Death Anniversary Of Prof. Vasudev Singh

Death Anniversary Of Prof. Vasudev Singh: बीएचयू में मनाई गई प्रो.वासुदेव सिंह की पुण्यतिथि

Death Anniversary Of Prof. Vasudev Singh: आदिवासी स्त्री समाज और हिंदी कविता विषयक व्याख्यान की मुख्य अतिथि ख्याति प्राप्त कवि और चिंतक निर्मला पुत्तुल ने दिये रोचक व्याख्यान

रिपोर्टः डॉ राम शंकर सिंह
वाराणसी, 28 जनवरीः
Death Anniversary Of Prof. Vasudev Singh: काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में आचार्य रामचंद्र शुक्ला सभागार में प्रो.वासुदेव सिंह की पुण्यतिथि मनाई गई। इस अवसर पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय एवं प्रोफेसर वासुदेव सिंह स्मृति न्यास के संयुक्त तत्वावधान में “प्रोफेसर वासुदेव सिंह स्मृति व्याख्यान 2024” का आयोजन किया गया जिसका विषय था “आदिवासी स्त्री समाज और हिंदी कविता”।

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध कवि और चिंतक निर्मला पुतुल ने कहा कि, आदिवासी स्त्रियां मेहनती होने के साथ श्रम के सौंदर्य से अभिषिक्त होती हैं। उन्होंने कहा कि, पुरुषों का संसार स्त्रियां ही निर्मित करती हैं। इस दौरान उन्होंने अपनी कविताओं का पाठ किया।

स्वागत वक्तव्य देते हुए प्रो. वासुदेव स्मृति न्यास के प्रभारी डॉ. हिमांशु शेखर सिंह ने कहा कि, साहित्य में तमाम तरह के वाद, सोच और विचाराधारा के बावजूद हम बिना किसी भाव में बंधे हुए एक ही भाव, साहित्यिक भाव से सभी विद्वानों को आमंत्रित करते रहे हैं। वासुदेव सिंह का मूल भाव साहित्य में भक्ति का था और भक्तिकालीन साहित्य पर इनकी पकड़ मजबूत थी।

कार्यक्रम की अगली कड़ी में यूजीसी की केयर लिस्ट में शामिल पत्रिका “नमन” जिसकी संपादक प्रो. श्रध्दा सिंह और डॉ. हिमांशु शेखर सिंह हैं, के नए अंक का लोकार्पण किया गया। हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ अनूप ने बताया कि, वासुदेव कबीर को पढ़ाते हुए साखी आंखी ज्ञान की बातें करते थे। जो कबीर के यहां जो अनहद नाद था वह निर्मला के यहां नगाड़े की तरह बजता हुआ दिखाई देता है। इनकी कविताओं में आदिवासी लोक के आमजन की समस्याएं वर्णित हैं।

इस व्याख्यान का विषय प्रवर्तन करते हुए सुप्रतिष्ठित कवि एवं आलोचक प्रो. प्रभाकर सिंह ने बताया कि, प्रो. वासुदेव सिंह विशेषकर आदिकाल और भक्तिकाल के ‘पाठ्यलोचक’ थे। लेखनी में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी और नामवर की परंपरा में आते हैं। इनकी लेखनी के तीन भाग हैं; पहला इतिहास लेखन,दूसरा टीका एवं सम्पादन और तीसरा है आलोचना। वासुदेव ने टीका और संपादन कार्य किया जिसको साहित्य परंपरा में कमतर आंका गया है; जबकि शोध के क्षेत्र में टिकाएं अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं बीएचयू की सामाजिक विज्ञान संकाय प्रमुख प्रो. बिंदा परांजपे ने नई शिक्षा नीति में शामिल पाठ्यक्रम के तहत आदिवासी हिंदी कविताओं को शामिल करने की बात कही। आदिवासी भाषाओं के विलुप्तीकरण पर चिंता जताते हुए कहती हैं कि किसी भाषा का विलुप्त होना उस भाषा के ज्ञान परंपरा के विलुप्त होने को दर्शाता है।

इस आयोजन के संचालक‚ कथा साहित्य के विशेषज्ञ प्रो.नीरज खरे बताते हैं कि, प्रो. वासुदेव सिंह का आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी‚ बच्चन सिंह‚ शिवप्रसाद सिंह‚ भोलाशंकर व्यास जैसे विद्वानों से घनिष्ठतम संबंध रहा। धन्यवाद ज्ञापित करते हुए भक्तिकालीन साहित्य की मर्मज्ञ प्रो. श्रद्धा सिंह ने बताया कि, 2007 में हमने अपने पिता को खो दिया।

27 जनवरी 2007 को “हैपी मॉडर्न स्कूल” से पहली पुण्यतिथि प्रारंभ हुई। पिताजी की एक स्मृति में एक स्मृति ग्रंथ निकाला गया और इसी से उद्भूत हुई “नमन” पत्रिका और आज यह शोध पत्रिका में परिवर्तित हो चुकी है। उसे ISSN नंबर मिला और वह यूजीसी की केयर लिस्ट में चली गई। आल ओवर इंडिया से इतने लेख प्रकाशित करने हेतु आते हैं कि चयन करना मुश्किल हो जाता है। इस पत्रिका के सचिव डॉ. हिमांशु सिंह और कोषाध्यक्ष प्रो. श्रद्धा सिंह हैं।

इस कार्यक्रम में आरा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. हरिकेश सिंह, महिला महाविद्यालय की प्रिंसिपल प्रो. रीता सिंह, प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल, प्रो. आशीष त्रिपाठी, प्रो. आभा गुप्ता ठाकुर, डॉ.रामाज्ञा शशिधर, डॉ.अशोक कुमार ज्योति, डॉ.महेंद्र प्रसाद कुशवाहा, डॉ. रवि शंकर सोनकर, डॉ. प्रीति त्रिपाठी, डॉ.प्रीति त्रिपाठी, डॉ. हरीश कुमार और शोध छात्र नील दुबे समेत अन्य शोधार्थी व छात्र-छात्राओं की उपस्थिति रही।

विश्वविद्यालय की सांस्कृतिक परंपरानुसार प्रो.वासुदेव सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के पश्चात मंच कला संकाय की शिष्या अर्पिता भट्टाचार्य और श्वेता राय ने कुलगीत “मधुर मनोहर अतीव सुंदर यह सर्वविद्या की राजधानी”की श्रुतिमधुर प्रस्तुति की। मुख्य वक्ता सुप्रसिद्ध कवि एवं चिंतक निर्मला पुतुल को स्मृति चिह्न और अंग वस्त्र प्रदान कर सभी वक्ताओं को भी स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया।

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