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Handloom Weavers Chair: आईआईटी के शोधकर्ता ने हथकरघा बुनकरों के लिए तैयार की एक एर्गाेनोमिक कुर्सी

Handloom Weavers Chair: बुनकरों के पीठ को मिलेगा सहारा और जांघो को आराम

रिपोर्ट: डॉ राम शंकर सिंह

वाराणसी, 06 अगस्तः Handloom Weavers Chair: मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग (औद्योगिक प्रबंधन), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (बनारस हिंदू विश्वविद्यालय) की एक शोध टीम ने पिटलूम का उपयोग करने वाले बुनकरों के लिए एर्गाेनॉमिक रूप से डिज़ाइन की गई सीट बनाई है। आईआईटी (बीएचयू) की रिसर्च टीम के अनुसार, यह सीट बुनकरों को पीठ को सहारा देने और जांघों को आराम देने में मदद करेगी। इसलिए, बुनकरों को काम से संबंधित मस्कुलोस्केलेटल डिसऑर्डर (एमएसडी) होने का खतरा कम होगा।

Handloom Weavers Chair: मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डॉ. प्रभास भारद्वाज ने बताया कि वाराणसी के हथकरघा उद्योग में बुनकरों को एक जगह बैठकर रोजाना कम से कम 12 घंटे लगातार काम करना पड़ता है। इस वजह से उन्हें मस्कुलोस्केलेटल डिसऑर्डर का सामना करना पड़ रहा है। वाराणसी में किए गए सर्वे के मुताबिक ज्यादातर बुनकरों को कमर दर्द और जांघ में दर्द होता है।

Handloom Weavers Chair: इसका कारण यह है कि बुनकरों के पास उचित बैक सपोर्ट नहीं होता है और वे समतल लकड़ी के तख्त पर बैठेते हैं। इसलिए, काम के दौरान आराम प्रदान करने के लिए उनके लिए एक सीट तैयार की गई थी। यह बुनकरों को अधिक उत्पादक काम करने में मदद करेगा।

Handloom weavers chair

Handloom Weavers Chair: बनारस हथकरघा उद्योग के विकास पर काम कर रहे और एर्गोनॉमिक चेयर की डिजाइन बनाने वाले संस्थान के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के रिसर्च स्कॉलर एम कृष्ण प्रसन्ना नाइक ने बताया कि बुनकरों के लिए एक गड्ढे वाले करघे (पिटलुम) पर पूरे दिन काम करना बहुत कठिन होता है। उनके द्वारा इस्तेमाल किया गया समतल तख्ता किसी सहारे का नहीं होता है। रिसर्च ने खुलासा किया कि न केवल बूढ़े बल्कि युवा बुनकर भी एमएसडी का सामना कर रहे हैं।

शरीर में दर्द के कारण बुनकर सुबह की अपेक्षा दोपहर की पाली में अधिक काम का अवकाश ले रहे हैं। इसलिए, बुनकरों के आकार के आधार पर समायोज्य सुविधाओं के साथ लागत प्रभावी और एर्गाेनॉमिक रूप से डिज़ाइन की गई सीट उन्हें एमएसडी की समस्या से निजात दिलाने में मदद करती है। इस सीट का निर्माण भी आसान है। कोई भी बुनकर इसे अपने करघे के लिए बना सकता है।

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Handloom Weavers Chair: उन्होंने आगे बताया कि पहले उन्होंने बुनकरों की लंबाई, चौड़ाई, वजन, बैठने पर कमर की साइज, पीठ के आकार का नाप लिया। उसके बाद लकड़ी से कुर्सी की डिजाइन तैयार की गई है। इस कुर्सी में ऐसी व्यवस्था की गई है कि बुनकर उसे अपनी साइज के आधार पर सेटिंग कर सकता है।

इस एर्गोनॉमिक कुर्सी को उपयोग में लाने वाले रामनगर स्थित सहकारी समिति के अध्यक्ष अमरेश कुशवाहा ने बताया कि बुनकर 5-6 घंटे काम करने के बाद शरीर के दर्द के कारण काम से छुट्टी लेते थे। इससे उनकी बुनाई की गति कम हो जाती है, जिससे उत्पादन में देरी होती है। अब हम अपने समाज में एर्गाेनॉमिक रूप से डिजाइन की गई इस सीट का उपयोग कर रहे हैं।

इस सीट का इस्तेमाल करने वाले बुनकरों ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि वे लंबे समय तक आराम से काम करने में सक्षम हैं। इसलिए, हम इस सीट को अपने सभी मौजूदा करघों के लिए उपलब्ध कराने की व्यवस्था कर रहे हैं।

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