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Sahitya utsav: हिन्दी साहित्य और नए कलमकारों को प्रोत्साहित करने के लिए कलामंथन का 3 दिवसीय साहित्य उत्सव

Sahitya utsav: हिन्दी साहित्य और नए कलमकारों को प्रोत्साहित करता हुआ अपनी तरह का अनोखा मंच है कलामंथन

लखनऊ, 25 सितंबरः Sahitya utsav: हिन्दी साहित्य और नए कलमकारों को प्रोत्साहित करता हुआ अपनी तरह का अनोखा मंच है कलामंथन। गत 4 वर्षों से निरंतर कार्य करते हुए 24, 25, 26 सितंबर को कलामंथन अपना तीसरा- तीन दिवसीय साहित्य उत्सव (Sahitya utsav) मना रहा है।

इस उत्सव का शुभारंभ विश्व प्रख्यात कथावाचक ” नाॅर अजहर इशाक” जी मलेशिया से जुड़ का ख़ास अंदाज़ में किया। उन्होंने मलेशिया की लोककथा से हम सबका परिचत कराया। इस मौके पर क्रिएटिव डायरेक्टर बासव के कुछ प्रश्नों का उत्तर देते हुए उन्होंने एक खूबसूरत बात कही “कहानी हमेशा दिल से सुनाएं !’, यह बात लोगों के दिलों में रह गई।

कला मंथन साहित्य और कला के क्षेत्र में कार्यरत है उसी कड़ी में पहला सत्र भारत के लोक साहित्य और लोक भाषा पर आधारित था। इस दिशा में भोजपुरी राजस्थानी और मैथिली साहित्य की जानी-मानी लेखिकाएं ” सरोज सिंह, संतोष चौधरी और विभा कुमारी जी एक परिचर्चा में शामिल हुईं। जिसका विषय था “लोक का साहित्य में दखल”

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इस परिचर्चा के दौरान सरोज सिंह जी ने एक बेहद खूबसूरत बात कही “जब समाज आगे बढ़ा तब स्त्री के हाथ में करछुल तो आया लेकिन उसे कलम नहीं मिल सकी”! वही संतोष चौधरी जी ने आधुनिकीकरण के कारण हमारी अगली पीढ़ी के हमारे लोक से दूर जाने की समस्या से अवगत कराया। राजस्थानी साहित्य के उत्कृष्ट परंपराओं से हमें परिचित कराते हुए उन्होंने साहित्य जगत में अनुवाद किए जाने पर ज़ोर दिया।

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विभा कुमारी जी ने मैथिली साहित्य के विषय में विस्तृत जानकारी दी। सरोज सिंह का ” पगली” कविता का वाचन अत्यंत लुभावना था। इस परिचर्चा का संचालन कलामंथन की कम्यूनिटी हैड अंशु सक्सेना जी ने किया।

दूसरे सत्र में कलामंथन के क्रिएटिव हेड बासब चंदना जी ने लेखक व इतिहासकार “विक्रमजीत सिंह रूप राय” जी से रूबरू कराया। इतिहास के इर्दगिर्द यह वार्ता अत्यंत ज्ञानवर्धक थी जहाँ स्कूली इतिहास और असल इतिहास पर चर्चा हुई।

दिन के तीसरे सत्र में फेस्टिवल हेड प्रतिमा सिन्हा जी के साथ प्रसिद्ध लेखिका और हिंदुस्तान की एग्जीक्यूटिव एडिटर जयंती रंगनाथन थी ,जिन्होंने “सिर्फ बच्चों क्या लिखते हैं हम ?” विषय पर वार्ता की। उनका कहना था “बच्चों की कहानी लिखना एक स्ट्रेस बस्टर है!” या “कहानी को एक दोस्त की तरह होना चाहिए, जिसे पढ़कर बस मजा आए!” ये दो बातें नवोदित कहानी लेखकों के लिए मूलमंत्र हो सकता है। अपनी किताब का खूबसूरत पाठन करके जयंती जी ने इस परिचर्चा को मनमोहक बना दिया।

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शाम की हमारी खास मेहमान थीं सुविख्यात लेखिका “मनीषा कुलश्रेष्ठ “जी जिनसे कलामंथन की फाउंडर सरिता निर्झरा ने वार्ता की जिसका विषय था ” मनोरोग साहित्य की दृष्टि से छुए अनछुए पहलू!” मनीषा जी की खूबसूरत रचनाओं से सभी परिचित हैं वे अपने किरदारों में इंद्रधनुषी रंग भरती हैं। “हिंदी साहित्य में रोगों पर आधारित रचनाएं इक्का-दुक्का ही हैं। इसके लिए तमाम शोध की आवश्यकता होती है, जो इन किरदारों के साथ न्याय कर सके”, यह कहते हुए उन्होंने इस सार्थक वार्ता को आगे बढ़ाया।

मनीषा जी के अनुसार किसी भी कथानक को चयन करने से पूर्व उस पर शोध करना आवश्यक है। एक बेहद खूबसूरत बात उन्होंने ने कही ” असली कहानी को ढूंढना पड़ता है, वह सौ परतों में छुपी होती है!” कलामंथन के साहित्य उत्सव के प्रथम दिवस का समापन “महफिल ए मुशायरा” से हुआ। इस महफ़िल में दिल्ली से “अज़हर हाशमी ‘सबकत’, नीला ‘सहर’ ,अलीना इतरत जी शामिल हुईं। दुबई से ऐशा शेख ‘आशी ‘महाराष्ट्र से ‘हबीब नदीम’, पाकिस्तान से “अम्मार इकबाल” तथा पटियाला से “तरकश प्रदीप” जी शामिल हुए।

महफिल की सदारत पाकिस्तान से “क़ैसर नज़फी” जी ने की । हमारे मेहमान-ए- ख़ुसूसी थे प्रीतपाल सिंह ‘बेताब’ इस महफिल की निज़ामत इरफान आरिफ साहब ने की थी

मोहब्बतों के जो पैगाम भेजे थे तुमने,

गुलों पर लिखकर उनके जवाब लाया हूं।

क़ैसर नज़फी सर के इस शेर ने एक खूबसूरत समा बांध दिया। वही प्रीत पाल सिंह जी ने कहा…..

अपनी रफ्तार का अंदाज बदल कर देखो,

खुद से आगे कभी खुद निकल कर देखो।

हर शायर का कलाम यहां बेहतरीन था और कला मंथन के साहित्य उत्सव के प्रथम दिवस की खूबसूरत शाम का एक खूबसूरत समापन हुआ।यह उत्सव अगले २ दिनों तक कलामंथन के फेसबुक पेज पर देखा जा सकता है जहाँ साहित्य के तमाम बदलते पहलुओं पर चर्चा जारी रहेगी।

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