई।
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भीमा नायक का अंग्रेज़ों की सेना में ऐसा खौफ़ था कि उनका नाम सुनकर ही अंग्रेज़ सेना काँप जाती थी। भीमा नायक का जन्म बड़वानी रियासत के एक पहाड़ी गांव में 1840 में एक ग़रीब आदिवासी भील परिवार मैं हुआ था उनके माता-पिता कृषि उपकरणों के साथ-साथ तलवार एवं बरछी जैसे अन्य हथियार भी बनाया करते थे जिनसे उनके पारिवारिक भरण पोषण होता था.
अंग्रेज़ों ने उनके पिता को किसी जुर्म में गिरफ़्तार कर बहुत ही यातनाएं देकर मार दिया जिसका भीमा नायक के दिलो दिमाग पर गहरा प्रभाव पड़ा और वे अंग्रेज़ों की ग़ुलामी से मुक्ति पाने के लिए प्रतिबद्ध और संकल्पित हो गए भीमा नायक ने भीलों की अपनी एक सेना तैयार की और अंग्रेज़ों से तथा साहूकारों से समाज को मुक्त कराने का प्रण ले लिया भीमा नायक साहूकारों व अंग्रेज़ों से उनका ख़ज़ाना लूटते थे और अपने समाज पर उत्थान के लिए उसका उपयोग करते थे यही कारण है कि भीमा नायक को रॉबिन हुड कहा जाने लगा। 29 दिसंबर 1876 को इस महानायक का दीपक बुझ गया और वे शहीद हो गए।
रचना पाठ में जिन शायरों ने अपना कलाम पेश किया उनके नाम और अशआर निम्न हैं :
बरस ही जाता तो दिल को सुकून मिल जाता
ये अब्र बस यूँ ही उस घर पे छा के लौट आया
क़ादिर हनफ़ी
हिज्र होता है मेरी जान पे बन आती है,
वस्ल से यार को सो बार शिकायत होगी!
आरिफ़ अहमद ‘आरिफ़’ बड़वानी
तुम्हारी जीत की लेकर के आस बैठे है
चलो आओ के हम अब तक उदास बैठे है
इस्लामुद्दीन ‘हैदर’ ओझर
अपनी हस्ती को जो मिटाएगा
सारे आलम में जगमगाएगा
शुजाउद्दीन ‘ बैबाक’
वतन पर जो हुए क़ुर्बां उन्हें हम कैसे भुलेंगे
वतन पर देदी जिसने जां उन्हें हम कैसे भुलेंगे
सिराज तन्हा
अहले दिल हो तो मुलाक़ात बनेगी अपनी
अक़्ल वालों से कहाँ बात बनेगी अपनी
सैयद रिज़वान अली
इसीलिए मुझे ननिहाल हश्र लगता है
वहां भी नाम से मां के पुकारा जाता हूं
वाजिद हुसैन ‘साहिल’ सेंधवा
मजाल क्या है किसी की के जो मुझे रोके।
भटक रहा हूँ जहाँ पर, भटक रहा हूँ मैं ।
निज़ाम ‘बाबा’ सेंधवा
रहम करना मेरे अल्लाह ग़रीबो के घरोंदो पर
हवा जब तेज चलती है घरोंदा टुट जाता है
हाफ़िज अहमद हाफ़िज
चलों आज हम अंधेरे में ही मिल लें
कल न जाने कौनसे उजाले हमें अलग कर दें
अपुर्व शुक्ला
घर की जरूरतों में कहीं दब गया था मै
अब क्या बताऊं कैसे जवानी गुज़र गई
शाकिर शेख़ शाकिर
मोहब्बत के शहर में आ के नफ़रत टूट जाती है
बगावत जब भी होती है हुकूमत टूट जाती है
शाहरुख शाद
लोगों के झूठ से भी बड़ा प्यार था उन्हें
लेकिन हमारे सच की कोई अहमियत न थी
पवन शर्मा हमदर्द
आप भी तंज़ कम नहीं करते
इसलिए बात हम नहीं करते
वाहिद क़ुरैशी ‘वाहिद’ राजपुर
नहीं सीख पाए कभी इश्क़ “आदिल”
इसी कार में बस ख़सारा रहा था।
विशाल त्रिवेदी ‘आदिल’ सेंधवा
कार्यक्रम का संचालन वाजिद हुसैन साहिल द्वारा किया गया। कार्यक्रम के अंत में ज़िला समन्वयक सैयद रिज़वान अली ने सभी अतिथियों, रचनाकारों एवं श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।
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