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Language of research: शोध की भाषा जर्नलिस्टिक के बजाय होनी चाहिए परिस्कृत

Language of research: वसंता कॉलेज फॉर वोमेन में शोध प्राविधि पर चल रहे राष्ट्रीय व्याख्यान में प्रोफेसर संजय श्रीवास्तव के उदगार

रिपोर्ट : डॉ राम शंकर सिंह

वाराणसी, 11 सितम्बर: Language of research: वसंत महिला महाविद्यालय (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय), राजघाट फोर्ट, वाराणसी द्वारा आयोजित “शोध प्रविधि के विविध आयाम “विषयक सप्तदिवसीय राष्ट्रीय ई-व्याख्यान श्रृंखला के पांचवें दिन प्रथम सत्र के वक्ता प्रो. संजय श्रीवास्तव (राजनीतिक विज्ञान विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी) ने “शोधार्थियों के लिए कुछ सूत्र” विषय पर वक्तव्य देते हुए कहा कि शोध का अर्थ मात्र उपलब्ध साहित्य का प्रबंधन नहीं अपितु उसमें नवीनता होनी चाहिए। शोध में नयापन 3 स्तरों पर हो सकता है

1) Content विषयवस्तु जो लिया है, वह नया हो (2) Perspective दृष्टिकोण अलग हो तथा Methodology ( प्रविधि अलग हो)
आपने कहा कि शोधार्थियों के लिए Synopsis पथ प्रदर्शक होता है। शोधार्थी को एक रिसर्च डिजाइन पहले ही तैयार कर लेना चाहिए ताकि यह ज्ञात हो कि किस तरह से शोध आगे होगा। रिसर्च डिजाइन एक्सपेरिमेंटल होगा या नॉन एक्सपेरिमेंटल, यह शोधार्थी तय करेगा और इस डिजाइन के लिए शोधार्थियों को पूर्वानुमान लगाना पड़ेगा। उन्होंने बताया कि आंकड़ों का संग्रह शोधार्थी को एक से अधिक विधि में करना चाहिए। अलग-अलग विधियों के माध्यम से आने वाले परिणाम में यदि भिन्नता है तो वह शोध ठीक नहीं है और अगर सभी विधियाँ समान परिणाम बताती हैं तो ठीक है। शोध में साक्षात्कार, अवलोकन, प्रश्नावली, आकड़ों का संग्रह आदि की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।

समाज विज्ञान के शोधार्थियों के शोध में थ्योरेटिकल फ्रेमवर्क नहीं होता है जो एक कमी है। थ्योरी एक टूल है जो वास्तविकता को देखने में मदद करता है। जो लोग समाज विज्ञान और कला के क्षेत्र में काम कर रहे हैं वह जिस भी भाषा में काम कर रहे हैं, उसे परिष्कृत करें। शोध की भाषा जर्नलिस्टिक नहीं परिष्कृत होनी चाहिए। हिन्दी भाषी शोधार्थियों को भी वर्किंग इंग्लिश का ज्ञानआवश्यक बताया।

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द्वितीय सत्र के वक्ता सीनियर प्रोफेसर एम भासी (स्कूल ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, कोच्चि) ने “सामाजिक विज्ञान शोध में प्रयुक्त नमूने” विषय पर अपना वक्तव्य दिया। उन्होंने मॉडल की उपयोगिता बताते हुए कहा कि विषय का अध्ययन हम मॉडल द्वारा कर सकें तो अध्ययन और उसकी व्याख्या करने में सहायता मिलती है। Quantative या Numbers के अध्ययन हेतु मॉडल की आवश्यकता अधिक होती है। किसी सिस्टम में उपघटक किसी परिणाम को उत्पन्न करने के लिए मिलकर काम करते हैं। उन्होंने Independent Variables,
Dependent Variables और Hypothesis को व्याख्यायित किया।
आपने Data Collection के कई Methods बताये।जैसे-
(1)- Observation
(2)-Unstructured Interview
(3)- Questionnaire
(4)- Schedule
(5)- Instruments
Data Analysis के अलग-अलग tools के बारे में भी बताया।

शोध समिति की समन्वयक एवं हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. शशिकला त्रिपाठी ने अतिथि वक्ताओं का स्वागत करते हुए कहा कि चाणक्य को आज भी गुरु के रूप में याद किया जाता है। वह राजनीति ,अर्थशास्त्र, कूटनीति के विशेषज्ञ थे। ऐसे ही विद्वान शोध निर्देशकों के सान्निध्य में शोधार्थी बहुत कुछ नया सीख सकता है। ये ही चन्द्रगुप्त का निर्माण कर अखण्ड भारत के सृजन में सहयोग तथा नई दिशा प्रदान कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान में सभी अनुशासनों को विज्ञान और तकनीक से जोड़ा गया है। कोरोना काल ने हम सभी को टेक्नोलॉजी से जोड़ा है और अब यह अनिवार्यता बन गयी है। बिना तकनीक से जुड़े शोधार्थी अपने शोधकार्य को उत्तम गति या दिशा नहीं दे सकता।

दोनों सत्रों का कुशल संचालन क्रमशः डॉ. प्रीति सिंह और योगिता बेरी तथा धन्यवाद ज्ञापन किया डॉ. विभा सिंह और डॉ. मनीषा मिश्रा ने। इस अवसर पर महाविद्यालय के अधिसंख्य शिक्षकगण,शोध समिति के सभी सदस्य, विभागाध्यक्ष, विभिन्न राज्यों के शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

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